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Reading: Shri Ram Painting in Constitution: संविधान की मूल प्रति में श्रीराम-सीता-लक्ष्मण का चित्रण
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WeStory > हिंदी न्यूज़ > Shri Ram Painting in Constitution: संविधान की मूल प्रति में श्रीराम-सीता-लक्ष्मण का चित्रण
हिंदी न्यूज़

Shri Ram Painting in Constitution: संविधान की मूल प्रति में श्रीराम-सीता-लक्ष्मण का चित्रण

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/03/21 at 3:22 PM
WeStory Editorial Team
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12 Min Read
Shri Ram Painting in Constitution
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Shri Ram Painting in Constitution: नंदलाल बोस ने रिक्तता को पूर्ण करने के लिए सैकड़ों चित्र बनाए

26 जनवरी 1950 को संविधान को लागू किया गया। संविधान की मूल प्रति में भारत की यात्रा को दर्शाने के लिए श्रीराम-सीता-लक्ष्मण सहित श्रीकृष्ण, नटराज, गंगा मैया का चित्रण मौजूद हैं। चित्रकार नंदलाल बोस ने एक हस्तलिखित दस्तावेज को अपनी कला के माध्यम से न केवल सुसज्जित किया, बल्कि उसे नया जीवन भी प्रदान किया। नंदलाल वही शख्स हैं जिन्होंने अपने शिष्यों के साथ मिलकर कागज़ पर लिखे संविधान की रिक्तता को पूर्ण करने के लिए सैकड़ों चित्र बनाए। हालाँकि बाद में इनमें से 22 चित्रों को भारतीय संविधान में जगह दी गई।

Table of Contents
Shri Ram Painting in Constitution: नंदलाल बोस ने रिक्तता को पूर्ण करने के लिए सैकड़ों चित्र बनाएआदर्श भारतीय समाज की परिकल्पनामौलिक अधिकार‘प्राण और दैहिक स्वतंत्रता’रंगभेद को अस्वीकार करते हैं रघुनंदनश्रीराम और ‘रूल ऑफ़ लॉ’‘रामराज्य’, न कि ‘रामराज’सनातन सभ्यता को सशक्त होना ही होगा

नंदलाल को गुजरे दशकों बीत गए हैं, लेकिन उनके द्वारा बनाए गए स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित चित्र भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं। इनमें गांधीजी की दांडी यात्रा को सबसे ज्यादा प्रसिद्ध बताया जाता है। इसके अलावा उनके द्वारा भारतीय देवी-देवताओं तथा प्राचीन ऐतिहासित घटनाओं के चित्रों का आज भी कोई मुकाबला नहीं है। उन्होंने न केवल संविधान को सजाया बल्कि स्वतंत्रता के बाद जब नागरिकों को सम्मानित करने के लिए पद्म अलंकरण प्रारम्भ हुए, तो इनके प्रतीक चिन्ह भी नंदलालजी ने ही बनाए। अपने अमूल्य काम के लिए उन्हें 1954 में पद्मविभूषण भी मिला।

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Shri Ram Painting in Constitution
Shri Ram Painting in Constitution

आदर्श भारतीय समाज की परिकल्पना

संविधान की हस्तलिखित मूलप्रति में राम, सीता और लक्ष्मण की तस्वीरें हैं। इससे यह साबित होता है कि भगवान श्रीराम इस राष्ट्र के प्राण है। भगवान राम इस देश के हर मन, कण-कण में हैं। संविधान की मूल कॉपी में ( पार्ट- 3 पर जहां मूल अधिकारों का जिक्र है) श्रीराम का चित्र मौजूद है, जिसमें लंका विजय के बाद वे लक्ष्मण सीता के साथ अयोध्या वापस आ रहे हैं। इनमें वैदिक काल से लेकर भगवान नटराज, महावीर, गौतम बुद्द , गुरुगोबिंद सिंह की तस्वीर शामिल हैं। इन चित्रों से समझा जा सकती है कि हमारे संविधान निर्माताओं के मन और मस्तिष्क में कैसे आदर्श भारतीय समाज की परिकल्पना रही होगी।

असल में यह चित्र भारत के लोकाचार और मूल्यों का प्रतिनिधित्व देने के लिये नंदलाल से बनवाये गए। ये चित्र संविधान की इबारत के जरिये शासन और सियासत के अभीष्ट निर्धारित किये गए थे। ये सभी चित्र भारत के महान सांस्कृतिक जीवन और विरासत के ठोस आधार हैं। ये सभी चित्र भारत की अस्मिता के प्रमाणिक अवसरों के दस्तावेज हैं जिनके साथ हर भारतवासी एक तरह के रागात्मक अनुराग जन्मना महसूस करता है। राम, कृष्ण, हनुमान, गीता, बुद्ध, महावीर, नालंदा, गुरु गोविंद असल में हजारों साल से भारतीय लोकजीवन के दिग्दर्शक हैं।

Shri Ram Painting in Constitution
Shri Ram Painting in Constitution

मौलिक अधिकार

संविधान का भाग 3, जिसमें हमारे मौलिक अधिकार पर चर्चा हैं, पर श्रीराम, सीता जी एवं लक्ष्मणजी का चित्र है। यह समझना आवश्यक होगा कि क्यों संविधान के इस भाग में श्रीराम का चित्रण ही सबसे उपयुक्त चयन है? भारतीय संविधान के लागू होते ही, समस्त अधीन प्रजा जनों को उनके मौलिक अधिकार प्राप्त हुए। लगभग 800 वर्षों के विदेशी शासकों के उपरांत यह पहला अवसर था जब विस्तृत रूप से पूरे राष्ट्र को स्वराज मिला था। मौलिक अधिकारों के लागू होते ही सभी नागरिकों को देश में विभिन्न प्रकार के भेदभावों से मुक्ति मिली। अनुच्छेद 14 में समानता के अधिकार के अनुसार संविधान एवं कानून के समक्ष धनी अथवा निर्धन, शक्तिशाली अथवा कमजोर सब सामान हैं। अनुच्छेद 15 इसके लिए निहित प्रावधानों द्वारा राजकीय व गैर-राजकीय व्यक्ति एवं संस्थाओं को नागरिकों के मध्य भेदभाव के बिना समान व्यवहार करने हेतु बाध्य किया गया है।

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Shri Ram Painting in Constitution
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‘प्राण और दैहिक स्वतंत्रता’

अनुच्छेद 21 में ‘प्राण और दैहिक स्वतंत्रता’ अर्थात जीने के अधिकार (Right to Life) के अंतर्गत सभी को सम्मान पूर्वक जीवन यापन के साथ-साथ मृत्यु के पश्चात गरिमामय अंतिम संस्कार का भी अधिकार प्राप्त है। समानता का अधिकार ये भी कहता है कि किसी विवाद की स्थिति में हर व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया में स्वयं का पक्ष पूर्ण रूप से प्रस्तुत करने का पूरा अधिकार है। भारत का संविधान किसी के अधीन न होकर अपने नागरिकों के अधिकारों का एक स्वतंत्र एवं सार्वभौम संरक्षक हैं।

रंगभेद को अस्वीकार करते हैं रघुनंदन

श्रीराम का दयालु एवं निष्पक्ष व्यक्तित्व सर्वविदित है, साथ ही उनके राम-राज्य की परिकल्पना में भी मानव जीवन के ये भाव आत्मसात है। विभिन्न रामायणों एवं लोक कथाओं में हमें प्रजा के प्रति श्रीराम के अपारंगत एवं मानवीय मनोभावों के दर्शन होते हैं, जो हमारे आज के संविधान के मूल्यों के सदृश्य हैं। श्रीराम ने उस समय जातिगत भेदभाव किये बिना अपने से अवर जाति के निषादराज से मित्रता की। उन्हें वही सम्मान दिया जो उनके बाकी राज मित्रों को मिला। रंगभेद या नस्ल भेद को अस्वीकार करते हुए रघुनन्दन ने एक भीलनी शबरी माता के झूठे बेर स्वीकारे।

एक राजा के रूप में वह अपने अधीन प्रजा को सामान रूप से देखते हुए उनके अधिकारों के संरक्षक थे। उन्होंने अपने शत्रु एवं मानवीय प्रवित्ति के विरोधियों (रावण और ताड़का) का युद्ध में वध करने के पश्चात् उनका ससम्मान अंतिम संस्कार सुनिश्चित किया। जब श्री राम को यह पता चला कि महाराज दशरथ ने उनका राज्याभिषेक घोषित कर दिया है, तो यह बात सुनते ही उनका पहला प्रश्न था कि उनके तीन भाइयों के लिए क्या सुनिश्चित किया गया है? वे मानते थे की उनके भाइयों का भी अयोध्या राज पर समान अधिकार है और उन्हें भी बराबर राज्य मिलने चाहिए।

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Shri Ram Painting in Constitution
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श्रीराम और ‘रूल ऑफ़ लॉ’

एक और प्रसंग के अनुसार करुणानिधान श्रीराम ने किन्नरों की उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण को देखते हुए उन्हें वरदान दिया था। युद्ध की परिस्थितियों में भी उन्होंने शत्रु राज्य से आये अनुयायियों को शरण दे कर उनकी रक्षा का आश्वासन दिया था। जब विभीषण श्री राम से मिलने आये तो सुग्रीव ने उन्हें चेताया कि विभीषण शत्रु का भाई है। श्री राम ने उन्हें समझाते हुए कहा कि उनसे न्याय मांगने आये हर व्यक्ति के पक्ष को सुनने और उसकी रक्षा करना उनका स्वभाव व धर्म दोनों है। उस समय की व्यवस्था के अनुसार वह स्वयं भी अपने राज धर्म एवं मानव धर्म से परिबद्ध थे, जिसकी तुलना आप आज के ‘रूल ऑफ़ लॉ’ से कर सकते हैं। शक्तिशाली, लोकप्रिय एवं राजा होने के बाद भी कभी श्री राम ने निर्धारित नियमों का उल्लंघन नहीं किया न ही स्वयं को धर्म से ऊपर रखा।

‘रामराज्य’, न कि ‘रामराज’

जब हम राम के शासन की आकांक्षा करते हैं तो हमारा तात्पर्य होता है – ‘रामराज्य’, न कि ‘रामराज’। किसी राजा की उपस्तिथि में सुशासन होना उस राजा के कौशल की सफलता है। किन्तु ‘राज्य’ की सफलता किसी राजा के ‘राज’ के कालखंड की सफलता से भिन्न है। राम के राज्य का अर्थ है प्रजाहित में सुरक्षित, संपन्न, प्रगतिशील व सकारात्मक राज्य की स्थापना। इसी प्रकार हमारे संविधान ने भी भारत को व्यक्ति केंद्रित ‘राज’ तक सीमित नहीं रखा है। अपितु संविधान एक ‘प्रजा केंद्रित’ राज्य को स्थापित करता है। एक ऐसा सकारात्मक व प्रगतिशील राज्य जिसकी परिकल्पना राम के आदर्शों का प्रतिविम्ब ही है। यह स्वीकारना गलत नहीं होगा कि भारत के सांस्कृतिक, नैतिक और राजनैतिक मूल्यों के आदर्श श्रीराम का व्यक्तित्व एवं जीवन दर्शन हमारे संवैधानिक मूल्यों के समरूप है।

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Shri Ram Painting in Constitution
Shri Ram Painting in Constitution

सनातन सभ्यता को सशक्त होना ही होगा

भारत कोई जमीन पर उकेरी गई या जीती गई या समझौता से बनाई गई भौगोलिक संरचना मात्र नहीं है, यह तो एक जीवंत सभ्यता है जो सृष्टि के सर्जन के समानांतर चल रही है। 26 नवम्बर 1949 को जिस संविधान सभा ने नए विलेख को आत्मार्पित, आत्मसात किया है, असल में वह परम्परा और आधुनिक भारत के सुमेलन का उद्घोष मात्र था। लेकिन कालान्तर में यह धारणा मजबूत हुई कि आधुनिक भारत का आशय सिर्फ पश्चिमी नकल, परंपरागत भारत के विसर्जन के साथ हिन्दू जीवन शैली को अपमानित करने से ही है। इसी बुनियाद पर भारत के शासन तंत्र को बढ़ाने की कोशिशें की गई। जबकि यह भुला दिया गया कि जिस सनातनी संस्कार से परम्परागत भारत भरा है, वही आधुनिक भारत को वैश्विक स्वीकार्यता दिला सकता है।

दुनिया में शांति, सहअस्तित्व, पर्यावरण संरक्षण जैसे आज के ज्वलंत संकटों का समाधान आखिर किस सभ्यता के पास है? सिवाय हमारे उन आदर्शों के जिन्हें आधुनिक लोग पिछड़ेपन की निशानी मानते हैं। हमें यह याद रखना चाहिये कि जब तक सनातन सभ्यता की व्याप्ति सशक्त नहीं होगी, भारत दुनिया में अपनी वास्तविक हैसियत हासिल नहीं कर सकता। दुर्भाग्य से इसी आधार को शिथिल करने में एक बहुत बड़ा वर्ग लगा हुआ है। हमारे पूर्वजों के पास अद्भुत दिव्यदर्शन था इसलिए उन्होंने भारत को धर्मनिरपेक्ष नहीं बनाया बल्कि धर्मचित्रों को आगे रखकर लोककल्याण के निर्देश स्थापित किये। धर्म हमारी सनातन निधि में इस्लाम या ईसाइयत की तरह पूजा पद्धति नहीं, कर्तव्य का विस्तार है। कर्तव्य भी किसी धर्म विशेष तक सीमित नहीं है।

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