SuperPower China: श्याओपिंग ने बनाया अमीर, कृषि क्षेत्र हुआ बड़ा सुधार
1949 में जब कम्युनिस्ट पार्टी ने माओत्से तुंग के नेतृत्व में सत्ता हासिल की थी तब चीन बेहद ग़रीब और एकदम अलग-थलग पड़ा हुआ देश था। चीन की अर्थव्यवस्था कृषि पर ही आधारित थी। माओ चीन को शक्तिशाली, अमीर और बहुत बड़ी ताक़त के रूप में देखना चाहते थे। वो पूंजीवाद के कट्टर विरोधी थे।
ये विडम्बना है कि आज चीन पूंजीवाद की राह पर चलते हुए ही दुनिया का सबसे तेज़ी से तरक्की कर रहा देश बन गया है। माओ ने 1976 में अपनी मौत तक 27 सालों तक चीन का नेतृत्व किया। उन्होंने देश की आत्मनिर्भरता पर ही ज़ोर दिया। उन्होंने 1950 के दशक में ‘द ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ अभियान के तहत चीन की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के औद्योगिकरण की कोशिश की लेकिन वो सफल नहीं हो सके। उनकी नीतियों की वजह से 1961 तक आते –आते चीन में भुखमरी की हालत हो गई थी।

चीन के बाजार को दुनिया के लिए खोल दिया
चीन में 1978 में चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के मुखिया डेंग श्याओपिंग एक नई सोच के साथ आए। उन्होंने चीन में आर्थिक क्रांति की शुरुआत की। शाओपिंग के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने ही चीन को अमीर बनाया है। उनके लाए सुधार माओ के सिद्धांतों से अलग थे। उन्होंने चीन के बाजार को पूरी दुनिया के लिए खोल दिया। उनका मानना था कि ग़रीबी के आधार पर समाजवादी व्यवस्था नहीं बनाई जा सकती।
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डेंग श्याओपिंग ने पूरी दुनिया से बंद पड़े कूटनीतिक रिश्ते फिर से बनाने शुरु किए। 1979 में अमेरिका और चीन के राजनयिक संबंध फिर स्थापित हुए। अमेरिकी कंपनियों ने चीन में बड़े बाजार की संभावना को देखते हुए निवेश किया। कंपनियों ने चीन में सस्ते श्रम और कम किराए का जमकर फायदा उठाया। श्याओपिंग ने कृषि के क्षेत्र में भी बड़ा सुधार किया। उन्होंने किसानों को खुद के प्लॉट्स पर खेती करने का अधिकार दिया गया। ऐसा होने से किसानों के जीवन स्तर में सुधार आया और भोजन की कमी दूर हुई।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में खूब निवेश
चीन ने 1980 और 1990 के दशक में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में खूब निवेश किया। शुरूआत में चीन में सिर्फ बल्ब, खिलौने, बैटरी जैसे Low end products का ही निर्माण होता था लेकिन धीरे धीरे चीन हर छोटी से बड़ी चीज के निर्माण का केंद्र बन गया। यही वजह है कि चीन को दुनिया की फैक्ट्री भी कहा जाने लगा। इन सामनों को उन्होंने पूरी दुनिया में एक्सपोर्ट किया। इसका नतीजा ये हुआ कि 2010 में अमेरिका को पछाड़ कर चीन मैन्युफैक्चरिंग के सेक्टर में दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया था।

2019 तक आते-आते ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में चीन का हिस्सा 29 फीसदी हो गया जबकि अमेरिका का हिस्सा 17 फीसदी। वहीं भारत का हिस्सा इसमें सिर्फ 3 फीसदी है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की वजह से चीन में करोड़ों लोगों को रोजगार मिला। चीन की बड़ी आबादी को काम पर लगाने में ये सेक्टर काफी अहम साबित हुआ। क़ृषि और मैन्युफैक्चरिंग में सुधार की वजह से चीन के लोगों की कमाई भी बढ़ी। 1991 में चीन में प्रति व्यक्ति सालाना आय 333 डॉलर थी। 2021 में चीन की प्रति व्यक्ति आय पैंतीस गुना बढ़कर 11,819 डॉलर हो गई है। इन आंकड़ों से साफ है कि चीन बहुत आगे निकल गया है।
एक्सपोर्ट पर जबर्दस्त फोकस
चीन के सुपरपावर बनने की सबसे बड़ी वजह उसका एक्सपोर्ट पर जबर्दस्त फोकस है। 1980 के दशक में चीन में 5.7 फीसदी की औसत से निर्यात में बढ़ोतरी हुई, 1990 के दशक में निर्यात की विकास की दर 12.4 फीसदी रही, वहीं साल 2000 से 2003 के बीच ये दर 20.3 फीसदी तक पहुंच गई। एक्सपोर्ट्स के क्षेत्र में इतनी तेजी से दुनिया में कहीं भी विकास नहीं हुआ। साल 2001 से 2006 के बीच तेजी से बढ़ती विदेशी मांग से चीन में लगभग 7 करोड़ नौकरियां पैदा हुईं।
ये नौकरियां मूल रूप से सिर्फ प्राथमिक शिक्षा पाए हुए मजदूरों को मिलीं। 2006 के बाद से चीन में घरेलू मांग इतनी बढ़ी रोजगार के लिए विदेशी मांग से ज्यादा घरेलू मांग अहम हो गई। इससे चीनी अर्थव्यवस्था को नया बैलेंस मिला। लेकिन चीन ने एक्सपोर्ट्स पर पकड़ ढीली नहीं की। ग्लोबल एक्सपोर्ट्स के मामले में चीन आज 10 फीसदी हिस्से के साथ दुनिया में नंबर एक है।
इंफ्रास्ट्रक्चर, रेल, रोड, हाउसिंग को मॉडर्न बनाया
चीन की तरक्की की एक और बड़ी वजह है शहरीकरण। उन्होंने पिछले 40 सालों में इंफ्रास्ट्रक्चर, रेल, रोड, हाउसिंग को तेजी से मॉडर्न बनाया है। तेजी से शहरीकरण की वजह से चीन में आज 100 से ज्यादा शहर ऐसे हैं जहां आबादी 10 लाख से ज्यादा है। शहरीकरण की वजह से चीनी सरकार ग्रामीण इलाकों से बड़ी संख्या में लोगों को शहरों में लाने में कामयाब हुई है। ऐसा करने से रोजगार के साथ साथ कमाई बढ़ने से लोगों के जीवन स्तर में भी बढ़ोतरी हुई है।
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2021 की डेमोग्राफिया रिसर्च ग्रुप की स्टडी के मुताबिक इस वक्त चीन में ऐसे 108 शहर है जिनकी अनुमानित आबादी वन मिलियान यानी 10 लाख से ऊपर है। ये दुनिया में सबसे ज्यादा है। जिस तरह से चीन में तेजी से शहरीकरण हो रहा है, उसकी वजह से साल 2025 तक चीन में ऐसे शहरों की संख्या दोगुनी हो जाएगी।

गरीबी रेखा से नीचे नहीं एक भी शख्स
चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जब 2012 में गद्दी संभाली थी तब उन्होंने देश से गरीबी खत्म करने का संकल्प लिया था। उस वक्त चीन में 10 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे थे जो ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में रहते थे। जिनपिंग ने गरीबी से निकालने के लिए ढाई करोड़ लोगों के जर्जर मकान रहने लायक बनाए और एक करोड़ लोगों को अलग जगह पर बसाया औऱ घर दिए। उनका कहना है कि लोगों को गरीबी से बाहर निकाले बिना देश प्रगति नहीं कर सकता।
फिलहाल चीन की अनुमानित आबादी 143 करोड़ है, 1981 में चीन में 88 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते थे। लेकिन चीनी सरकार के दावे के मुताबिक अब चीन में अब एक भी शख्स गरीबी रेखा से नीचे नहीं है।