The Frozen World of Antarctica: मालद्वीप, मुंबई, गोवा आदि के लिए गंभीर खतरा
अंटार्टिका पृथ्वी का सबसे ठंडा महाद्वीप है। इसकी बर्फ की परत, जो लगभग तीन मील मोटी है, में विश्व का 90 प्रतिशत ताजा पानी है। साल 2014-2017 के दौरान इसने उतना ही बर्फ खोया जितना कि आर्कटिक ने पिछले 30 वर्ष में खोया था। फिर 6 फरवरी, 2020 को अंटार्टिका का अधिकतम तापमान (18.3 डिग्री सेल्सियस) रिकॉर्ड किया गया। इस रिकॉर्ड तापमान का संबंध ‘फोएह्न’ से हो सकता है जो कि ढलान से आने वाली हवा का गर्म हो जाना है। आज यह तापमान और ज्यादा बढ़ चुका है। गर्म हवाएं और समुद्र का गर्म पानी अंटार्टिका में बर्फ को पिघला रहे हैं। वैज्ञानिकों को आशंका है कि 20-25 वर्ष में गर्मियों की समुद्री बर्फ लुप्त भी हो सकती है।

6 गुना अधिक बर्फ खो रहा
ध्यान रहे कि 1980 के दशक की तुलना में इस समय अंटार्टिका 6 गुना अधिक बर्फ खो रहा है। बर्फ का यह पिघलना ग्लोबल समुद्री स्तरों को 10 फीट से अधिक बढ़ा सकता है जिससे आइलैंड देश मसलन मालद्वीप आदि तो डूब ही जायेंगे बल्कि समुद्री तटों जैसे मुंबई, गोवा आदि के लिए भी गंभीर खतरा उत्पन्न हो जायेगा। ऐसा पूरे विश्व में होगा। यह खतरा इसलिए भी बहुत अधिक है क्योंकि अंटार्टिका का थावेट्स ग्लेशियर, जो विश्व के लिए अति महत्वपूर्ण है, सिकुड़ता जा रहा है और उसका प्रभाव अब दिखाई भी देने लगा है।
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थावेट्स ग्लेशियर को सिकुड़न का खतरा
थावेट्स ग्लेशियर पश्चिम अंटार्टिका आइस शीट का हिस्सा है। यह विशाल ग्लेशियर पाइन आइलैंड बे (खाड़ी) के पास स्थित है और अमुंडसेन समुद्र का हिस्सा है। यह गर्म पानी पिघलेगा तो थावेट्स ग्लेशियर अपरिवर्तनीय सिकुड़न में आ जायेगा। इससे पूरी पश्चिम अंटार्टिका आइस शीट अस्थिर हो जायेगी और समुद्र का स्तर 12 फीट ऊपर हो जायेगा। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में एनवायरनमेंटल फ्लूइड डायनामिक्स लेबोरेटरी के निदेशक डेविड हॉलैंड का थावेट्स ग्लेशियर को लेकर कहना है, “अगर अभी उचित कदम नहीं उठाये गये तो आइस शीट की अस्थिरता से न्यूयॉर्क से लेकर बांग्लादेश तक का क्षेत्र पानी के नीचे आ जायेगा। ऐसा दशकों से शताब्दियों तक में हो सकता है लेकिन टाइमलाइन अभी प्रकट होने लगी है। यह तूफान की तरह नहीं होगा, जिसका हम अनुभव करते रहते हैं बल्कि यह एक बार की घटना होगा, बस।”

धरती के बिगड़ते पर्यावरण को बचाना जरूरी
इस भयावह स्थिति को रोकने का एक ही रास्ता है- धरती के बिगड़ते पर्यावरण को बचाया जाय, धरती की सेहत संभाली जाय अपने लिए न सही आने वाली पीढ़ियों के लिए। इंसान अपने लिए जो नहीं करता वह अपनी संतानों के लिए करता है। वह हमेशा से अपनी संतानों को ज्ञान, धन, चेतना और कौशल जैसी संपत्तियां देकर जाता रहा है। हालांकि पिछली एक सदी से इंसान में उपभोग की जो अतिशय आकांक्षा पैदा हुई है, उसके बाद यह सबसे बड़ा संकट पैदा हो गया है कि इंसान आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ बेहतर छोड़ने से तो रहा, उल्टे उसने उन्हें दुनिया बदतर बनाकर दे जाने की पूरी परिस्थितियां रच दी है। आज न तो धरती का पानी ऐसा बचा है जिससे भविष्य की पीढ़ियां अपनी प्यास बुझा सकें और सेहतमंद रह सकें और न ही हवा ऐसी रही है जिसमें सुकून की सांस ले सकें। अंधाधुंध उपभोग के कारण इंसान ने धरती को पिछली 2-3 शताब्दियों में नरक बना दिया है।
औद्योगिक क्रांति के बाद से जुल्म
इंसान ने औद्योगिक क्रांति के बाद से लगातार धरती पर बहुत ज्यादा जुल्म ढाये हैं। पिछली एक डेढ़ सदी में तो हमने अपनी ज्यादातियों के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिये हैं। हैरानी इस बात पर भी है कि हमें इस सबका पता भी है और इस पर हम दुनियावासी बीच-बीच में अपनी सुविधा के मुताबिक चर्चा भी करते हैं और चिंता भी। फिर भी धरती की बिगड़ती सेहत लगातार बिगड़ती ही जा रही है। पृथ्वी दिवस वास्तव में धरती की इसी बिगड़ी हुई सेहत के प्रति लोगों को आगाह करने, उनमें इसके प्रति संवेदना जताने का भी एक जरिया है। अगर अब भी नहीं सचेत हुए तो अपनी संतानों को जीने लायक धरती देकर नहीं देकर जा सकते।
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