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Reading: Time Capsule: हमेशा के लिए दफन हो गया ‘टाइम कैप्सूल’
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WeStory > हिंदी न्यूज़ > Time Capsule: हमेशा के लिए दफन हो गया ‘टाइम कैप्सूल’
हिंदी न्यूज़

Time Capsule: हमेशा के लिए दफन हो गया ‘टाइम कैप्सूल’

Time Capsule: आज हम आपके सामने देश की दिवंगत प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी के कुछ अनजाने रहस्यों को उजागर करेंगे जिसे सुनकर आप चौंक जाएंगे और दांतों तले अपनी उंगली दबा लेंगे।

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/08/01 at 11:00 AM
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Time Capsule: इंदिरा गांधी की जिंदगी के वो अनजाने किस्से

Time Capsule: आज हम आपके सामने देश की दिवंगत प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी के कुछ अनजाने रहस्यों को उजागर करेंगे जिसे सुनकर आप चौंक जाएंगे और दांतों तले अपनी उंगली दबा लेंगे। ये वो रहस्य हैं जिसे आजतक किसी ने सुना और पढ़ा नहीं है। इंदिरा गांधी की जिंदगी के वो अनजाने किस्से जो बहुत ही रोचक हैं, जिज्ञासा से भरे हैं लेकिन एक रहस्य बनकर रह गये हैं।

Table of Contents
Time Capsule: इंदिरा गांधी की जिंदगी के वो अनजाने किस्सेलाल किले के परिसर में दफनपीएमओ के पास कोई जानकारी नहींआपातकाल की गंभीरता समझ नहीं पाई इंदिराइंदिरा और फिरोज में खटपटजर्मन शिक्षक से बांटती थीं दर्द

इंदिरा गांधी की उस रहस्यमयी दुनिया में जो आज के इतिहास में भी दर्ज नहीं है। कनाईलाल बासु की किताब ‘नेताजी रीडिकवर्ड’ के अनुसार साल 1970 में इंदिरा गांधी ने लाल किले के परिसर में टाइम कैप्सूल दफन करवाया था। टाइम कैप्सूल में आजादी के बाद 25 सालों में देश की उपलब्धि और संघर्ष के बारे में उल्लेख किया जाना था। इंदिरा ने उस टाइम कैप्सूल का नाम कालपात्र रखा था।

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लाल किले के परिसर में दफन

इंदिरा ने 15 अगस्त, 1973 को इसे लाल किले के परिसर में दफन किया था। उस समय इसे लेकर जमकर विवाद हुआ था। विपक्ष का कहना था कि इंदिरा गांधी ने टाइम कैप्सूल में अपना और अपने वंश का महिमामंडन किया है। जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तब टाइम कैप्सूल को जमीन से खोदकर निकाला गया लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि उस टाइम कैप्सूल में क्या था।

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पीएमओ के पास कोई जानकारी नहीं

फिलहाल अभी तक उसके बारे में कुछ पता नहीं चल सका। 2012 में भी पीएमओ से इसके बारे में जानकारी मांगी गई लेकिन पीएमओ ने जवाब में कहा कि उसके पास कोई जानकारी नहीं है। टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है जिसे जमीन के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है। हजारों साल तक न तो इसे कोई नुकसान पहुंचता है और न ही वह सड़ता-गलता है। टाइम कैप्सूल को दफनाने का मकसद किसी समाज, काल या देश के इतिहास को सुरक्षित रखना होता है। यह एक तरह से भविष्य के लोगों के साथ संवाद है। इससे भविष्य की पीढ़ी को किसी खास युग, समाज और देश के बारे में जानने में मदद मिलती है।

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आपातकाल की गंभीरता समझ नहीं पाई इंदिरा

साल 1975 में जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने इंदिरा गांधी के चुनाव रद्द कर दिया। उस वक्त वह इलाहाबाद में स्थानीय आईबी अधिकारी थे। इंदिरा गांधी को पता था कि आपातकाल के दौरान क्या हो रहा है लेकिन लोगों पर इसके प्रभावों और इसके नतीजों की गंभीरता को शायद वह समझ नहीं पाईं। इंदिरा गांधी शुरू में आपातकाल लागू होने के छह महीने बाद ही इसे हटाने का मन बना रही थीं, लेकिन संजय गांधी इसके खिलाफ थे।

संघ के तात्कालिक प्रमुख देवरस ने इंदिरा गांधी से संपर्क स्थापिक करने की कोशिश की थी। दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके में स्थित झुग्गी-झोपड़ियों में जबरन नसबंधी और तोड़फोड़ आपातकाल के चरण सीमाओं का प्रतीक है। आपातकाल बंगाल के पूर्ण मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के दिमाग की उपज थी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने आपतकाल का समर्थन किया था और संघ प्रमुख बालासाहेब देवरस ने इंदिरा गांधी से संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया था।

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इंदिरा और फिरोज में खटपट

लौह महिला इंदिरा गांधी ने अपने पति फिरोज गांधी को टूटकर चाहा था। लेकिन जब उन्हें लगने लगा कि वह उनसे बेवफाई कर रहे हैं तो दूरियां बढती चली गईं। शादी के जल्द बाद ही इंदिरा और फिरोज में खटपट शुरू हो गई। साल 1941 में जब वह गर्भवती थीं और राजीव गांधी का जन्म होने वाला था तो उन्हें पता लगा कि फिरोज किसी और महिला से इनवाल्व हैं। उनके कानों में फिरोज के अफेयर के एक नहीं कई किस्सों की खबरें पहुंच रही थीं। इससे वो दुखी हो गईं। पति की बेवफाई ने रिश्तों में दूरी बढानी शुरू कर दी। इंदिरा एक प्यार करने वाला पति और सुखी परिवार चाहती थीं।

यही उन्हें नहीं मिला। अगर फिरोज उनसे बेवफाई नहीं करते तो इंदिरा न अपने पिता नेहरू पर आश्रित होतीं और न ही राजनीति की ओर मुड़ती। तब शायद भारतीय राजनीति में उनके कदमों के निशान ऐसे नहीं होते जो हमें नजर आते हैं। संभव है कि तब वह भारत की प्रधानमंत्री भी नहीं बनतीं। इंदिरा अगर एक ओर पति की बेवफाई से निराश थीं तो उनके पिता नेहरू भी फिरोज को कतई पसंद नहीं करते थे। जिससे ये स्थितियां बनती गईं कि दोनों का विवाहित जीवन करीब करीब खत्म हो गया।

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जर्मन शिक्षक से बांटती थीं दर्द

हालांकि इंदिरा गांधी के जीवन में फिरोज पहले शख्स नहीं थे। जब वह पुणे में मैट्रिक करने के बाद शांति निकेतन में पढने गईं थीं तो फ्रेंच पढाने वाले जर्मन शिक्षक फ्रेंक ओबरडॉफ उनके प्यार में पड़ गए। ओबरडॉफ 1933 में शांतिनिकेतन आए थे। उनकी रविंद्रनाथ टैगोर से मुलाकात 1922 में लातीन अमेरिका में हुई थी। टैगोर ने उन्हें शांतिनिकेतन आने का प्रस्ताव दिया। जब उन्होंने इंदिरा को फ्रेंच पढानी शुरू की तो वह 16 साल की थीं। इंदिरा को पढाते-पढाते वह उनकी सुंदरता पर मोहित हो गए। प्यार का प्रस्ताव रखा। इंदिरा खफा हो गईं। हालांकि समय के साथ उनमें नजदीकियां हो गईं।

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इंदिरा के अपने दर्द थे। उसे वो जर्मन शिक्षक से बांटती थीं। फ्रेंक उनकी सुंदरता की तारीफ करते रहते थे। जब टैगोर को ये पता चला तो उन्होंने इंदिरा को तुरंत वापस घर भेज दिया। बाद में फ्रेंक की मुलाकात लंदन में इंदिरा से हुई। उन्होंने फिर इंदिरा को मनाने की कोशिश की लेकिन तब तक उनके जीवन में फिरोज का आगमन हो चुका था। लिहाजा वो फ्रेंक से रुखाई से पेश आईं। कैथरीन फ्रेंक अपनी किताब में लिखती हैं कि इंदिरा के जीवन में बाद में दो और पुरुष आए। इनमें धीरेंद्र ब्रह्मचारी और दिनेश सिंह शामिल थे। इंदिरा ने अपनी विश्वस्त डोरोथी नार्मन को धीरेंद्र के बारे में लिखा, वह एक आकर्षक योगी हैं, जिनसे वह योग सीख रही हैं। दिनेश पर भी वह बहुत भरोसा करती हैं। प्रधानमंत्री हाउस में उनका बेरोकटोक किसी भी समय आना जाना था। इंदिरा से अफेयर की चर्चाओं को शायद दिनेश सिंह ने खुद ही हवा दी।

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