Trade Deficit & Surplus: कुछ देशों के साथ भारत का व्यापार सरप्लस
Trade Deficit & Surplus: भारत का 2023-24 में अमेरिका के साथ 36.74 अरब डॉलर का व्यापार सरप्लस था। अमेरिका उन कुछ देशों में से एक है जिनके साथ भारत का व्यापार सरप्लस है। यह सरप्लस ब्रिटेन, बेल्जियम, इटली, फ्रांस और बांग्लादेश के पास भी है। पिछले वित्त वर्ष में भारत का कुल व्यापार घाटा कम होकर 238.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष यानी वित्त वर्ष 23 में यह 264.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। व्यापार विशेषज्ञों के अनुसार, अगर कोई देश मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कच्चे माल या मध्यस्थ उत्पादों का आयात कर रहा है, तो घाटा हमेशा बुरा नहीं होता है। हालांकि, इससे घरेलू मुद्रा पर दबाव पड़ता है। वर्तमान में भारत को शीर्ष 10 व्यापारिक साझेदार देशों में से 9 के साथ व्यापार घाटा उठाना पड़ा है। इसका मतलब यह है कि इन देशों से आयात का मूल्य भारत द्वारा इन देशों को किए गए निर्यात के मूल्य से अधिक है।

चीन के साथ व्यापार घाटा 14,952 करोड़ बढ़ा
दिलचस्प बात यह है कि चीन के साथ व्यापार घाटा सिर्फ 1 साल में 1.8 अरब डॉलर यानी 14,952 करोड़ रुपये बढ़ गया। दूसरे अर्थों में सिर्फ 1 साल में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 7 लाख करोड़ रुपये है। आंकड़ों से यह भी पता चला है कि 2022-23 की तुलना में पिछले वित्त वर्ष में चीन, रूस, कोरिया और हांगकांग के साथ घाटा बढ़ा है, जबकि संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, रूस, इंडोनेशिया और इराक के साथ व्यापार अंतर कम हुआ है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2023-24 में चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़कर 85 अरब डॉलर, रूस के साथ 57.2 अरब डॉलर, कोरिया के साथ 14.71 अरब डॉलर और हांगकांग के साथ 12.2 अरब डॉलर हो गया, जबकि 2022-23 में यह क्रमश: 83.2 अरब डॉलर, 43 अरब डॉलर, 14.57 अरब और 8.38 अरब डॉलर था। चीन 2023-24 में 118.4 अरब डॉलर के दोतरफा वाणिज्य के साथ अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर उभरा है। 2023-24 में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 118.28 बिलियन डॉलर रहा। वॉशिंगटन 2021-22 और 2022-23 के दौरान नई दिल्ली का शीर्ष व्यापारिक भागीदार था।
एक मुक्त व्यापार समझौता
भारत ने अपने चार शीर्ष व्यापारिक साझेदारों क्रमश: सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात, कोरिया और इंडोनेशिया के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता किया है। 2023-24 में भारत का अमेरिका के साथ 36.74 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष है। अमेरिका उन कुछ देशों में से एक है जिसके साथ भारत का व्यापार अधिशेष है। यह अधिशेष ब्रिटेन, बेल्जियम, इटली, फ्रांस और बांग्लादेश के पास भी है। पिछले वित्त वर्ष में भारत का कुल व्यापार घाटा पिछले वित्त वर्ष के 264.9 बिलियन डॉलर के मुकाबले कम होकर 238.3 बिलियन डॉलर हो गया। व्यापार विशेषज्ञों के अनुसार यदि कोई देश विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कच्चे माल या मध्यस्थ उत्पादों का आयात कर रहा है, तो घाटा हमेशा बुरा नहीं होता है। हालांकि इससे घरेलू मुद्रा पर दबाव पड़ता है।
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देश की मुद्रा का अवमूल्यन
आर्थिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के मुताबिक किसी देश के साथ द्विपक्षीय व्यापार घाटा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, जब तक कि यह हमें उस देश की महत्वपूर्ण आपूर्ति पर अत्यधिक निर्भर न कर दे। हालांकि बढ़ता समग्र व्यापार घाटा अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है। जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘बढ़ते व्यापार घाटे यहां तक कि कच्चे माल और मध्यवर्ती उत्पादों के आयात से भी देश की मुद्रा का अवमूल्यन हो सकता है। इसकी वजह यह है कि आयात के लिए अधिक विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है। यह मूल्यह्रास आयात को और अधिक महंगा बना देता है, जिससे घाटा और बढ़ जाता है।
बढ़ते घाटे को पूरा करने के लिए देश को विदेशी ऋणदाताओं से अधिक उधार लेने की आवश्यकता हो सकती है। अत: बाहरी ऋण बढ़ सकता है और इससे विदेशी मुद्रा भंडार कम हो सकता है। साथ ही निवेशकों को आर्थिक अस्थिरता का संकेत मिल सकता है, जिससे विदेशी निवेश कम हो सकता है। व्यापार घाटे में कटौती के लिए निर्यात को बढ़ावा देना, अनावश्यक आयात को कम करना, घरेलू उद्योगों को विकसित करना और मुद्रा और ऋण स्तर को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना आवश्यक है।’

अर्थव्यवस्था होती है प्रभावित
व्यापार घाटे का सीधा असर देश की आर्थिक स्थिति विशेषकर चालू खाते, रोज़गार सृजन, विकास दर और मुद्रा के मूल्य पर पड़ता है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि किसी देश का व्यापार घाटा लंबे समय तक बना रहता है तो उस देश की आर्थिक स्थिति, विशेषकर रोज़गार सृजन, विकास दर और मुद्रा के मूल्य पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है। चालू खाते के घाटे पर व्यापार घाटे का नकारात्मक असर पड़ता है। दरअसल, चालू खाते में एक बड़ा हिस्सा व्यापार संतुलन का होता है तथा जब व्यापार घाटा बढ़ता है तो चालू खाते का घाटा भी भी बढ़ जाता है। चालू खाता घाटा विदेशी मुद्रा के देश में आने और बाहर जाने के अंतर को दर्शाता है। निर्यात के ज़रिये विदेशी मुद्रा अर्जित होती है, जबकि आयात से विदेशी मुद्रा बाहर जाती है।
यही वज़ह है कि सरकार ने हाल में कई वस्तुओं पर आयात शुल्क की दर बढ़ाकर गैर-ज़रूरी वस्तुओं के आयात को कम करने का प्रयास किया है। इस समय देश से निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटा कम करने की राह में कुछ और चुनौतियाँ भी दिखाई दे रही हैं। इन चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती तब सामने आई जब हाल ही में यूरोपीय यूनियन, चीन, जापान, कनाडा, रूस, श्रीलंका, ताइवान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड ने अमेरिका के साथ मिलकर विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत की निर्यात संवर्द्धन योजनाओं के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया। इसमें कहा गया है कि अब भारत अपने निर्यातकों के लिये सब्सिडी योजनाएँ लागू नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करना WTO समझौते का उल्लंघन है।
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