Ukraine Rare Earth Minerals : टाइटेनियम लोहे से 50% और स्टील से 56% हल्का
Ukraine Rare Earth Minerals – क्या आपको पता है यूक्रेन में करीब 11 ट्रिलियन डॉलर के दुर्लभ खनिज मौजूद हैं। ये रकम भारत की कुल इकोनॉमी से भी 3 गुना ज्यादा है। यूक्रेन में 100 से ज्यादा दुर्लभ खनिजों का भंडार है। इनमें 20 भंडार ऐसे हैं, जिन्हें अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने अमेरिका की इकोनॉमी ग्रोथ और सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी बताया है। टाइटेनियम, लिथियम, यूरेनियम, रेयर अर्थ मिनरल्स, ग्रेफाइट जैसे दुर्लभ खनिज हैं जो बहुत काम के हैं, जिन्हें दुनिया भर के देश पाना चाहते हैं।
टाइटेनियम चांदी जैसी दिखने वाला मैटेरियल जमीन के अंदर चट्टानों के टुकड़ों के रूप में पाया जाता है। टाइटेनियम लोहे से 50% और स्टील से 56% हल्का होता है, फिर भी दोनों धातुओं से कई गुना ज्यादा मजबूत होता है। टाइटेनियम को पिघलाने के लिए 2 हजार डिग्री सेल्सियस के तापमान की जरूरत होती है। यानी ये ज्यादा गर्मी सह सकता है। इसीलिए इसका इस्तेमाल विमानों से लेकर पावर स्टेशनों तक में होता है। रूस-यूक्रेन जंग की शुरुआत से पहले ग्लोबल टाइटेनियम उत्पादन में 7% हिस्सा यूक्रेन का था।

हल्के सफेद रंग का होता है लिथिय
ज्वालामुखी वाली चट्टानों और झरनों में पाया जाने वाला लिथियम हल्के सफेद रंग का होता है। यह दुनिया की सबसे हल्की धातु है। लिथियम को खुली हवा में नहीं रखा जाता, क्योंकि यह ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर फौरन आग पकड़ लेता है। इस वजह से लिथियम को तेल में डुबोकर रखा जाता है। लिथियम को एक चाकू से भी काटा जा सकता है, क्योंकि यह बहुत सॉफ्ट होता है। इसका इस्तेमाल बैटरियों को बनाने में होता है। यूरोप के कुल लिथियम भंडार का 33% हिस्सा यूक्रेन के पास है। वहीं यूरेनियम एक रेडियोएक्टिव धातु है, जो चट्टानों और झरनों में पाई जाती है। यूरेनियम को दुनिया की सबसे खतरनाक धातु भी कहते हैं क्योंकि इसका इस्तेमाल परमाणु बम बनाने में होता है।
दुनियाभर के कुल यूरेनियम का 2% यूक्रेन में पाया जाता है। इसी तरह रेयर अर्थ मिनरल्स 17 खनिजों का एक ग्रुप है, जो कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर मिलिट्री इक्विपमेंट तक में इस्तेमाल होता है। इसमें सेरियम, डिस्प्रोसियम, अर्बियम, यूरोपियम, गैडोलीनियम, होल्मियम, लैंथेनम, ल्यूटेटियम, नियोडिमियम, प्रेसियोडीमियम, प्रोमेथियम, समैरियम, स्कैंडियम, टेरबियम, थ्यूलियम, येटरबियम और इड्रियम शामिल हैं। इसके अलावा यूक्रेन में ग्रेफाइट का भी बड़ा भंडार मौजूद है, जो इलेक्ट्रिक व्हीकल बनाने में इस्तेमाल होता है।

कई इलाकों पर रूस का कब्जा
ट्रम्प ने यूक्रेन के 50% दुर्लभ खनिजों पर कब्जा करने का प्रस्ताव दिया है। इनमें ग्रेफाइट, यूरेनियम, टाइटेनियम, लिथियम समेत कई बेशकीमती और दुर्लभ खनिज शामिल हैं। इनका इस्तेमाल टेस्ला की कारों से स्पेसएक्स के रॉकेट तक, होवित्जर तोप से मोबाइल की चिप तक में होता है। फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशन्स की सीनियर लेक्चरर जेसिका गेनॉयर ने बताया कि ट्रम्प का ध्यान यूक्रेन के दुर्लभ खनिजों पर बना हुआ है, क्योंकि ट्रम्प इससे अमेरिकी सुरक्षा और उद्योग को बढ़ाना चाहते हैं।
ट्रम्प इन खनिजों की मदद से चीन को कड़ी टक्कर देना चाहते हैं। यूक्रेन के पास रेयर अर्थ मटेरियल के कई अहम भंडार हैं। हालांकि, जंग के बाद इनमें से कई इलाकों पर रूस का कब्जा है। यूक्रेन के लुहांस्क, डोनेट्स्क, जपोरिजिया और खेरसॉन पर इस वक्त रूस का कब्जा है। इन प्रांतों में यूक्रेन के कुल खनिज भंडार का 53% हिस्सा है, जिसकी कीमत 6 ट्रिलियन पाउंड यानी करीब 660 लाख करोड़ रुपए हैं। इस पर पुतिन का सितंबर 2022 से कब्जा है। 25 फरवरी को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका के साथ दुर्लभ खनिजों की डील करने की इच्छा जताई। पुतिन ने कहा कि रेयर अर्थ मिनरल्स के लिए हम अमेरिका के साथ काम करने को तैयार हैं। रूसी कंपनियां रूस की जमीन से भी नेचुरल रिसोर्स एक्स्ट्रैक्ट कर सकती हैं। उनमें वो जमीन भी शामिल हैं, जो रूस ने यूक्रेन से हथियाई हैं।
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रेयर अर्थ मिनरल्स की सप्लाई पर चीन का कब्जा
दुनियाभर में रेयर अर्थ मिनरल्स की सप्लाई पर चीन का कब्जा है। पिछले कुछ दशकों में चीन दुर्लभ खनिजों के खनन और इसकी प्रोसेसिंग के मामले में सबसे बड़ा देश बन गया है। माइनिंग टेक्नोलॉजी की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन दुनिया के 60% से 70% दुर्लभ खनिजों का उत्पादन करता है, जबकि 90% दुर्लभ खनिज चीन में ही प्रोसेस होते हैं। 2023 की यूएस जियोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 से 2021 में अमेरिका ने चीन से 74% रेयर अर्थ मिनरल्स आयात किए थे। इसके अलावा 53% गैलिलियम और 33% ग्रेफाइट समेत 9 अन्य खनिजों का आयात भी किया था। ट्रम्प दुर्लभ खनिजों की सप्लाई में अमेरिका का हिस्सा बढ़ाना चाहते हैं। फिलहाल अमेरिका इन खनिजों के लिए चीन पर निर्भर है। अमेरिका को दोबारा महान बनाने की बात करने वाले ट्रम्प के लिए ये चिंता की बात है।
इससे अमेरिका का आर्थिक और सैन्य मोर्चे पर दांव कमजोर पड़ सकता है। कीव की टारस शेवचेंको नेशनल यूनिवर्सिटी के जियोलॉजिकल इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर सेरही व्यज्वा ने एक इंटरव्यू में कहा, यह साफ है कि यूरोप, जापान और यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका सभी दुर्लभ खनिजों के लिए चीन पर निर्भर हैं। 3 साल तक अमेरिका ने जंग में यूक्रेन को सपोर्ट किया, लेकिन ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने यूक्रेन से अपना हाथ खींच लिया और हर मदद पर रोक लगा दी। ट्रम्प ने यूक्रेन को युद्ध के लिए दिया गया पैसा वापस मांगना शुरू किया। ट्रम्प ने कहा कि यूक्रेन को 500 बिलियन डॉलर के दुर्लभ खनिज अमेरिका को देने होंगे, क्योंकि अमेरिकी मदद के बिना यूक्रेन कमजोर पड़ जाएगा। इसके बाद रूस किसी भी दिन उसे अपने में मिला सकता है। 12 फरवरी 2025 को ट्रम्प ने पुतिन से फोन पर करीब 90 मिनट तक बातचीत की। 18 फरवरी को सऊदी अरब में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने मीटिंग की। 4 घंटे तक चली मीटिंग में सबसे अहम मुद्दा रहा है- रूस-यूक्रेन जंग को रोकना।

बदले में री-डेवलपमेंट में मदद करेगा अमेरिका
दुर्लभ खनिज संपदा के सौदे की शर्तें आधिकारिक तौर पर सामने नहीं आई हैं। हालांकि अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से कुछ बातें पता चली हैं। जैसे- अमेरिका ने इस डील के बदले यूक्रेन को कोई सुरक्षा की गारंटी या हथियारों की सप्लाई की गारंटी नहीं दी है। डील में सिर्फ ये जिक्र है कि अमेरिका चाहता है कि यूक्रेन स्वतंत्र, संप्रभु और सुरक्षित रहे। इसके अलावा खनिजों से होने वाली आमदनी पर अमेरिका का इकलौता अधिकार नहीं होगा। अमेरिका और यूक्रेन मिलकर एक पुनर्निमाण कोष बनाएंगे। अमेरिका दुर्लभ खनिज के बदले यूक्रेन के री-डेवलपमेंट (पुनर्विकास) में मदद करेगा। अमेरिका और यूक्रेन की दुर्लभ खनिज डील को रूस-यूक्रेन समझौते के रूप में देखा जा रहा है। ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि यह समझौता रूस के साथ यूक्रेन के युद्धविराम की राह में पहला कदम होगा।
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