Vote Swing: भाजपा का वोट शेयर में मामूली गिरावट, कांग्रेस का बढ़ा
Vote Swing: देश में बीजेपी और कांग्रेस के नेतृत्व वाली ‘इंडिया’ गठबंधन में इस बार लोकसभा चुनाव में gooजबर्दस्त मुकाबला है। पिछले कई चुनाव के समान इस बार भी ‘वोट स्विंग’ खेल ही सरकार बनाने का बड़ी भूमिका अदा करेगा। आइए आंकड़ों के जरिए समझते हैं कि देश की तस्वीर कैसी रहती आई है। कांग्रेस को देश की 543 लोकसभा सीटों में से 2009 में 28.6% वोट के साथ 206 सीटें मिली थी। 2014 में 19.6% वोट के साथ 44 सीटें मिली थी। 2019 में 19.46% वोट के साथ 52 सीटें मिली थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में लगभग 0.14 प्रतिशत मतों का स्विंग देखने को मिला था और उसे 8 सीटों का फायदा हुआ था।
देश में बीजेपी का उभार हैरान करने वाला है। बीजेपी पिछले दस साल में कांग्रेस को पछाड़ एक बड़ा दल बन कर उभरी है। 2009 में बीजेपी को 18.8 % वोट के साथ 116 सीटें मिली थी। 2014 में बीजेपी का वोट करीब 12.6 प्रतिशत बढ़ कर 31.4% हो गया और सीट केवल 282 ही मिली थी और सरकार बनाई। पिछले लोक सभा चुनाव में बीजेपी ने जबर्दस्त कामयाबी हासिल की। 2019 में बीजेपी का वोट बढ़ कर 37.7% हो गया और उसे 303 सीटें मिलीं और उसने दूसरी बार सरकरा बनाई, यानी बीजेपी के पक्ष में 6.3% का स्विंग हुआ था। बीजेपी के सीटों में 2014 की तुलना में 2019 के लोकसभा चुनाव में 21% सीटों की बढ़ोतरी हुई थी। बीजेपी के 400 सीटों के लक्ष्य के पीछे 1984 के चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को आधार माना जा रहा है।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए तब के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 414 सीटों पर जीत मिली थी। तब कुल 38 करोड़ वोटर थे जिनमें से 24 करोड़ ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था और कांग्रेस को करीब 50 फीसदी यानी करीब 12 करोड़ वोट मिले थे। यह आजाद भारत के इतिहास में किसी लोकसभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 48.1 प्रतिशत वोटों के साथ 415 सीटें जीतने में कामयाब रही। 1984 ही वह आखिरी चुनाव था, जिसमें कांग्रेस को बहुमत मिला था. इसके बाद हुए किसी भी लोकसभा चुनाव में ‘वोट स्विंग’ के कारण कांग्रेस को न तो बहुमत मिला है न ही 40 प्रतिशत वोट मिले हैं। आइये जानते हैं 1957 से लेकर 2024 तक के लोकसभा चुनावों तक कब-कब वोट ‘वोट स्विंग’ ने सरकार बदलने और बनाने में अहम भूमिका निभाई।
1952 लोकसभा चुनाव
– 45% वोट मिले थे कांग्रेस को
– 364 सीटें जीती थी कांग्रेस ने
– 16 सीटें CPI को मिली
– 12 सीटें सोशलिस्ट पार्टी को
– 3 सीटें मिलीं थीं भारतीय जनसंघ को
पंडित जवाहरलाल नेहरू पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री बने। इस लोकसभा का गठन 17 अप्रैल 1952 को हुआ और इसने 4 अप्रैल 1957 को अपना कार्यकाल पूरा किया। पहली लोकसभा में सदन की करीब 677 बैठकें (3,784 घंटे) हुईं, जो किसी एक कार्यकाल में हुईं अबतक की सबसे अधिक बैठके हैं।
1957 लोकसभा चुनाव ( 494 सीटें )
– 3% वोट स्विंग हुए कांग्रेस के पक्ष में
– 45% से बढ़कर 48% हो गया वोट शेयर बढ़कर कांग्रेस का
– 371 सीटें मिली थी कांग्रेस का
– CPI – 27 सीटें जीती थी
– प्रजा सोशलिस्ट पार्टी – 19 सीटें जीती थी
– भारतीय जनसंघ – 4 सीटें जीतीं
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने कुल 494 सीटों में से 371 सीटों के साथ फिर से जीत हासिल की। इसका वोट शेयर भी बढ़कर 48% हो गया। बाकी पार्टियां जैसे- सीपीआई, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय जनसंघ ने क्रमशः 27, 19 और 4 सीटें जीतीं। नेहरू को फिर से प्रधान मंत्री चुना गया जबकि दूसरी लोकसभा के दौरान विपक्ष का कोई आधिकारिक नेता नहीं था। यह चुनाव, ‘राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956’ के लागू होने के बाद होने वाला पहला चुनाव था। इस अधिनियम के तहत भाषाई आधार पर नए राज्य बनाए गए। 11 मई, 1957 को एम अनंतशयनम अयंगर को सर्वसम्मति से दूसरी लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया।
1962 लोकसभा चुनाव
– कांग्रेस का 3% वोट स्विंग हुआ जो सीपीआई, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और पीएसपी को गया
– 48% से घटकर 45% हो गया कांग्रेस का वोट शेयर
– से 361 सीटें जीतीं थी कांग्रेस ने

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने कुल 494 सीटों में से 361 सीटें जीतीं। हालांकि, इसका वोट शेयर पिछले चुनाव के 48% से घटकर 45% हो गया। बाकी चार अन्य प्रमुख दलों – सीपीआई, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और पीएसपी – ने दोहरे अंक में सीटें जीतीं। नेहरू दोबारा पीएम बने, लेकिन भारत-चीन युद्ध के बीच उनका स्वास्थ्य गिरने लगा। कश्मीर से लौटने के बाद, जहां वे स्वास्थ्य लाभ के लिए गए थे, नेहरू को स्ट्रोक और बाद में दिल का दौरा पड़ा और 27 मई 1964 को उनकी मृत्यु हो गई। गुलजारी लाल नंदा को अंतरिम प्रधान मंत्री नियुक्त किया गया। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। हालांकि 19 महीने बाद ही उनकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद 1966 में इंदिरा गांधी ने सत्ता संभाली।
1967 लोकसभा चुनाव ( 520 सीटें )
– 4% वोट स्विंग हुआ जो 6 विपक्षी दलों को गया जिसमें स्वतंत्र पार्टी भी शामिल
– 45% से 41% पर आ गया घटकर कांग्रेस का वोट शेयर
– 283 सीटें जीती थी कांगेस ने कुल 520 लोस सीटों में से
– 44 सीटें जीतीं थी स्वतंत्र पार्टी ने
इंदिरा गांधी की अगुआई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने कुल 520 लोकसभा सीटों में से 283 सीटें जीतीं। हालांकि पार्टी का वोट शेयर घटकर लगभग 41% पर आ गया। छह पार्टियों ने दोहरे अंक में जीत हासिल की, जिसमें सी राजगोपाला चारी की स्वतंत्र पार्टी ने 44 सीटें जीतीं और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनकर उभरी। इंदिरा गांधी दूसरी बार प्रधानमंत्री बनीं। इसे एक और बड़ा झटका लगा क्योंकि इस दौरान बिहार, केरल, उड़ीसा, मद्रास, पंजाब और पश्चिम बंगाल में गैर-कांग्रेसी सरकार बन गईं।
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1971 लोकसभा चुनाव ( कांग्रेस टूटी – vote swing हुआ )
– 55.2% ही रहा इस बार वोट प्रतिशत कुल
– 43.68% वोट शेयर रहा इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) का
– 352 सीटें जीतीं कांग्रेस (आर) ने
– 16 सीटें आईं कांग्रेस (ओ) के हिस्से में
– 8 सीटें जीतीं स्वतंत्र पार्टी ने
– 22 सीटें जीती भारतीय जनसंघ ने
– 23 सीटों पर जीत हासिल की DMK ने
इंदिरा गांधी की अगुआई में कांग्रेस ने कुल 518 में से 352 सीटें जीतीं, जबकि मोरारजी देसाई के अगुआई वाले गुट को केवल 16 सीटें मिलीं। इंदिरा गांधी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनीं। हालांकि 12 जून 1975 को, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चुनावी भ्रष्टाचार के एक आरोप में इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को अमान्य कर दिया। इंदिरा गांधी ने इस्तीफा देने के बजाय देश में इमरजेंसी लगाने की घोषणा कर दी और पूरे विपक्ष को जेल में डाल दिया। आपातकाल मार्च 1977 तक चला।
1977 लोकसभा चुनाव ( 542 सीटें )
– 8.5 % से ज्यादा वोट स्विंग हुए जो जनता पार्टी गठबंदन को गये
– 44% से 35% के नीचे चला गया कांग्रेस का वोट शेयर घटकर
– 43% वोट प्राप्त हुए जनता पार्टी को
– 73 प्रतिशत सीटें जीतीं थी जनता पार्टी
– 542 सीटों में से 298 सीटें जीतीं थी जनता पार्टी ने
– 154 सीटें मिलीं थी कांग्रेस को
1977 का लोकसभा चुनाव देश के इतिहास में पहला ऐसा चुनाव था जब पहली गैर-कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई थी। जनता पार्टी गठबंधन ने 298 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद सात राष्ट्रीय दलों में से चार – चरण सिंह की भारतीय लोक दल (बीएलडी), भारतीय जनसंघ, कांग्रेस (ओ) और सोशलिस्ट पार्टी का विलय हो गया। यह नई पार्टी जनता पार्टी कहलायी जो आपातकाल और कांग्रेस का विरोध कर रही थी। जनता गठबंधन उत्तर भारत में विशेष रूप से सफल रहा। पार्टी ने उत्तर प्रदेश में सभी 85 सीटें, बिहार में 54 में से 52 सीटें और मध्य प्रदेश में 40 में से 37 सीटें जीतीं। इसने राजस्थान में 24 और महाराष्ट्र में 19 सीटें जीतीं, जिनमें बॉम्बे की सभी सीटें भी शामिल थीं। जनता पार्टी ने हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में सभी सीटें जीतीं। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की 154 सीटों में से 92 सीटें जीतकर कांग्रेस ने दक्षिण में कुछ हद तक सत्ता बरकरार रखी। कांग्रेस (ओ) के बैनर तले जनता पार्टी ने केरल में कोई सीट नहीं जीती, वहीं कर्नाटक में दो और तमिलनाडु में तीन सीटें जीतीं थी। मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री बने, लेकिन गठबंधन सहयोगियों के समर्थन वापस लेने के बाद 1979 में उन्हें पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद चरण सिंह नए प्रधानमंत्री बने।
1980 लोकसभा चुनाव
– 8.2 % वोट स्विंग हुआ जो इंदिरा लहर के कारण कांग्रेस को गये
– 57% मतदान हुआ इस चुनाव में जो पिछले चुनाव से 3% कम था.
– 34.5 से बढ़कर 42.7% हुआ था कांग्रेस का वोट शेयर
– 353 सीटें कांग्रेस को मिली
– 31 सीटें जनता पार्टी को
– 41 सीटें जनता पार्टी (एस)
– 11 सीपीआई कोट
– 36 सीपीएम को
– 39 सीटों पर जीते अन्य

1980 के चुनाव में कांग्रेस के वोट शेयर में 8.2% की बढ़ोतरी हुई और सीटों की संख्या में 199 का इजाफा हुआ। 353 सीटों के साथ कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में लौटी।1980 का लोकसभा चुनाव इंदिरा के आखिरी चुनाव के तौर पर भी याद किया जाता है। कांग्रेस ने हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के अधिकांश हिस्सों, बिहार और मध्य प्रदेश में जीत के साथ हिंदी पट्टी में वापसी की। पार्टी महाराष्ट्र , गुजरात और दक्षिण भारत में भी हावी रही। यह पहला चुनाव था, जिसमें कांग्रेस ने अपने वर्तमान चुनाव चिह्न खुली हथेली (पंजे) के साथ चुनाव लड़ा था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1978 में 153 सदस्यों में से 76 का समर्थन खोने के बाद कांग्रेस को फिर तोड़ते हुए नई पार्टी कांग्रेस (आई) बनाई और हाथ के पंजे को अपना नया चुनाव चिह्न बनाया।
1984 लोकसभा चुनाव
– 5.4% वोट स्विंग हुआ जो कांगेस के पाले में गया
– 48.12% वोट मिले कांग्रेस को
– कुल 38 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 63.56% ने मतदान किया जिसमें से
– 80% उम्मीदवार जीते कांग्रेस के
– कांग्रेस ने 515 उम्मीदवार खड़े किये थे जिनमें से 415 जीत गये.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 5.4 फीसदी और बढ़ा। कांग्रेस की 62 सीटें बढ़ गईं। 415 सीटों के साथ राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी सहानुभूति लहर के कारण भारी जीत के साथ सत्ता में आई और उनके बेटे राजीव गांधी प्रधान मंत्री बने। कांग्रेस ने 514 में से 414 सीटें जीतीं।
1989 लोकसभा चुनाव
– 8.62% वोट स्विंग हुए जो जनता दल, बीजेपी और वामपंथी दलों को गया
– 48.12% से घटकर 39.5% हुआ कांग्रेस का वोट शेयर
– 17.8% वोट मिले जनता दल को
– 11.4% था बीजेपी का वोट शेयर

कांग्रेस को इस चुनाव में बोफोर्स घोटाले, पंजाब में बढ़ते आतंकवाद और लिट्टे-श्रीलंकाई सरकार के बीच गृह युद्ध के कारण सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा। लोकसभा की 525 सीटों के लिए 22 नवंबर और 26 नवंबर 1989 को दो चरणों में चुनाव हुए। इस चुनाव में पहली बार लोकसभा में त्रिशंकु की स्थिति बनी, जिसमें जिसमें कांग्रेस ने 197 सीटें, जनता दल ने 143 और बीजेपी ने 85 सीटें जीतीं। जनता दल ने बीजेपी और वामपंथी दलों के बाहरी समर्थन से राष्ट्रीय मोर्चा सरकार बनाई। वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। 1990 में चन्द्रशेखर ने जनता दल से अलग होकर समाजवादी जनता पार्टी बनाई। वह 11वें प्रधान मंत्री बने। हालांकि 6 मार्च 1991 को उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा।
1991 लोकसभा चुनाव
– 3.1% वोट कांग्रेस का स्विंग हुआ और बीजेपी व जनता दल के खाते में गया
– 39.5% से घटकर 36.4 % हो गया था कांग्रेस वोट शेयर लेकिन सीटें बढ़ी थीं
– 11.4% से बढ़कर 20.1% हो गया था बीजेपी का वोट शेयर
1991 के आम चुनाव से पहले लिट्टे ने राजीव गांधी की हत्या कर दी। मंडल आयोग की रिपोर्ट और राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद चुनाव के दो प्रमुख मुद्दे बन गए। वीपी सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करते हुए सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27% आरक्षण दिया। वहीं दूसरी ओर राम मंदिर के मुद्दे पर देश में कई दंगे हुए और मतदाताओं का जाति और धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण हुआ। किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सका। कांग्रेस 244 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि बीजेपी ने 120 सीटें जीतीं और जनता दल 59 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही। कांग्रेस के पीवी नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
1996 लोकसभा चुनाव
– 7.6% वोट स्विंग होकर बीजेपी, जनता दल और क्षेत्रीय दलों के खातों में गये
– 36.4% से घटकर 28.8% हो गया था कांग्रेस का वोट शेयर
– 20.1% से बढ़कर 20.3% हो गया था बीजेपी का वोट शेयर
– 8% वोट मिले जनता दल को
कुल 543 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने 161 सीटें, कांग्रेस ने 140 और जनता दल ने 46 सीटें जीतीं। क्षेत्रीय दल नई ताकत बनकर उभरने लगे और उन्होंने कुल 129 सीटें जीत लीं। इनमें टीडीपी, शिवसेना और डीएमके प्रमुख दल थे। राष्ट्रपति ने बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, जिसने गठबंधन बनाने का प्रयास किया। हालांकि वे ज्यादा दिन तक नहीं टिक सके और अटल बिहारी वाजपेयी को 13 दिन में ही पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद एचडी देवेगौड़ा प्रधान मंत्री बन गए और वह 18 महीने तक रहे। बाद में उन्हें भी पद छोड़ना पड़ा और आईके गुजराल देश के नए पीएम बने।
1998 लोकसभा चुनाव
– 3% स्विंग हुआ कांग्रेस का जो NDA के खाते में गया
– 28.8% से घटकर 25.8% हो गया था कांग्रेस का वोट शेयर
– 20.3% से बढ़कर 25.6% हो गया था बीजेपी का वोट शेयर

543 लोकसभा सीटों में से 182 सीटों पर जीत के साथ BJP सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कांग्रेस ने 141 और अन्य क्षेत्रीय दलों ने 101 सीटें जीतीं। बीजेपी ने अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार का गठन किया। अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार नहीं चल सकी और AIDMA के समर्थन वापस लेने के बाद उन्हें 13 महीने बाद इस्तीफा देना पड़ा।
1999 लोकसभा चुनाव
– 1.8 वोट स्विंग हुआ बीजेपी जो कांग्रेस और अन्य के खाते में गया
– 25.8% से बढ़कर 28.3% हुआ कांग्रेस का वोट शेयर लेकिन सीटें कम आई
– 25.6% से घटकर 23.8% हुआ था बीजेपी का वोट शेयर पर सीटें बढ़ थीं
कारगिल युद्ध के बीच बीजेपी 182 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और कांग्रेस को 114 सीटें ही मिल पाई। क्षेत्रीय पार्टियों ने 158 सीटों के साथ अच्छा प्रदर्शन किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
2004 लोकसभा चुनाव
– 1.8% वोट स्विंग हुए कांग्रेस के जो अन्य दलों के खातों में गये
– 1.6% स्विंग हुए बीजेपी के जो अन्य दलों के खातों में गये
– 28.3% से घटकर 26.5% हुआ कांग्रेस का वोट शेयर पर कांग्रेस के नेतृत्व में UPA गठबंधन सरकार बनी
– 23.8% से घटकर 22.2% हुआ बीजेपी का वोट शेयर
इस चुनाव में कांग्रेस ने सोनिया गांधी की अगुआई में सभी को हैरान करते हुए सत्ता में वापसी। कांग्रेस की अगुआई वाले गठबंधन ने 543 में से 335 सीटों पर जीत हासिल की। इस गठंधन में बसपा, सपा, एमडीएमके, लोक जनशक्ति पार्टी आदि शामिल थीं और लेफ्ट पार्टियों का इसे बाहर से समर्थन था। चुनाव बाद बने इसे गठंधन को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) कहा गया। चुनाव के बाद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर सभी को चौंका दिया था। बाद में पार्टी ने उनकी जगह मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना।
2009 लोकसभा चुनाव
– 3.4% वोट स्विंग हुए बीजेपी के जो कांग्रेस और अन्य के खाते में गये
– 26.5% से बढ़कर 28.6% हुआ कांग्रेस का वोट शेयर
– 22.2% से घटकर 18.8% हुआ बीजेपी का वोट शेयर
कांग्रेस की अगुआई वाले यूपीए ने कृषि लोन माफ करने के साथ-साथ सूचना का अधिकार और मनरेगा जैसी योजनाएं शुरू की। चुनाव में कांग्रेस ने 206 सीटें जीतीं और भाजपा ने 116 सीटें हासिल कीं जबकि क्षेत्रीय दलों ने 146 सीटें जीतीं। मनमोहन सिंह ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
2014 लोकसभा चुनाव
– 9% वोट स्विंग हुए कांग्रेस के जो बीजेपी और अन्य के खातों में गये
– 12.6% वोट बढ़े बीजेपी के
– 28.6% से घटकर 19.6% हुआ कांग्रेस का वोट शेयर
– 18.8% से बढ़कर 31.4% हुआ बीजेपी का वोट शेयर

यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे। इसमें 2जी, कोयला ब्लॉक, आदर्श सोसायटी और कॉमनवेल्थ स्कैम आदि शामिल थे। इस बीच बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को विकास के चेहरे के रूप में पेश किया। बीजेपी ने इस चुनाव में अपने दम पर 282 सीटों के साथ जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने सिर्फ 44 सीटों के साथ अपना अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज किया। AIDMK, AITC और BJD ने क्रमश: 37, 34 और 20 सीटें जीतीं। बीजेपी और उसके सहयोगियों ने उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीटें और राजस्थान में सभी 25 सीटें जीतीं।
2019 लोकसभा चुनाव
– 6.3% वोट कांग्रेस और अन्य दलों स्विंग हुए जो बीजेपी के खाते में गये
– 31.4% से बढ़कर 37.7% हुआ बीजेपी का वोटशेयर
– 19.6% से बढ़कर 19.46 हुआ कांग्रेस का वोट शेयर पर सीटें बहुत कम मिली
बीजेपी ने ‘मोदी लहर’ में 303 सीटें जीतकर अपना अबतक का सबसे बेस्ट प्रदर्शन किया। वहीं NDA को कुल करीब 350 सीटें मिली। जबकि कांग्रेस को 52 सीटों के साथ एक और करारी हार का सामना करना पड़ा। जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी भारत के इतिहास में लगातार दो बार एक ही पार्टी से बहुमत हासिल कर पीएम बनने वाले तीसरे व्यक्ति बन गए। इस चुनाव में सिर्फ हिंदी पट्टी ही नहीं, बल्कि बीजेपी ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी अच्छी सीटें निकालीं।
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2024 लोकसभा चुनाव
– 1.10 % वोट भाजपा के स्विंग हुए जो कांग्रेस और अन्य दलों के खाते में गये
– 37.7% से घटकर 36.6% हुआ बीजेपी का वोटशेयर
– 19.46% से बढ़कर 21.2% हुआ कांग्रेस का वोट शेयर पर सीटें बहुत कम मिली

भाजपा को 50 प्रतिशत वोट तक पहुंचने के लिए 2019 की तुलना में करीब 12 प्रतिशत अधिक वोट हासिल करने की जरूरत थी, पर ऐसा नहीं हुआ। भाजपा ने देश भर में कई छोटे-बड़े दलों के साथ गठबंधन किया था…लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी साल 2014 और 2019 वाला करिश्मा नहीं दोहरा सकी. एनडीए ने 293 सीटों पर जीत दर्ज की है, बीजेपी महज 240 सीटें ही जीत सकी, पिछली बार की अपेक्षा 63 सीटें उसने गंवा दी हैं, जब कि 350 पार की उम्मीद की जा रही थी। इस तरह से बीजेपी के वोट शेयर में 7% की गिरावट देखी गई है। 2019 में बीजेपी के नेशनल वोट शेयर 37.7% था, जो घटकर साल 2024 में यह 36.6% पर पहुंच गया, लेकिन उसकी सीटों की संख्या 303 से 63 घटकर 240 हो गई। मतलब साफ है कि यह आधे से काफी आ गया है। इसके बिल्कुल उलट, कांग्रेस का वोट शेयर पिछली बार के 19.46% से थोड़ा बढ़ा है और 21.2% पर पहुंच गया है। कांग्रेस 52 से लगभग दोगुनी 99 तक पहुंच गई है। ये 90 परसेंट की ग्रोथ है।
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