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Reading: Water Amendment Bill: प्रदूषित पानी पीने मजबूर हैं लोग
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WeStory > हिंदी न्यूज़ > Water Amendment Bill: प्रदूषित पानी पीने मजबूर हैं लोग
हिंदी न्यूज़

Water Amendment Bill: प्रदूषित पानी पीने मजबूर हैं लोग

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/03/30 at 3:48 PM
WeStory Editorial Team
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Water Amendment Bill
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Water Amendment Bill: कानून बना पर कागजों में रह गया

जल (प्रदूषण निवारण व नियंत्रण) कानून के प्रावधानों के उल्लंघन पर फैक्ट्रियों को बंद किया जा सकता है। आर्थिक जुर्माना लगाया जा सकता है और 6 वर्ष तक की कैद की सज़ा भी दी जा सकती है। आश्चर्य की बात यह कि देश के जल स्रोत प्रदूषित होते रहे और आज तक ऐसा कोई मामला प्रकाश में नहीं आया जिसमें पर्यावरण उल्लंघन के लिए किसी कंपनी को बंद किया गया हो या संबंधित व्यक्ति को सलाखों के पीछे भेजा गया हो।

Table of Contents
Water Amendment Bill: कानून बना पर कागजों में रह गयामूल कानून 25 राज्यों में लागूनवीनतम संशोधन किये गएफैक्ट्री लगाने से पहले अनुमति जरूरी6 वर्ष के लिए जेल‘मामूली उल्लंघनों’ से पर्यावरण को नुकसान नहीं

इससे इन आरोपों में दम प्रतीत होता है कि फैक्ट्री लगाने के लिए एसपीसीबी से एनओसी ले-देकर मिल जाता है और नियमों के उल्लंघन को भी ले-देकर रफा-दफा कर दिया जाता है। भ्रष्टाचार दीमक बन गया है और लोग प्रदूषित पानी पीने व ज़हरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं जिससे उनकी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा डॉक्टरों की भेंट चढ़ रहा है।

Water Amendment Bill
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मूल कानून 25 राज्यों में लागू

जल राज्य का विषय है। इसलिए केंद्र सीधे तौर पर जल प्रबंधन को प्रभावित करने वाले लेजिस्लेटिव कानून नहीं बना सकता। हालांकि अगर दो या अधिक राज्य मांग करें तो केंद्र कानून बना सकता है जो संबंधित राज्य अपने क्षेत्रों में लागू कर सकते हैं बशर्ते कि उनकी विधानसभाएं उसका अनुमोदन कर लें। जिन राज्यों ने मांग नहीं की है, वह भी अगर चाहें तो अपनी विधानसभा में उसे पारित कराकर अपने यहां लागू कर सकते हैं।

संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित जल (प्रदूषण निवारण व नियंत्रण) संशोधन कानून फ़िलहाल हिमाचल प्रदेश व राजस्थान और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा। 1974 में पारित मूल कानून 25 राज्यों में लागू है। संशोधित कानून में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है कि ‘मामूली’ समझे जाने वाले अनेक उल्लंघनों के लिए कैद का प्रावधान हटा दिया गया है और उसकी जगह 10,000 रुपये का जुर्माना रखा गया है जिसे 15 लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।

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Water Amendment Bill
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नवीनतम संशोधन किये गए

जल संबंधी कानून में जो नवीनतम संशोधन किये गए हैं, कहीं उनसे नदियों व अन्य जल स्रोतों को औद्योगिक प्रदूषण से सुरक्षित रखने वाले कानून कमज़ोर तो नहीं हो जायेंगे? इस समय का सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है। 5 फरवरी, 2024 को जल (प्रदूषण निवारण व नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 को राज्यसभा में पेश किया गया था। इसे उसी दिन पारित भी कर दिया गया। लोकसभा ने भी पास कर दिया है।

इस संशोधन से जल (प्रदूषण निवारण व नियंत्रण) कानून, 1974 में कुछ अति महत्वपूर्ण परिवर्तन सामने आये हैं। संदर्भित सवाल का उत्तर देने से पहले आवश्यक है कि 1974 के कानून को और 2024 में उसमें किये गए संशोधनों को संक्षेप में समझ लेते हैं। साल 1974 में जो जल (प्रदूषण निवारण व नियंत्रण) कानून गठित किया गया था वह आज़ाद भारत में पहला लेजिस्लेशन था, इस आवश्यकता को पहचानने के लिए कि जल स्रोतों के प्रदूषण की समस्या को संबोधित करने के लिए संस्थागत स्ट्रक्चर की ज़रूरत है। फलस्वरूप सितम्बर 1974 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) की स्थापना की गई।

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Water Amendment Bill
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फैक्ट्री लगाने से पहले अनुमति जरूरी

इन दोनों बोर्ड की ज़िम्मेदारी यह थी कि वह जन जल संसाधनों को सीवेज व औद्योगिक एफ्लुएंट (गंदा रिसाव) से प्रदूषित होने से रोकेंगे और इस संदर्भ में निगरानी करेंगे। इस कानून से औद्योगिक इकाइयों के लिए यह लाज़मी हो गया कि वे फैक्ट्री लगाने से पहले अपने संबंधित राज्य बोर्ड से अनुमति लेंगे और यह निगरानी कराने के लिए तैयार रहेंगे कि उनकी निर्माण व अन्य प्रक्रियाएं निर्धारित नियमों का पालन कर रही हैं।

सीपीसीबी की वेबसाइट कहती है, “भारत की संसद ने अपने विवेक से 1974 में जल (प्रदूषण निवारण व नियंत्रण) कानून गठित किया था ताकि हमारे जल स्रोतों की स्वास्थ्य-प्रदाता को बरकरार रखा जा सके और रिस्टोर किया जा सके। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक ज़िम्मेदारी यह भी है कि वह जल प्रदूषण से संबंधित तकनीकी व स्टैटिस्टिकल डाटा को एकत्र कर उनका मिलान व प्रसार करे।” सीपीसीबी को यह अधिकार मिला हुआ है कि वह चेकिंग करे और किन तकनीकी मानकों का पालन किया जाना है, के संदर्भ में मार्गदर्शन करे। एसपीसीबी केस फाइल करते हैं और उनसे उम्मीद की जाती है कि नियमों का पालन करायेंगे।

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Water Amendment Bill
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6 वर्ष के लिए जेल

मूल कानून के तहत जिस उद्योग या ट्रीटमेंट प्लांट का डिस्चार्ज सीवेज जल स्रोत, सीवर या भूमि में जाता हो उसे स्थापित करने के लिए एसपीसीबी की अनुमति आवश्यक होती है लेकिन संशोधन में कहा गया है कि केंद्र ‘सीपीसीबी से सलाह करके औद्योगिक प्लांट्स की कुछ श्रेणियों को यह मंज़ूरी लेने से मुक्त कर सकता है’ लेकिन एसपीसीबी से अनुमति लिए बिना कोई औद्योगिक इकाई स्थापित करना या चलाना अब भी आपको 6 वर्ष के लिए जेल भेज सकता है जुर्माने के साथ।

संशोधित कानून में यह भी कहा गया है कि एसपीसीबी द्वारा दी गई मंज़ूरी, इनकार या रद्द के संदर्भ में केंद्र दिशानिर्देश जारी कर सकता है। कोई उद्योग या ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जा सकता है, यह जानने के लिए मॉनिटरिंग उपकरण होते हैं। उनसे छेड़छाड़ करने पर भी अब जुर्माना भरना पड़ सकता है जो कि 10,000 रुपये व 15 लाख रुपये के बीच में होगा। संशोधित कानून केंद्र को एसपीसीबी के चेयरपर्सन्स चुनने के संदर्भ में नियम बनाने का अधिकार भी देता है और वह दिशानिर्देश बनाने का भी जिनका पालन राज्य उद्योग स्थापित करने और नई ऑपरेटिंग प्रक्रियाओं के लिए कर सकते हैं।

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Water Amendment Bill
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‘मामूली उल्लंघनों’ से पर्यावरण को नुकसान नहीं

नये संशोधनों के संदर्भ में केंद्र का कहना है कि पुराने पड़ चुके नियमों व कानूनों से ‘विश्वास का अभाव’ आ रहा था। जिन ‘मामूली उल्लंघनों’ से इंसानों को चोट या पर्यावरण को नुकसान नहीं होता, उनमें कैद का प्रावधान व्यापारियों व नागरिकों के लिए अक्सर ‘उत्पीड़न’ की वजह बनता और वह ‘जीवन व व्यापार को आसान करने’ की स्पिरिट के अनुरूप भी नहीं था। विपक्ष का कहना है कि संशोधनों से नदियों व अन्य जल स्रोतों को औद्योगिक प्रदूषण से सुरक्षित रखने का कानून कमज़ोर हुआ है। उसका तर्क है कि कैद का डर औद्योगिक इकाइयों के लिए प्रभावी चेतावनी थी कि वह सख्त नियमों का पालन करने में कोई लापरवाही न करें।

इस वाद-विवाद से अलग सोचने वाली 3 प्रमुख बातें हैं। एक, नदियों व अन्य जल स्रोतों के प्रदूषण की समस्या देश में हर जगह है, केवल 2 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों तक सीमित नहीं है। 1974 का कानून अगर पुराना पड़ गया है, जैसा कि सरकार का कहना है तो सभी राज्यों के लिए पुराना पड़ा है। संविधान के अनुच्छेद 249 के तहत राज्यसभा को यह अधिकार प्राप्त है कि वह दो तिहाई बहुमत से राज्य सूची के विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करके पूरे देश के लिए कानून बना सकती है। सभी दलों को विश्वास में लेकर यह प्रयास क्यों नहीं किया गया? दूसरा यह कि नये संशोधनों में ऐसा कुछ नहीं है जिनसे हमारी नदियां प्रदूषण मुक्त रह सकें। एक उद्योग के लिए 10,000 रुपये का जुर्माना भी कोई जुर्माना है। अंतिम यह कि कानून चाहे कितने ही सख्त बना लीजिये अगर उन्हें भ्रष्टाचार या अन्य कारणों से लागू करने की इच्छाशक्ति नहीं होगी तो वह सिर्फ़ काग़ज़ पर ही प्रभावी प्रतीत होंगे।

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