World Boxing Championship: विश्व बॉक्सिंग में बढ़ी भारतीय चैंपियनों की संख्या
भारत ने महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप का आयोजन तीसरी बार किया। इस प्रतियोगिता के 13वें सत्र को भारतीय मुक्केबाजों के प्रदर्शन के आधार पर 2 दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। एक, भारत ने अपने विश्व चैंपियनों की संख्या 5 से बढ़ाकर 8 कर ली जिनमें 2 बॉक्सर (मैरी कॉम व निकहत जरीन) ऐसी हैं जिनके पास एक से अधिक विश्व खि़ताब हैं। मैरी कॉम, सरिता देवी, जेनी आरएल व लेखा केसी के बाद पिछले साल निकहत जरीन भारत की ओर से पांचवीं विश्व चैंपियन बनी थीं।
वह इस्तांबुल के बाद इस बार नई दिल्ली में फिर 50 किलो वर्ग में विश्व चैंपियन बनीं। उनके साथ नीतू घनघास (48 किलो), स्वीटी बूरा (81 किलो) व लवलीना बोर्गोहेन (75 किलो) भी विश्व चैंपियन बनीं। इस तरह भारत में अब विश्व चैंपियनों की कुल संख्या 8 हो गई है।

मैरी कॉम के पास 6 स्वर्ण पदक
मैरी कॉम के पास इस चैंपियनशिप के रिकॉर्ड 6 स्वर्ण पदक हैं। वैसे इस बार की प्रतियोगिता की खास बात यह रही कि भारत की 4 लड़कियां अंतिम 4 में पहुंचीं और चारों ने स्वर्ण पदक जीता। इस बार की महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप भारत के लिए कम संतोषजनक रही। ग्लोबल राजनीति की वजह से विश्व की अनेक श्रेष्ठ मुक्केबाजों ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया था। इसके बावजूद भारत अपने अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को न दोहरा सका। 2006 के सत्र में उसने 8 पदक जीते थे, जिनमें से 4 स्वर्ण, 1 रजत व 3 कांस्य थे। इस बार वह केवल 4 पदक ही जीत सका जो कि सभी स्वर्ण हैं।
बहरहाल, अगर इस नज़रिये से देखा जाये कि 2018 में मैरी कॉम (48 किलो) के स्वर्ण के बाद 2022 में निकहत (52 किलो) का स्वर्ण आया और अब 1 वर्ष के अंतराल पर ही 2023 में 4 स्वर्ण पदक आ गए हैं तो इसे अच्छी कामयाबी ही कहा जा सकता है, विशेषकर इसलिए कि टोक्यो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता 2018 व 2019 में कांस्य पदक (69 किलो) पर ही अटकी रहीं जिसका रंग उन्होंने इस बार सुनहरा (75 किलो) कर दिया।
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अलग-अलग अंदाज में जीते
26 मार्च 2023 को भारत ने 2 स्वर्ण पदक एकदम अलग-अलग अंदाज में जीते। चूंकि ओलंपिक (जहां 52 किलो वर्ग नहीं होता) को मद्देनज़र रखते हुए निकहत ने अपनी वेट केटेगरी 52 किलो से बदलकर 50 किलो कर ली थी, इसलिए उन्हें प्रतियोगिता में कोई रैंकिंग नहीं दी गई। इस वजह से उन्हें न केवल पहले राउंड से ही अपने से बेहतर मुक्केबाजों का सामना करना पड़ा बल्कि मात्र 10 दिन में फाइनल तक 6 फाइट्स लड़नी पड़ीं। फाइनल में उनके सामने 2 बार की एशियन चैंपियन न्गुयेन थि ताम थीं।
मुकाबला कड़ा था, फिर भी निकहत उन्हें 5-0 से पराजित करने में सफल रहीं। निकहत के अनुसार, ‘आज का मुकाबला मेरे लिए सबसे कठिन था… फिर भी रिंग में मैंने अपना सब कुछ झोंक दिया। यह पदक भारत के लिए है और हर उस व्यक्ति के लिए जिसने मुझे सपोर्ट किया।’
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विभाजित निर्णय से पराजित
लवलीना ने ऑस्ट्रेलिया की कैटलिन पार्कर को 5-2 के विभाजित निर्णय से पराजित किया। निकहत की जीत जहां साफ सुथरी व सिंपल थी वहीं लवलीना की जीत असंतोषजनक व विवादित थी। वह पहले चक्र में 1-4 से पिछड़ीं और दूसरे चक्र को बमुश्किल ही 3-2 से अपने पक्ष में कर सकीं। तीसरे चक्र में उन पर आक्रामक खेल का दबाव था लेकिन आक्रामक पार्कर हो रही थीं, उनके पंच सटीक पड़ रहे थे, लवलीना बचाव में लगी हुई थीं
और दूर से ही लड़ने का प्रयास कर रही थीं। ऐसा प्रतीत हुआ कि पार्कर ने बाज़ी मार ली है लेकिन सबको आश्चर्य में डालते हुए लवलीना को विजेता घोषित कर दिया गया। पार्कर अपना सिर हिलाती रह गईं। इससे एक दिन पहले यानी 25 मार्च, 2023 को नीतू व स्वीटी की सफलताएं भी काफी भिन्न थीं।

नीतू और स्वीटी ने किया कमाल
नीतू ने 2 बार की एशियन कांस्य पदक विजेता लुत्साईखान अल्तनसेटसेग (मंगोलिया) पर 5-0 से जीत दर्ज की जबकि स्वीटी ने चीन की वांग लीना को विभाजित निर्णय से पराजित किया। दोनों नीतू व स्वीटी कुछ वर्ष पहले अलग-अलग कारणों से बॉक्सिंग छोड़ना चाहती थीं लेकिन अब दोनों विश्व चैंपियन हैं। 2012 में बॉक्सिंग शुरू करने वाली नीतू ने 2 बार खेल छोड़ने का मन बनाया। एक बार जब अपने जूनियर मुकाबलों के दिनों में वह राज्य स्तर पर भी आगे नहीं बढ़ पा रही थीं और दूसरा 2016 में जब पेल्विक चोट के कारण उनकी बॉक्सिंग यात्रा पटरी से उतर गई थी।
इस दुविधा के दौरान नीतू का परिवार उनके लिए दीवार बनकर खड़ा हुआ। उनके पिता जय भगवान ने अपनी सरकारी नौकरी से बिना वेतन के 3 वर्ष के लिए छुट्टी ले ली ताकि बेटी के सपने को साकार कर सकें। अब जीत के बाद नीतू कहती हैं, ‘इस पदक का मेरे लिए बहुत महत्व है। मैंने इसकी बहुत लम्बे समय तक प्रतीक्षा की। मैंने अपना करिअर 2012 में शुरू किया था और मुझे 11 वर्ष लगे अपना पहला विश्व पदक जीतने में। इसलिए मेरे लिए यह विशेष है।
इससे मेरे परिवार की आर्थिक समस्याएं भी दूर होंगी। प्राइज मनी से कर्ज़ उतर जायेगा।’ स्वर्ण पदक जीतने पर 82.7 लाख रुपये प्राइज मनी में मिलते हैं। स्वीटी ने बॉक्सिंग छोड़ने का मन इसलिए बनाया था क्योंकि बॉक्सिंग राष्ट्रीय संघ ने उन्हें टोक्यो ओलंपिक क्वालीफ़ायर के लिए अनदेखा कर दिया था। निराशा व गुस्से में नेशनल कैंप छोड़कर वह अपने पहले प्रेम कबड्डी की ओर मुड़ गई थीं। उनके भी परिवार ने उन्हें हौसला दिया। वह रिंग में लौटीं और अब अपनी इस अविश्वसनीय जीत पर खुद को सातवें आसमान पर महसूस कर रही हैं।