World Population: अकाल या अकस्मात मौतों की संख्या में आयी भारी भरकम कमी
World Population: हाल की 2 सदियों में दुनिया की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। ईसा के एक हजार साल पहले पूरी दुनिया की आबादी 1 करोड़ 10 लाख के आसपास थी और साल 2022 में यह बढ़कर 8 अरब हो गई थी लेकिन जहां पिछली 32 शताब्दियों में दुनिया की जनसंख्या 1 करोड़ 10 लाख से बढ़कर 8000 करोड़ हुई है वहीं साल 2022 से 2082 के बीच यानी महज 60 सालों में दुनिया की आबादी 2000 करोड़ बढ़ेगी क्योंकि साल 2082 में दुनिया की आबादी के 10 बिलियन की संख्या को पार कर जाने का अनुमान है। इससे साफ पता चलता है
कि हाल की कुछ सदियों में ही जनसंख्या बेतहाशा बढ़ी है। इसकी सबसे बड़ी वजह अप्राकृतिक ढंग से होने वाली मौतों पर ज्यादा से ज्यादा काबू पा लिया जाना है। यह अकारण नहीं है कि दो सदियों पहले पूरी दुनिया में लोगों की औसत उम्र 35 साल के आसपास थी। भारत में तो गुजरी सदी के 30 और 40 के दशक में 90 फीसदी से ज्यादा लोग 60 के होने के पहले ही चल बसते थे जबकि आज भारत में औसतन उम्र 78 साल है। दुनिया में बढ़ती आबादी का सबसे बड़ा कारण अकाल या अकस्मात मौतों की संख्या में आयी भारी भरकम कमी है। यही वजह है कि दुनिया में उम्रदराज लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है और फिलहाल तो नहीं लेकिन जल्द ही एक दशक के भीतर दुनिया में कामकाजी नौजवानों की भारी कमी होने वाली है।

दुनिया में औसतन टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1% होगी
पाकिस्तान में जहां आज 60 लाख बच्चे हर साल पैदा हो रहे हैं, वहीं सन 2100 में इनकी संख्या घटकर महज 26 लाख हो जायेगी। इंडोनेशिया की 39 लाख से घटकर 11 लाख, इथोपिया की 37 लाख से घटकर 18 लाख, अमेरिका की 32 लाख से घटकर 15 लाख, बांग्लादेश में 26 लाख से घटकर महज 5 लाख और ब्राजील में भी 23 लाख की जगह घटकर सालाना बच्चे पैदा होने की संख्या 5 लाख रह जायेगी। सीधे शब्दों में कहने का मतलब यह है कि आने वाले कुछ दशकों में दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं होगा जहां जवान लड़के और लड़कियां बहुसंख्यक हों।
साल 2026 वह साल है जब दुनिया में औसतन टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) 2.1 फीसदी होगी। इसके बाद इसे लगातार घटना है। दुनिया के कई देश कई सालों से अपने नौजवानों को तरह-तरह के प्रलोभन देकर चाहते हैं कि वे ज्यादा बच्चा पैदा करें। हांगकांग, दक्षिण कोरिया और जापान तो इस मामले में उन्हें लाखों रुपये की सुविधाएं और भविष्य की सुरक्षा भी देने का वायदा कर रहे हैं। फिर भी दुनिया में लगातार प्रजनन दर घट रही है जिसकी अंतिम परिणति दुनिया में हर तरह की जरूरत के लिए नौजवानों की कमी और अर्थव्यवस्थाओं पर बोझ बनने वाले उम्रदराज लोगों की संख्या में बढ़ोतरी होगी।

भारत में जनसंख्या घटेगी
भले हमारी अपनी जनसंख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो लेकिन अगर प्रजनन दर के नजरिये से देखें तो ऐसे देशों में भारत भी शामिल है जहां प्रजनन दर मौजूदा जनसंख्या की विपरीत दिशा में जा रही है। कहने का मतलब यह कि मौजूदा प्रजनन दर से अब जनसंख्या को आगे बढ़ना नहीं बल्कि घटना ही है। इसकी वजह यह है कि साल 2022 में प्रजनन दर घटकर 1.8 फीसदी रह गई थी। इसका मतलब यह है
कि आज दुनिया में जितनी आबादी है, आने वाले कुछ दशकों में वह घटनी शुरू हो जायेगी और कम से कम 20 फीसदी अनिवार्य रूप से कुछ ही दशकों में घट जायेगी। इसकी वजह यह है कि अगर हर शादीशुदा जोड़ा कम से कम 2 बच्चे पैदा करे तब कहीं जाकर वह किसी देश की मौजूदा जनसंख्या को बरकरार रख सकता है। अगर प्रत्येक दंपति कम से कम 2 बच्चे पैदा नहीं कर रहा तो जितनी जनसंख्या है, भविष्य में उससे कम होनी ही है। भारत में फिलहाल प्रजनन दर 1.8 प्रतिशत तक गिर चुकी है यानी एक दंपति 2 बच्चे भी नहीं पैदा कर रहा जिसका कारण है आने वाले दिनों में नौजवानों की जनसंख्या घटेगी और बूढ़ों की बढ़ेगी।
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चीन के माथे पर पसीना
दुनिया के जिन देशों में प्रजनन दर 2 फीसदी से भी नीचे चली गई है, उनमें इटली में यह दर 1 फीसदी, थाईलैंड और जापान में 1.1 फीसदी, ब्रिटेन, जर्मनी और रूस में 1.3 फीसदी, ईरान, अमेरिका, ब्राजील और कोलंबिया में 1.4 फीसदी, फ्रांस में 1.5 फीसदी, टर्की और मैक्सिको में 1.6 फीसदी, बांग्लादेश और वियतनाम में 1.7 फीसदी, भारत में 1.8 फीसदी, म्यांमार और इंडोनेशिया में 1.9 फीसदी प्रजनन दर है।
इन सभी देशों में आने वाले 2 दशकों में ही नौजवानों की संख्या में बड़ा संकट दिखने लगेगा। चीन के अर्थशास्त्री तो इस पर इस कदर चिंतित हैं कि उन्होंने सरकार को साफ तौर पर चेताया है कि अगर 2035 तक चीन में कम से कम 2 फीसदी तक प्रजनन दर नहीं पहुंचती तो आने वाले दशकों में चीन श्रमिकों की जबरदस्त कमी से गुजरेगा। इसके कारण उसे हर साल कम से कम 5 लाख करोड़ युवान का घाटा सहना पड़ेगा और 2040 तक दुनिया की सर्वोच्च अर्थव्यवस्था बनने का उसका जो सपना है, उस सपने के सामने अब सवालिया निशान लग गए हैं।

बच्चे पैदा होने की संख्या में जबरदस्त गिरावट
आज की तारीख में सिर्फ भारत, चीन, नाइजीरिया, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, इथोपिया, अमेरिका, बांग्लादेश और ब्राजील ही ऐसे देश हैं जहां हर साल सबसे ज्यादा बच्चे पैदा हो रहे हैं। भारत में हर साल 2 करोड़ 2 लाख, चीन में 85 लाख, नाइजीरिया में 76 लाख, पाकिस्तान में 60 लाख, इंडोनेशिया में 39 लाख, इथोपिया में 37 लाख, अमेरिका में 32 लाख, बांग्लादेश में 26 लाख और ब्राजील में 23 लाख बच्चे हर साल पैदा होते हैं
लेकिन इस सदी के अंत तक इन सभी देशों में बच्चे पैदा होने की संख्या में जबरदस्त गिरावट देखी जायेगी। भारत 2 करोड़ 2 लाख की बजाय हर साल सिर्फ 49 लाख बच्चे पैदा करेगा। चीन जो अभी कम से कम 85 लाख बच्चे हर साल पैदा करता है, वह इस सदी के अंत तक सिर्फ 12 लाख बच्चे सालाना पैदा करेगा। चीन क्या कम प्रजनन दर वाले सभी देशों का यही हाल है।
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पुतिन ने की थी अपील
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने किसी पागलपन में रूसी महिलाओं से नहीं कहा है कि वे कम से कम 8 बच्चे पैदा करें और न ही इसकी वजह निरंतर यूक्रेन के साथ चल रही जंग है। रूसी राष्ट्रपति में पूरे होशोहवास में रूसी महिलाओं से ज्यादा से ज्यादा बच्चा पैदा करने का आह्वान किया है। गहराई से सोचें तो सच्चाई यह भी है कि पुतिन ने पहली बार ऐसा नहीं कहा। रूस के राष्ट्रपति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर कई सालों से ऐसी अपील कर रही हैं।
यही नहीं, इसके लिए क्रेमलिन ने कई प्रोत्साहन नीतियां भी चला रखी हैं। वैसे सिर्फ रूस ही की क्यों कहें, नार्वे से लेकर दक्षिण कोरिया तक एक दर्जन से भी ज्यादा देश साफ-साफ और छिपे तौर पर भी अपने यहां की महिलाओं से यही गुहार लगा रहे हैं कि वे कम से कम 4 बच्चे तो पैदा करें ही। इन देशों का ऐसा करना स्वाभाविक भी है क्योंकि आज की तारीख में दुनिया में करीब 2 दर्जन से ज्यादा देश हैं जहां प्रजनन दर बहुत तेजी से घट रही है। प्रजनन में इस कमी का सीधा निष्कर्ष यह है कि आने वाले दशकों में यहां नौजवानों की संख्या में भारी कमी होने वाली है।
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