Y Chromosome: वाई क्रोमोसोम के आनुवांशिका गुण लगातार कमजोर हो रहे
Y Chromosome: हाल ही में शोध अध्ययन के जरिये साबित करने की कोशिश की गई है, कि वास्तव में मानव जाति में नर होने के लिए जिम्मेदार वाई क्रोमोसोम के आनुवांशिका गुण लगातार कमजोर हो रहे हैं और वह पिछली कई सदियों के मुकाबले आज कहीं ज्यादा कमजोर हो चुके हैं। इसका प्रमाण अध्ययन के बिना भी देखने को मिल रहा है। आज की तारीख में दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं है, जहां कुछ दशकों पहले के मुकाबले पुरुष वीर्य की गुणवत्ता में कमी न आयी हो। लिहाजा उनका यह अध्ययन अगर डराता नहीं तो कंपकंपी से तो भरता ही है कि हो न हो आने वाले भविष्य में कभी न कभी पुरुष विलुप्त ही हो जाएं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पुरुषों के वाई क्रोमोसोम तेजी से कम हो रहे हैं।
अगर यह सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो माना जा रहा है कि अगले 46 लाख साल बाद धरती से वाई क्रोमोसोम पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे और इसी के साथ पुरुषों का नामोनिशान ही मिट जायेगा। हालांकि 46 लाख साल बहुत लंबा समय है, लेकिन पृथ्वी की अनुमानित उम्र करीब 3 करोड़ 50 लाख साल है। इसका मतलब यह है कि अगर यह भविष्यवाणी सही होती है तो धरती में करीब 3 करोड़ 4 लाख साल महिलाओं को अकेले ही रहना पड़ेगा। यह अनुमान इसलिए पूरी तरह से काल्पनिक नहीं लग रहा है, क्योंकि व्यवहारिक रूप से देखा जा रहा है कि पुरुषों के वाई क्रोमोसोम धीरे धीरे कम हो रहे हैं, साथ ही इनकी गुणवत्ता भी घट रही है। जबकि महिलाओं के एक्स क्रोमोसोम में पिछली कई शताब्दियों में कोई भी कमी नहीं देखी गई है, ये बिल्कुल नॉर्मल हैं।

वैज्ञानिक पूरी तरह से एकमत नहीं
हालांकि कुछ वैज्ञानिक कह रहे हैं कि अगर पुरुषों के वाई क्रोमोसोम बिल्कुल ही खत्म हो जाएंगे तो इनकी जगह कोई और क्रोमोसोम विकसित हो सकते हैं। हालांकि किसी अन्य क्रोमोसोम की थ्योरी को लेकर अभी सभी वैज्ञानिक पूरी तरह से एकमत नहीं हैं। स्तनपायी शिशुओं में लिंग वाई गुणसूत्र पर नर-निर्धारक जीन द्वारा तय किया जाता है। अब चूंकि वाई गुणसूत्र की गुणवत्ता कमजोर हो रही है, इसलिए एक अनुमान यह भी है कि कोई नया सेक्स जीन भी विकसित हो सकता है। वाई क्रोमोसोम के खत्म होने की आशंका इसलिए भी बढ़ रही है, क्योंकि किसी भी मनुष्य के शरीर में वाई गुणसूत्र वाली कोशिकाओं की संख्या बढ़ाने का अभी तक विज्ञान कोई तरीका नहीं ढूंढ़ पायी है। अभी तक के मुताबिक वाई गुणसूत्र कोशिकाओं की संख्या गर्भधारण के समय ही व्यक्ति की आनुवांशिक संरचना से निर्धारित हो जाती है।
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हर तरफ महिलाएं ही महिलाएं होंगी
इसके पहले भी कई ऐसी रिपोर्टें आ चुकी हैं, जिन्होंने आशंका जताई है कि अपने आक्रामक स्वभाव और कमजोर जेनेटिक आधार के चलते पुरुष एक न एक दिन दुनिया से गायब हो जाएंगे और फिर हर तरफ महिलाएं ही महिलाएं होंगी। महान मनोविद फ्रायड कहा करते थे- उग्रता, आक्रामकता एक तरह से असुरक्षाबोध का नतीजा होती है। …तो क्या पुरुषों में जो उग्रता, आक्रामकता, विशेषकर महिलाओं के प्रति, है वह इसी असुरक्षाबोध का नतीजा है? शायद भविष्य में यह भी सुनने और पढ़ने को मिले कि कन्या भ्रूण हत्या के पीछे अवचेतन में कहीं न कहीं पुरुष समाज को अपने अस्तित्व खात्मे की चिंता है। दरअसल पहले भी कई शोध आ चुके हैं जिनमें कहा गया है कि सक्रियता और आक्रामकता की विरासत ढोंने के कारण पुरुष अस्तित्व के मामले में लगातार कमजोर हो रहा है।

पर्यावरण के नुकसान का भी असर
विभिन्न पर्यावरणीय शोधों से जाहिर हो गई है कि पर्यावरण के नुकसान का भी असर सबसे ज्यादा असर पुरुषों पर पड़ रहा है। चाहे ज्यादा गर्मी हो या ज्यादा सर्दी। मौसम के अचानक रुख तेवर करने से महिलाओं से कहीं ज्यादा पुरुष मारे गए हैं या उसके शिकार दिखे हैं। मगर मौजूदा शोध परवरिश, कार्यशैली और सामाजिक इतिहास के चलते पुरुषों के पतन की बात नहीं कर रहा बल्कि इस शोध का पूर्णतः आधार जेनेटिक है। शोधकर्ता वैज्ञानिक जेनी ग्रेव्स का दावा तो यह भी है कि दुनिया के कई दूरदराज वाले हिस्सों में पुरुषों का अस्तित्व खत्म भी होने लगा है।
हालांकि यह किसी शोध से निकला निष्कर्ष नहीं है। लेकिन भारत में भी इस बात को अंशतः देखा और अनुमान लगाया जा सकता है कि जहां-जहां सामाजिक और आर्थिक बागडोर महिलाओं के हाथ में है या जहां पर महिलाएं नेतृत्वकारी भूमिका में हैं, वहां पुरुष खत्म भले न हुए हों मगर उनकी स्थिति कमजोर है। न सिर्फ आर्थिक, सामाजिक बल्कि यह स्थिति उनके जेनेटिक अस्तित्व पर भी लागू होती है। केरल, अंडमान निकोबार द्वीप और उत्तर पूर्व के कई इलाकों विशेषकर मणिपुर और मेघालय में पुरुषों की संख्या न सिर्फ महिलाओं की संख्या से कम है बल्कि उन क्षेत्रों के मुकाबले जहां पुरुष ज्यादा नेतृत्वकारी भूमिका में हैं, यहां के पुरुषों के शारीरिक गठन आदि में भी फर्क पड़ता दिख रहा है।
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