Young Voter Power: 2 करोड़ से ऊपर है नये मतदाताओं की संख्या
देश में 18वीं लोकसभा के चुनाव में 97 करोड़ मतदाता मतदान करेंगे। पूरी दुनिया में इतने मतदाता किसी भी देश में नहीं हैं। किसी देश की बात तो छोड़िए, इस साल हो रहे कई लैटिन अमेरिकी देशों के साझे मतदाता भी मिलकर इतने नहीं हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारतीय लोकतंत्र कितना विशाल और समृद्ध है। वैसे हर लोकसभा चुनाव में युवा मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। माना जाता है कि उनका झुकाव जिधर होता है, आमतौर पर वही पार्टी विजयी साबित होती है। हालांकि इस साल युवा मतदाता कुछ ज्यादा ही निर्णायक भूमिका में होंगे।
पिछले पांच साल में जिन भी युवाओं की उम्र 18 साल को क्रॉस कर चुकी है और इस साल जिनकी उम्र 18 साल की हो गई उनकी संख्या 2 करोड़ से ऊपर है। ये सब नई सरकार के चुनने में अपनी बड़ी भूमिका निभाएंगे क्योंकि ये ऐसे युवा मतदाता होंगे जो इससे पहले किसी भी लोकसभा चुनाव में वोट नहीं डाले होंगे। एक चुनाव से दूसरे चुनाव के बीच पहली बार इतनी बड़ी संख्या में मतदाता तैयार हुए हैं।
साल 2024 के लोकसभा चुनाव में स्त्री-पुरुष मतदाताओं का लिंगानुपात पिछले चुनावों के मुकाबले बदल गया है। जहां पिछले चुनाव के दौरान 1000 पुरुष मतदाताओं के मुकाबले 940 महिला मतदाता थीं इस बार 1000 पुरुषों के मुकाबले 948 महिलाएं मतदान करेंगी। कहने का मतलब यह कि पिछले पांच साल में लड़कियों के अनुपात में बेहतरी हुई है। वैसे पिछले कुछ चुनावों से लगातार मतदान में महिलाओं का अनुपात बेहतर हो रहा है मगर सांख्यिकीय अनुमानों के मुताबिक इस बार के लोकसभा चुनाव में महिलाओं का सबसे अच्छा प्रतिशत होगा। उसकी वजह यह कि महिलाएं अब घर के बाहर की जिम्मेदारियों में गंभीरतापूर्वक हिस्सेदारी करती हैं। पांच साल के लिए सरकार चुनना भी ऐसी ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
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राजनीतिक चर्चाओं में ज्यादा भागीदारी

देखने वाली बात यह है कि इस बार के युवा मतदाता चाहे वे महिलाएं हों या पुरुष, उनकी इस चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी ज्यादा सक्रिय और ज्यादा महत्वपूर्ण होगी क्योंकि इंटरनेट के चलते लगातार युवाओं का न सिर्फ लोकतांत्रिक शिक्षण हुआ है बल्कि उन्हें इसमें हिस्सेदारी की अपनी भूमिका भी जरूरी लगने लगी है। यही कारण है कि आज का युवा पहले के मुकाबले सोशल मीडिया में, राजनीतिक चर्चाओं में कहीं ज्यादा भागीदारी कर रहा है। वैसे भी देश के दूसरे किसी भी क्षेत्र को देख लीजिये हर जगह युवा लीड रोल में हैं। इसलिए राजनीति में कब तक वह पिछली बेंच पर बैठता। शायद मिलेनियल्स जनरेशन तक युवाओं में राजनीति को लेकर जो नकारात्मक सोच रही है, वह अब बदल गयी है।
चुनाव लड़ने की उम्र 18 साल करने की मांग
राजधानी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी के चुनकर आने के पहले तक ज्यादातर युवा भारत की राजनीति को बेहद भ्रष्ट और ऐसा क्षेत्र मानकर चला करते थे कि उससे उन्हें दूर ही रहना है। लेकिन इंटरनेट के कारण समाज की विभिन्न स्तरों से सीधे सीधे जुड़ाव होने के बाद और इंटरनेट के जरिये वैश्विक एक्सपोजर हासिल करने के बाद अब युवा भी इस बात को समझने लगे हैं कि कोई भी परिवर्तन राजनीति में बिना सीधी भागीदारी के संभव ही नहीं है।
यही वजह है कि अब युवा न तो राजनीति की खिल्ली उड़ाते हैं और न ही खुद को इससे बहुत दूर का साबित करने कोशिश करते हैं। यही कारण है कि पिछले पांच सालों में देश के अलग-अलग क्षेत्रों में लगातार यह मांग उठी है कि राजनीति में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ने की उम्र 18 साल की जानी चाहिए। यह बहस इतनी मजबूत है कि संभव है अगली लोकसभा के चुनाव के पहले यह मांग पूरी कर दी जाए।
एक और महत्वपूर्ण बात यह कि पिछले पांच साल में हुए ज्यादातर विधानसभा चुनावों में युवाओं की भागीदारी पहले के मुकाबले काफी बढ़ी है। ऐसे में यह उम्मीद लगायी जा सकती है कि 18वीं लोकसभा में जो चुनकर सांसद संसद पहुंचेंगे उनकी औसत उम्र पिछली लोकसभाओं के मुकाबले कम होगी। पिछली बार यह हैरानी भरी हकीकत सामने आयी थी कि एक तरफ जहां भारत दुनिया का युवा से युवतर लोकतंत्र होने की तरफ बढ़ रहा है वहीं लोकसभा के लिए चुनकर आने वाले सांसद ज्यादा बूढ़े होते जा रहे हैं यानी देश युवा हो रहा है और संसद बूढ़ी हो रही है। पिछले पांच साल में इस पर काफी चिंता व्यक्त की गई और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भाजपा और कांग्रेस में जो माहौल दिख रहा है, उससे लगता है कि इस बार युवा उम्मीदवारों को ज्यादा मौका मिलेगा।

12 प्रतिशत सांसद ही युवा थे 2019 में
पिछली लोकसभा में दक्षिणी बेंगलुरु के तेजस्वी सूर्या सबसे युवा पुरुष सांसद थे तो सबसे युवा महिला सांसद ओडिशा से 25 वर्षीय चंद्राणी मुर्मू थीं। फिलहाल चिंताजनक बाद यह थी कि 543 सांसदों वाली लोकसभा में सिर्फ 12 प्रतिशत सांसद ही युवा थे और उससे भी कम 25 से 28 साल के युवा थे। इस साल 303 बिल्कुल नए यानी पहली बार चुनकर आये थे। आमतौर पर नये चुनकर आने वाले सांसद पहले युवा हुआ करते थे जबकि इस बार अधेड़ से भी ज्यादा उम्र के आये। इस ट्रेंड से साफ हो गया था कि भारत की संसद देश की तरह लगातार युवा होने की बजाय बूढ़ी हो रही थी। साल 2014 में जहां 8 फीसदी युवा सांसद चुनकर संसद पहुंचे थे वहीं 2019 में भी इनकी संख्या महज 12 प्रतिशत ही थी। इन दोनों 2014 और 2019 लोकसभा के मुकाबले 1952 की पहली लोकसभा में 25 फीसदी और 1957 की दूसरी लोकसभा में युवा सांसदों की भागीदारी 30 फीसदी तक थी।
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युवाओं की संख्या घटती गई
साल 2004 में भी चुनी गई लोकसभा में 20 फीसदी युवा संसद पहुंचे थे लेकिन फिर लोकसभा में युवाओं की संख्या घटती गई। इसके बरक्स इस बार उम्मीद है कि युवा सांसदों की भागीदारी बढ़ेगी। अगर वह 35 फीसदी के ऊपर नहीं भी पहुंचती तो भी इस बार के चुनावों में 12 फीसदी या 10 फीसदी नहीं रहने वाली क्योंकि पिछले पांच साल के भीतर जितनी भी विधानसभाओं के चुनाव हुए हैं उन सबमें पहले के मुकाबले 10 से 18 फीसदी तक ज्यादा युवाओं को टिकटें दी गई हैं। भाजपा की चुनाव कमेटी के रणनीतिक वक्तव्यों को बिटवीन द लाइंस पढ़ने की कोशिश करें तो साफ है कि इस बार भाजपा युवाओं को ज्यादा टिकट देगी। भले इसकी वजह पिछले सांसदों के चुनाव जीत पाने की आशंका हो मगर इससे साफ जाहिर हो रहा है कि साल 2024 में बनने वाली संसद न सिर्फ पहले के मुकाबले ज्यादा युवा होगी बल्कि पहले के मुकाबले ज्यादा पढ़े-लिखे और प्रोफेशनल युवा भी संसद पहुंचेंगे।
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