Carnivorous Plants: किताबों का किस्सा भर रह जायेंगी प्रजातियां
Carnivorous Plants: मनुष्य द्वारा दुर्लभ, जंगली पौधों की प्रजातियों का लगातार खात्मा किया जा रहा है। इन पौधों के साथ साथ उन कीटभक्षी पौधों का सुंदर संसार भी उजड़ रहा है, जो अपनी विलक्षणता के कारण मानव के लिए हमेश कौतुहल का विषय रहे हैं। साजसज्जा,औषधियों के बनाने हेतु इन पौधों का बड़ी मात्रा में दोहन किया जा रहा है। आज हालत यह है कि कीटभक्षी इन पौधों की कई प्रजातियां विलुप्तप्राय होने की कगार पर हैं।
अगर मनुष्य ने अपने कार गुजारियों पर रोक नहीं लगायी, इन्हें संरक्षित करने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं किये तो वह दिन दूर नहीं जब कुदरत की ये अद्भुत कीटभक्षी पौधों की प्रजातियां केवल सुनने, सुनाने और किताबों का किस्सा भर रह जायेंगी। पौधों की कई ऐसी प्रजातियां हैं, जिन्हें मांसभक्षी या कीटभक्षी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये कीट पंतगों को अपना भोजन बनाते हैं। यह पौधे हालांकि सूर्य की रोशनी, हवा और पानी से अपना भोजन स्वयं बनाते हैं लेकिन अन्य पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए यह अन्य कीटों पर निर्भर होते हैं।

हमेश से जिज्ञासा का विषय रहे
कीटभक्षी पौधों की अधिकतर प्रजातियों के पौधे दूसरे कीटों को पकड़ने के लिए अपनी पत्तियों का उपयोग करते हैं। ये अपनी पत्तियों को कुछ इस तरह से फैलाकर या सिकोड़कर बना लेते हैं कि इनमें कीट पतंगे उलझकर या गिरकर मर जाते हैं और इस तरह यह पौधे उन्हें अपना भोजन बना लेते हैं। मनुष्य के लिए यह कीटभक्षी पौधे हमेश से जिज्ञासा का विषय रहे हैं।
इन पौधों की कुछ प्रजातियां जो आकार में बड़ी होती है, ये छोटे चूहों, मे सजयंकों या पक्षियों को अपना शिकार बनाते हैं। लेकिन इनका मुख्य शिकार उड़ने वाले छोटे कीट, पतंगे, टिड्डे, घोंघे, तितलियां इत्यादि होते हैं। पूरी दुनिया में इन कीटभक्षी पौधों की लगभग 600 प्रजातियां पायी जाती है। यह पौधे अलग अलग तरह की जलवायु में पैदा होते हैं, लेकिन दलदली स्थानों, वनों में यह ज्यादा पाये जाते हैं।
इनके दलदली जलवायु में पाये जाने का सबसे बड़ा कारण है वहां पर नाइट्रोजीकरण की प्रक्रिया का सही तरह से सम्पन्न न हो पाना। ऐसे स्थानों की मिट्टी में नाइट्रेट की कमी से नाइट्रोजन की भी कमी हो जाती है, जिसकी कमी की पूर्ति के लिए पौधों की यह प्रजातियां कीट पतंगों को अपना भोजन बनाती है। यह पौधे कीटों को पकड़ने के लिए दो प्रकार से कार्य करती हैं। एक विधि में पौधों के अंगों में किसी जीव के फंसने के बाद वे जीव उनके चंगुल से खुद को छुड़ाने का प्रयास करते हैं और इन पौधों को इसके लिए अपनी ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है। लेकिन दूसरे तरीके में इन प्रजातियों के पौधों की संरचना कुछ इस तरह की होती है कि इनमें कीट स्वयं ही गिरकर उलझकर मरता है।

मीठे रस का स्राव होता है पत्तियों में
ट्रोपिकल पिचर प्लांट्स इन पौधों की पत्तियां चौड़ी होती हैं। भिन्न प्रजातियों के पिचर का आकार भिन्न भिन्न होता है। इनकी पत्तियों में उपस्थित ग्रंथियों से बड़ी मात्रा में मीठे रस का स्राव होता है, जिससे आकर्षित होकर कीट पतंगे इस पर बैठ जाते हैं। यह ग्रंथियां पत्ती के कोने पर होती है, जहां पर वे चिकनी होती है और इसमें बैठने वाला जीव अंदर गिर जाता है।
उसके नीचे गिरते ही पत्ती की अंदर की ओर कई छोटे छोटे रोम होते हैं जो फैलकर कीट को ऊपर की ओर चढ़कर बाहर निकलने से रोकते हैं और कीट अंदर की ओर फिसल जाता है। इसमें अंदर की ओर एंजाइम युक्त पानी भरा होता है जिससे कीट की मृत्यु हो जाती है और पत्तियों में मौजूद पाचक एंजाइम कीडे़ के शरीरिक अंगों का पाचन कर घुलन शील द्रव्य अवस्था में ले आते हैं और उसी द्रव से पौधे पदार्थ का अवशोषण करते हैं।
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किनारों पर कांटे जैसे बड़े रोम
वीनस फ्लाई ट्रेप इन कीटभक्षी पौधों की पत्तियां अपने अंतिम समय पर दो लोब्स में बदल जाती हैं। इनके किनारों पर कांटे जैसे बड़े रोम होते हैं, इन रोमों में से कुछ बेहद संवेदनशील होते हैं। किसी कीड़े के पत्ती पर बैठते समय दोनों लोब्स ऊपर की ओर मुड़कर बंद हो जाते हैं और कीडे को कसकर अपने भीतर बंद कर लेते हैं, और वह बाहर नहीं निकल पाता। पत्तियों की भीतरी सतह से निकलने वाले एंजाइम से कीड़े के अव्यवों को पौधों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। जो भाग अवशोषित नहीं हो पाता, पत्तियों के दोबारा खुलने पर वह हवा में उड़ जाता है।
ब्लैडर वटर्स यह जलीय प्रवृत्ति वाले पौधे होते हैं, जिनके तने पर छोटी छोटी थैलीनुमा रचनाएं होती हैं। जिन्हें ब्लैडर्स कहा जाता है। इन्हीं ब्लैडर्स के जरिये ये पानी में तैरने वाले छोटे जीवों को पकड़ते हैं। ब्लैडर का आकार नाशपती के समान होता है। जिसका व्यास 2 से 4 मिलीमीटर होता है। ब्लैडर के अंदर कम दबाव बनता है और ऐसे में पानी के साथ तैरने वाले छोटेछोटे जीव ब्लैडर के अंदर खिंच जाते हैं। अंदर की ओर दीवारों में पाचक एंजाइम का स्राव होता रहता है। जिससे मृत सूक्ष्म जीव को पचाने का कार्य किया जाता है।

मक्खन जैसी पौधों की पत्तियां
बटरवर्ट दलदलीय जलवायु में उगने वाले बटरवर्ट्स पौधों की पत्तियां मक्खन जैसी दिखायी देती है। इनकी पत्तियों में अगले सिरों पर होने वाले द्रव्य के स्राव के कारण कीट इसमें चिपक जाते हैं और इनकी पकड़ से निकल नहीं पाते। जब वह निकलने के लिए छटपटाते हैं तो इन पत्तियों से निकलने वाले एक दूसरे अम्लीय एंजाइम युक्त पदार्थ का स्राव होता है, जिसके जरिये कीट का पाचन होता है। इस तरह कीट के वे हिस्से जो यह पौधे अवशोषित नहीं करते, वह धीरेधीरे हवा में उड़ जाते हैं।
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