Global Friendship – फेसबुक ने लोगों को वैश्विक मित्रता का स्वाद चखाया
Global Friendship: इंटरनेट के आने के बाद आज पूरी दुनिया में 30 फीसदी से ज्यादा ऐसे लोग हैं, जिनके दुनिया के किसी कोने में एक से लेकर एक दर्जन तक दोस्त हैं और याद रखिए ये बिल्कुल आम लोगों की बात हो रही है। इंटरनेट ने, खासतौर पर फेसबुक ने आम लोगों को भी वैश्विक मित्रता का स्वाद चखाया है। भले बहुत कुछ लेना देना न हो और यह मित्रता अभी ज्यादातर लोगों के लिए फैशन के स्तर की ही हो, लेकिन बहुत तेजी से वास्तविक ग्लोबल फ्रेंडशिप भी लोगों के बीच विकसित हो रही है |
और निश्चित रूप से इसके जबरदस्त फायदे भी हुए हैं और निःसंदेह कुछ नुकसान भी। इंटरनेट के पहले तक यानी 20वीं सदी के आखिरी दशकों तक भी दुनिया के महज 5 से 10 फीसदी लोगों को ही विश्व के अलग अलग देशों के बारे में वास्तविक जानकारियां होती थीं। जबकि आज इंटरनेट की बदौलत दुनिया में 20 से 25 फीसदी महज युवा ऐसे हैं, जो दुनिया के बारे में बिल्कुल सही सही जानकारियां रखते हैं और इन जानकारियों का सबसे बड़ा स्रोत है ग्लोबल फ्रेंडशिप।
पश्चिमी दुनिया में भारत को लेकर अज्ञानता
बहुत लंबे समय तक पश्चिमी दुनिया में भारत को लेकर अज्ञानता रही है। बावजूद इसके कि हिंदुस्तान में ढाई सौ सालों तक अंग्रेजों ने शासन किया है और अंग्रेजों के साथ ही फ्रेंच व पुर्तगाली भी भारत में लगातार पिछली तीन चार सदियों से किसी न किसी रूप में मौजूद रहे हैं। बावजूद इसके 99 फीसदी आम यूरोपीय लोगों के लिए 20 वीं सदी के आखि़री दशकों तक भारत वाकई साधुओं और सपेरों का ही देश रहा है जैसा कि भारत को लेकर कई पश्चिमी सैलानी लिखते और कहते रहे हैं।
लेकिन आज ऐसा नहीं है। आज ऑस्ट्रेलिया में जूनियर हाईस्कूल के 10 से 15 फीसदी छात्र ऐसे हैं, जो केरल और उत्तराखंड के बारे में उतनी ही सघनता से जानते हैं जैसे भारत में केरल के नौजवान उत्तराखंड के बारे में और उत्तराखंड के केरल के बारे में जानते हैं। दुनिया के कोने कोने तक नयी पीढ़ी के बीच दुनिया की जो यह वास्तविक जानकारियों की रोशनी फैली है, उसकी सबसे बड़ी वजह ग्लोबल फ्रेंडशिप है। इसीलिए पश्चिम में अब फ्रेंडशिप के नाम पर लोग बड़ी सहजता से कंधे उचकाकर कहते हैं, ‘नाउ फ्रेंडशिप इज ग्लोबल’।
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अमेरिका में पक्के दोस्त नहीं होते
वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम से पिछले साल ये आंकड़े सामने आये थे कि अमेरिका में आज लोगों के ज्यादा पक्के दोस्त नहीं होते, जैसे 30 सालों पहले हुआ करते थे। लेकिन आज हर तीसरे अमेरिकी के कम से कम दो या तीन दोस्त धरती के किसी दूसरे कोने में होते हैं, जिनके साथ वह वैसी ही अपने सुख, दुख बांटते हैं जैसे अपने बचपन के दोस्तों के साथ बांटते हैं। ‘सेंटर ऑन अमेरिकन लाइफ’ नाम के इस सर्वे के मुताबिक अब महज 13 फीसदी वयस्क अमेरिकी ही हैं, जिनके कम से कम 10 मित्र हैं। जबकि 30 साल पहले हर अमेरिकी के औसतन 30 मित्र हुआ करते थे। हालांकि यह दुनिया में सबसे ज्यादा थे। अमेरिका से कहीं ज्यादा दोस्ती के मामले में दूसरे देश गरीब हुए हैं।
मसलन आज औसतन भारतीय लोगों के पास सिर्फ छह अच्छे दोस्त हैं, उनमें भी बमुश्किल एक या दो ही क्लोज फ्रेंड हैं। तीन साल पहले 10 हजार लोगों पर हुई एक ग्लोबल स्टडी के मुताबिक जिसमें ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, भारत, मलेशिया, सऊदी अरब और यूएई शामिल थे। इस सर्वे के मुताबिक सिर्फ सऊदी अरब में ही लोगों के सबसे ज्यादा पक्के दोस्त करीब 7 के आसपास थे। भारत में पक्के दोस्त तो औसतन ढाई ही थे। सवाल है आखिर मित्रता के मनोविज्ञान और भूगोल में यह इतनी उलट पुलट क्यों और कैसे हुई? तो इसमें एक फैक्टर की चर्चा तो हम कर ही चुके हैं कि इंटरनेट के बाद हर आम और खास के लिए वैश्विक दोस्ती का दरवाजा खुला है।
लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप के प्रति झुकाव
वैश्विक संचार सुविधाओं ने लोगों में बहुत तेजी से ग्लोबल फ्रेंडशिप या वैश्विक दोस्ती का जज्बा पैदा किया है। लेकिन इससे भी बड़ी एक बात जो हुई है, वह है विश्वव्यापी कोरोना महामारी। दरअसल दो सालों तक दुनिया के ज्यादातर लोग, ज्यादातर समय घर में अकेले कैद रहे हैं और इस दौरान लोगों का आपस में संपर्क महज संचार माध्यमों के जरिये ही रहा है। इसीलिए अब एक तो रिश्तों में दूरस्थ रिश्तों यानी लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप के प्रति बहुत तेजी से झुकाव हो रहा है, दूसरी बात यह कि जब मशीनी संपर्क साधने से ही हमारी ज्यादातर बातचीत और कार्यव्यापार हो जा रहे हैं तो दोस्ती का भी यही सबसे मजबूत जरिया बनकर उभरा है।
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वैश्विक दोस्ती का कारण संचार क्रांति
दुनिया में तेजी से बढ़ती और मजबूत होती वैश्विक दोस्ती का कारण संचार क्रांति है। बढ़ती वैश्विक दोस्ती से कोई नुक्सान नहीं है बल्कि फायदा ही हुआ है। यह नौजवान पीढ़ी में बढ़ती वैश्विक दोस्ती का ही कमाल है कि आज की युवा पीढ़ी अब के पहले किसी भी समय की युवा पीढ़ी के मुकाबले दुनिया के बारे में ज्यादा वास्तविक जानकारियां रखती हैं। दुनिया के अलग अलग धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों और समुदायों को लेकर नई पीढ़ी में ज्यादा बेहतर और सही जानकारी है। इसलिए अज्ञानता से जो एक सनसनीखेज अलगाव या अजनबियत होती थी, उससे अब काफी हद तक मुक्ति मिली है।
दुनिया की नई पीढ़ी में किसी भी जाति, समुदाय या रंग को लेकर अब पहले जैसे आग्रह नहीं है। यह इतिहास का पहला ऐसा दौर है, जब अफ्रीकी, अमेरिकी, एशियाई और यूरोपीय किशोर सचमुच में आपस में पक्के दोस्त हैं। क्योंकि वे एक दूसरे के बारे में अब तक के किसी भी जमाने से कहीं ज्यादा जानते हैं और सबसे अच्छी बात यह है कि वे एक दूसरे के बारे में सीधे एक दूसरे से ही जानते हैं। इसलिए जानकारी ज्यादा ठोस, विश्वसनीय और व्यवहारिक है। कहना नहीं होगा कि इसीलिए तमाम बाधाओं और राजनैतिक सरहदों के बावजूद लोगों में वैश्विक मित्रता की भावनाएं बहुत तेजी से मजबूत हो रही हैं।
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