Motivational Story: लक्ष्य तय करें तो जी जान लगा दें
वास्तव में जब हम आसान चीजों की तरफ फिसल जाते हैं तो अपने लक्ष्य से भी फिसल जाते हैं। अगर लक्ष्य हमने तय किया है तो तब तक किसी और चीज की तरफ आंख उठाकर नहीं देखना चाहिए जब तक कि वह लक्ष्य हासिल न हो जाए। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे और कई सारी चीजें एक साथ पाने के लिए लगे रहेंगे तो मन में निराशा ही होगी। हो सकता है छोटी छोटी सफलताएं आपको अपने सपने को हासिल न कर पाने में सांत्वना का काम करें, लेकिन यकीन मानिये ये आपका ही निर्णय, आपकी ही हरकत होती है, जिसके वजह से आप अपना लक्ष्य नहीं हासिल कर पाते, अपना मूल सपना नहीं पूरा कर पाते। इसलिए जब तक आपका सपना पूरा न हो जाए चिड़ियां की आंख की तरह सिर्फ और सिर्फ अपने सपनों पर नजर रखो।

कभी किस्मत को, कभी जमाने को दोष
दरअसल हममें से जब भी कोई अपना लक्ष्य चुनता है तो वह इस बात पर आमतौर पर ध्यान नहीं देता कि इस लक्ष्य को पाने के लिए उसे बहुत कुछ कुर्बान करना पड़ेगा। वह लक्ष्य के लिए खाका बना लेता है और सोचने लगता है कि इसे तो मैं यूं हासिल कर लूंगा, ऐसे हासिल कर लूंगा। इसके अलावा ठीक उसी दौरान यह भी पा लूंगा, वह भी पा लूंगा, ऐसा करके वह दूसरे शॉर्टकट भी ढूंढ़ लेता है। अब होता यह है कि जब तात्कालिक शार्टकट हासिल करना होता है, वो लक्ष्य के मुकाबले निश्चित रूप से आसान होते हैं, वह उन्हें हासिल कर लेता है। लेकिन इन छोटी छोटी सफलताएं उसके बड़े लक्ष्य को उससे दूर कर देती हैं। कुछ दिनों के बाद वह हताश हो जाता है।
उसे लगता है कि उसके पास सारी प्रतिभा है। मेहनत का माद्दा भी है, फिर भी आखिर उसे वह सफलता क्यों नहीं मिल रही, जिसे वह चाहता है। अब वह इसके लिए खुद को नहीं कभी किस्मत को, कभी जमाने को, कभी भ्रष्टाचार को दोष देने लगता है। दरअसल इस कहानी का सबक ये है कि हम जब भी अपना कोई लक्ष्य तय करें, उसके लिए जी जान लगा दें। धरती-आसमान एक कर दें। जब तक हमें हमारा तय किया गया लक्ष्य हासिल नहीं होता, किसी भी तरफ न भटकें, चाहे जितनी आसानी से चीजें उपलब्ध हों।
स्वामी विवेकानंद से लें प्रेरणा
एक बार स्वामी विवेकानंद अपने आश्रम में कुछ काम कर रहे थे, साथ ही अपने चाहने वालों से बातचीत भी कर रहे थे। उसी समय वहां एक व्यक्ति आया, वह देखने से ही लग रहा था बहुत दुखी है। स्वामी जी कुछ पूछते इसके पहले ही वह उनके पैरों में गिर पड़ा। स्वामी ने उसे उठाया और पूछा समस्या क्या है? वह बोला महाराज, मैं दिन रात मेहनत करता हूं, खूब मन लगाकर मेहनत करता हूं, लेकिन फिर भी सफल नहीं हो पा रहा? स्वामी ने कुछ क्षणों तक उस व्यक्ति के बारे में सोचा और उनके दिमाग में तुरंत उसके सवाल का जवाब आ गया, लेकिन उन्होंने उसे तुरंत जवाब नहीं दिया। स्वामी ने उस व्यक्ति से कहा, लो तुम मेरे कुत्ते को जरा 15-20 मिनट टहला लाओ, तब तक मैं तुम्हारी समस्या का समाधान ढूंढ़ता हूं कि आखिर दिन रात मेहनत करने के बाद भी तुम सफल क्यों नहीं हो रहे?
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व्यक्ति ने कहा ठीक है, उसने स्वामी से उनके पालतू कुत्ते की रस्सी पकड़ ली और उसे टहलाने चला गया। कहे के मुताबिक वह 20-25 मिनट में लौट आया। उसके लौटने पर स्वामी ने पहले उसकी तरफ और फिर अपने पालतू कुत्ते की तरफ देखा और कहा क्या बात है, यह कुत्ता तो बहुत थका हुआ महसूस हो रहा है, अरे यह तो हांफ भी रहा है। लेकिन तुम तो थके नहीं लग रहे, बात क्या है? इस पर उस व्यक्ति ने कहा, ‘स्वामी जी मैं तो सीधा अपने रास्ते पर चल रहा था, जबकि यह कुत्ता यहां, वहां रास्ते भर भाग रहा था। कुछ भी चीज देखने पर उसकी तरफ दौड़ जाता। इसी वजह से ये थका लग रहा है।’
उसका जवाब सुनकर स्वामी मुस्कराए और कहा, तुम्हारी भी यही समस्या है वत्स। तुम्हारी मंजिल तो सामने है, लेकिन तुम मंजिल की बजाय कुत्ते की तरह कभी इधर भागते हो, कभी उधर भागते हो और फिर शिकायत करते हो कि तुम्हें तुम्हारी मंजिल नहीं मिल रही। स्वामी जी बात सुनकर उस व्यक्ति को अपनी समस्या का पता चल गया। उसने स्वामी जी के पैर छुए और कहा समझ गया। मैं खुद ही अपने लक्ष्य से भटक रहा हूं।
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