ward off boredom – सामाजिक मेलजोल और मित्र मंडली को बढ़ाने में उपयोगी
ward off boredom: शुरुआती चरणों में सेवानिवृत्ति से निपटना मुश्किल होता है क्योंकि पर्याप्त समय होने के बावजूद कुछ करने के लिए हाथ खाली होते हैं। इसलिए स्वयं को व्यस्त रखना महत्वपूर्ण है ताकि अवसाद में न आएं। ऐसे में आपके शौक मददगार हो सकते हैं। पढ़ना शौक की सूची में शीर्ष पर है। पढ़ने से आप मानसिक रूप से भी फिट रहेंगे और आपका दिमाग भी तेज होगा। पुस्तक क्लब सामाजिक मेलजोल के लिए अच्छा है क्योंकि यह अकेलेपन को दूर रखेगा और चिंता या अवसाद को बढ़ने से रोकेगा। वरिष्ठ नागरिकों के लिए शतरंज एक आनंददायक शौक है। यह उन्हें मानसिक रूप से चुस्त रखने के अलावा उनके सामाजिक मेलजोल और मित्र मंडली को बढ़ाने में भी मदद करता है।
लिखना एक क्लासिक विकल्प है। सेवानिवृत्त लोग अपने कामकाजी वर्षों के दौरान जो कुछ भी सीखा है उसके बारे में लिख सकते हैं। इससे मन और शरीर स्वस्थ रहेगा। वहीं खाना पकाने से मानसिक खुशी मिलने के साथ गतिशीलता बनाए रखने में भी मदद मिलती है। यह कार्य शरीर के लिए क्या अच्छा है या क्या नहीं है, यह जानने का भी एक अच्छा तरीका है। संगीत खुश और तनाव मुक्त रखने के साथ याददाश्त को भी बेहतर बनाएगा। इसे बजाने से शारीरिक स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है। मुंह के अंगों जैसे उपकरण फेफड़ों के स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार करते हैं और गतिशीलता को भी मजबूत करते हैं।
वरिष्ठ नागरिक मुफ्त के ‘वकील’
यदि आप अपने जीवन को संवारना चाहते हैं तो बुजुर्गों के पास बैठें, उनकी सेवा करें, क्रोध मिट जाएगा। इस तरह के अनेक लाभ हैं बुजुर्गों की छांव में बैठने के। ये बातें शास्त्र कहते हैं। जो काम करें बुजुर्गों की सलाह लेकर करें। नुकसान से बच जाएंगे। लाभ ही लाभ होगा। बुजुर्गों के पास उम्रभर का तजुर्बा होता है। वे अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे होते हैं। बुजुर्गों के बताए रास्ते पर चलेंगे तो कभी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। ये आपको मुसीबत रूपी धूप से बचाते हैं।
बुजुर्ग मुफ्त में बिना कोई पैसा लिए घर की चौकीदारी करते हैं, वह भी ईमानदारी से। बुजुर्गों से जो मुफ्त में आपको मिलता है वह बाजार में पैसे खर्च करके भी नहीं मिल सकता। बुजुर्ग आपके वकील भी हैं। मुफ्त में सलाह देते हैं। उलझे मसलों को सुलझा देते हैं। यदि किसी के साथ रंजिश चल रही हो तो उसके साथ सुलह करवा देते हैं। बुजुर्ग घर के डॉक्टर भी हैं। डॉक्टर तो पैसे लेकर देखता है। ये मुफ्त में इलाज कर देते हैं। बुजुर्ग तुम्हारा बैंक भी हैं। तुम्हें जब कभी पैसों की जरूरत पड़ती है, उसे भी पूरी कर देते हैं।
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बूढ़े होने लगे हैं क्या, संकेतों से जानें
स्पेन के नेशनल सेंटर फॉर ऑन्कोलॉजिकल इन्वेस्टिगेशंस के डॉक्टर मैन्युअल सेरानो साइंस ऑफ एजिंग नाम की किताब लिखने वालों में से एक हैं। इस किताब में शरीर के भीतर होने वाली उन मुख्य प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है जो उम्र बढ़ने के साथ होती हैं। हमारा डीएनए एक तरह का जेनेटिक कोड होता है जो कोशिकाओं के बीच संचरित होता है। उम्र बढ़ने से इन जेनेटिक कोड के संचरण में गड़बड़ी होनी शुरू हो जाती है। धीरे-धीरे यह कोशिकाओं में जमा होना शुरू हो जाती है।
इस प्रक्रिया को आनुवांशिक अस्थिरता के रूप में जाना जाता है। अगर ये अस्थिरता बढ़ जाती है तो यह कैंसर में भी तब्दील हो सकती है। हर डीएनए सूत्र के अंतिम छोर पर कैप जैसी संरचना होती है जो हमारे क्रोमोसोम्स को सुरक्षित रखते हैं। ये बिल्कुल वैसी ही संरचना होती हैं जैसे हमारे जूतों के फीतों की जिसमें फीते के अंतिम छोर पर एक प्लास्टिक का टिप लगा होता है। इन्हें टेलोमर्स कहते हैं। हम जैसे-जैसे उम्रदराज होते जाते हैं ये कैप रूपी संरचना हटने लगती है और क्रोमोसोम की सुरक्षा ढीली पड़ने लगती है। इस वजह से बीमारियां हो सकती हैं।
कोशिकाओं का व्यवहार होता है प्रभावित
हमारे शरीर में एक विशेष प्रकार की प्रक्रिया होती है जिसे डीएनए एक्सप्रेशन कहते हैं। इसमें किसी एक कोशिका में मौजूद हजारों जीन्स ये तय करते हैं कि उस कोशिका को क्या करना है। मसलन, क्या उस कोशिका को त्वचा वाली कोशिका के तौर पर काम करना है या मस्तिष्क कोशिका के रूप में। ऐसे में कोशिकाएं भी अपने तय व्यवहार से अलग तरीके से व्यवहार कर सकती हैं।
कोशिकाओं में क्षतिग्रस्त घटकों के संचय को रोकने शरीर में नवीनीकरण की क्षमता होती है लेकिन बढ़ती उम्र के साथ ही यह क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है। ऐसे में कोशिकाएं जहरीले प्रोटीन जमा करने लगती हैं। तब अल्जाइमर, पार्किन्संस, मोतियाबिंद का खतरा बढ़ जाता है। बढ़ती उम्र के साथ कोशिकाएं वसा और शक्कर के तत्व को सोखने की क्षमता खोती जाती हैं। इसके चलते बहुत बार मधुमेह की शिकायत हो जाती है।
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काम करना बंद कर देता है माइटोकॉन्ड्रिया
माइटोकॉन्ड्रिया शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का काम करता है लेकिन समय के साथ ये अपनी क्षमता खोने लगते हैं। इनके कमजोर पड़ने से डीएनए पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। जब कोई कोशिका बहुत अधिक चोटिल हो जाती है तो वह विघटित होना तो बंद हो जाती है लेकिन मरती नहीं है। ये जॉम्बी सेल अपने आस-पास की कोशिकाओं को भी संक्रमित करने लगती है। इसके चलते पूरे शरीर में सूजन हो जाती है। कोशिकाएं हमेशा एक-दूसरे से संपर्क में रहती हैं लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है उनका ये आपसी संपर्क घटने लग जाता है। इसका असर यह होता है कि शरीर में सूजन आ जाती है। नतीजतन वे रोगजनक और घातक कोशिकाओं के प्रति सक्रिय नहीं रह जाती हैं।
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