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Reading: Deepawali Festival: दीपावली में क्यों की जाती लक्ष्मी-गणेश की पूजा
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Deepawali Festival: दीपावली में क्यों की जाती लक्ष्मी-गणेश की पूजा

Deepawali Festival: अगर हमारे पास धन हो और बुद्धि न हो तो धन बेकार है और अगर बुद्धि हो लेकिन धन न हो तो बुद्धि भी बेकार है।

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/10/29 at 12:22 PM
WeStory Editorial Team
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5 Min Read
Deepawali Festival
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Deepawali Festival – धन और बुद्धि दोनों की एकसाथ कामना का पर्व

Deepawali Festival: अगर हमारे पास धन हो और बुद्धि न हो तो धन बेकार है और अगर बुद्धि हो लेकिन धन न हो तो बुद्धि भी बेकार है। इसलिए दीपावली में धन और बुद्धि दोनों की कामना की जाती है। इसीलिए दिवाली के समय लक्ष्मी और उनके दत्तक पुत्र गणेश जी की पूजा साथ साथ होती है, यह साझी पूजा भी साबित करती है कि इसका कर्मकांड के जरिये धन की कामना नहीं बल्कि धन को पवित्र और सकारात्मक अर्थ देना है।दिवाली के समय की जाने वाली लक्ष्मी पूजा हमें यह भी याद दिलाती है कि धन अस्थिर और क्षणिक होता है। जैसे लक्ष्मी जी को चंचला कहा जाता है, वैसे ही धन भी हमेशा स्थिर नहीं रहता।

Table of Contents
Deepawali Festival – धन और बुद्धि दोनों की एकसाथ कामना का पर्वअंधेरी रात में अंधकार से प्रकाश की ओर गमनधन का सदुपयोग और सम्मान होसकारात्मक शक्ति है धन

अंधेरी रात में अंधकार से प्रकाश की ओर गमन

धन की यह प्रकृति हमें संदेश देती है कि यह किसी के पास स्थाई रूप से जीवन में तभी रह सकता है जब उसमें संयम, पुरुषार्थ, विवेक और इसके प्रति निष्ठा होगी। धन के लिए पूजा की भावना किसी व्यक्ति की सकारात्मकता का द्योतक है। यह भावना मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। ऐसे व्यक्ति को यह मानसिकता अधिक मेहनत, ईमानदारी और सही दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करती है। साथ ही धन अर्जन के पीछे लक्ष्मी पूजा का औचित्य यह है कि यह हमें धन और समृद्धि के प्रति एक संतुलित, नैतिक और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। जैसा कि हम अपनी परंपराओं से जानते और मानते हैं कि मां लक्ष्मी सम्पदा, सौंदर्य और प्रकाश की भी देवी हैं, जबकि प्रथम पूज्य भगवान गणेश बुद्धि और विवेक के देवता हैं। इसीलिए कार्तिक अमावस्या की घोर अंधेरी रात में अंधकार से प्रकाश की ओर गमन के लिए गणेश जी और लक्ष्मी जी की पूजा साथ साथ की जाती है।

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धन का सदुपयोग और सम्मान हो

धार्मिक दृष्टि से इस पूजा के बिना दिवाली का पर्व अधूरा है। लक्ष्मी जी की पूजा का महज धार्मिक महत्व नहीं है, इसके पीछे एक मानवीय मनोविज्ञान भी है, जो हमें न सिर्फ धन कमाने बल्कि उसके सदुपयोग और उद्देश्य की पवित्रता के लिए भी सचेत रहने का आग्रह करता है। लक्ष्मी जी की पूजा करके, उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करने वाला कोई इंसान, उन्हें सिर्फ धन की देवी नहीं मानता, बल्कि उन्हें समृद्धि, संपन्नता और सौभाग्य का प्रतीक भी मानता है। यह पूजा हमें याद दिलाती है कि केवल धन ही जीवन में महत्वपूर्ण नहीं है, मानसिक शांति, संतुलन और पारिवारिक सुख भी इतने ही कीमती हैं। लक्ष्मी पूजा के ये प्रतीक, ये औचित्य हमें एहसास दिलाते हैं कि समृद्धि का अर्थ केवल आर्थिक नहीं, बल्कि समग्र रूप से उन्नति करना है।

लक्ष्मी पूजा से हम समग्रता में सम्पन्न होना चाहते हैं। लक्ष्मी पूजा में धन की कामना तो है ही उसका सम्मान भी है। लक्ष्मी पूजा यह संदेश देती है कि धन का सदुपयोग और सम्मान होना चाहिए। इसे केवल खर्च करने या संग्रह करने के बजाय, उसे सही दिशा में लगाना चाहिए, चाहे वह शिक्षा हो, परोपकार हो, या अपने समुदाय की भलाई के लिए हो। दिवाली पर लक्ष्मी पूजा एक सामूहिक संस्कृति है। एक परंपरागत अनुशासन और एक धार्मिक विधान है। इसे गहरे मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाए, तो पता चलता है कि इसके कितने मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक औचित्य हैं। सबसे पहले तो लक्ष्मी पूजा धन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करती है।

सकारात्मक शक्ति है धन

लक्ष्मी पूजा के माध्यम से व्यक्ति न सिर्फ धन को एक सकारात्मक शक्ति के रूप में देखता है, बल्कि उसे प्राप्त करने का एक नैतिक और धार्मिक रास्ता स्वीकार करता है। लक्ष्मी पूजा धन अर्जन को नैतिकता, ईमानदारी और परिश्रम से जोड़कर देखती है, जाहिर है ऐसे में धन को सिर्फ एक भौतिक वस्तु या क्रयशक्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता। लक्ष्मी पूजा के माध्यम से इसे एक ऐसे पुरुषार्थ के रूप में स्वीकार किया जाता है, जिसको हासिल करने का एक विनम्र सुपथ है।

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