Ocean Fossil Fuel: कैडमियम, यूरेनियम समेत प्राकृतिक गैसों का भंडार
Ocean Fossil Fuel: हम सब जानते हैं कि महासागर संसाधनों के भंडार हैं। इसलिए चीन हो या अमेरिका, समुद्र पर ज्यादा से ज्यादा कब्जा जमाने की रणनीति बनाते रहते हैं क्योंकि ये महासागर ही हैं जहां 80 फीसदी से ज्यादा धरती का जीवाश्म तेल मौजूद है। ये महासागर ही हैं जिनमें टिन, सोना, कोबाल्ट, कैडमियम, यूरेनियम और कई दूसरी प्राकृतिक गैसें भंडार के रूप में भरी हुई हैं।
आधुनिक जीवन के सुचारु रूप से चलने के लिए इन महासागर में स्रोत हैं। ये महासागर ही हैं जो हमारी धरती की किसी हद तक जलवायु में भी मौजूद हैं, उसकी ये रक्षा करते हैं। दरअसल, महासागरों के कारण जलवायु स्थिर रहती है। ये कार्बन डाइऑक्साइड व गर्मी को सोख लेते हैं और फिर इस सोखी गई गैस की गर्मी को ये भूमध्य रेखा के पास उस इलाके तक पहुंचाते हैं जिससे धरती का मौजूदा ताना-बाना सुरक्षित है।

ऑक्सीजन, भोजन, दवा के स्रोत
महासागरों से ही तूफान प्रणालियां और वैश्विक जलवायु के लिए नमी व ऊर्जा मिलती है। इसलिए धरती पर इंसान के अस्तित्व को चिर सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि हमारे महासागर न सिर्फ सुरक्षित रहें बल्कि स्वस्थ भी रहें। लोगों में इसी जागरूकता को बढ़ाने के लिए हर साल 8 जून को विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है। महासागर हमारा भरण-पोषण करते हैं।
ये धरती पर ऑक्सीजन, भोजन, दवा, मनोरंजन और संस्कृति के स्रोत हैं। दुनिया में करीब 3 अरब से ज्यादा लोगों को महासागरों से ही भोजन और विशेषकर प्रोटीन व दूसरे महत्वपूर्ण पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि धरती पर इंसानों की जिंदगी के लिए महासागरों का मौजूद रहना कितना जरूरी है। जो लोग सी फ़ूड नहीं खाते इसका मतलब यह नहीं कि उनके भोजन में सागरों की कोई भूमिका नहीं है। धरती पर उगे प्रत्येक पौधे, फल और सब्जी में महासागरों द्वारा संचालित जलचक्र की ही भूमिका है।’
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हर जीवित प्राणी महासागरों की बदौलत ही जिंदा
धरती पर हर जीवित प्राणी महासागरों की बदौलत ही जिंदा है। सवाल यह कि आज इंसानी हरकतों के कारण जिस तरह महासागरों के पेट हम प्लास्टिक कचरा, जीवाश्म तेल, कीटनाशकों, सीवेज और विषाक्त अपशिष्ट से भरे दे रहे हैं, उससे आखिर कब तक महासागर जिंदा रहेंगे? याद रखिये समुद्री प्रदूषण का ज्यादातर हिस्सा न केवल ज़मीन से आता है बल्कि इंसानी हरकतों का नतीजा होता है। ज़मीन के बड़े हिस्से की जुताई के दौरान खुदी मिट्टी बारिश के जरिये बहकर समुद्र में भरती जा रही है। इस अपवाह (जलप्रवाह) में कृषि उर्वरक और कीटनाशक भी बड़ी मात्रा में होते हैं।

88% सतह प्लास्टिक कचरे से भरी
कचरा और सीवेज का डंपिंग, समुद्री परिवहन, औद्योगिक अपशिष्ट जल आदि से भी समुद्र कचराघर बन रहे हैं। समुद्र की 88% सतह प्लास्टिक कचरे से भरी है। हर साल 8 से 14 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में आता है। समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से 100% समुद्री कछुए, 59% व्हेल, 36%सील, और 40% समुद्री पक्षी प्रजातियां प्रभावित हुई हैं। समुद्री कूड़े का महज 1% ही तैरता है। बाकी सब कुछ समुद्र तल में डूब जाता है। इस कारण महासागर प्लास्टिक, औद्योगिक और सीवेज कचरे से अट गए हैं।
मछलियों तथा दूसरे समुद्री जीवों का इंसान द्वारा अंधाधुंध दोहन भी महासागरों के अस्तित्व के लिए खतरा है। महासागर जिस तरह से प्लास्टिक कचरे का ढेर हो गए हैं उससे वाष्पीकरण की मौजूदा स्थिति धीमी या खत्म हो सकती है और धरती बारिश से वंचित हो सकती है। अगर महासागर न हों और पानी का वाष्पीकरण न हो तो जमीन पर बारिश नहीं होगी और अगर जमीन पर बारिश नहीं होगी तो न कोई वनस्पति उगेगी, न ही कोई जीव जंतु जीवित रहेगा। धरती पर ही नहीं समुद्र में भी क्योंकि समुद्र में जीवन गुजर बसर करने वाले जीवों का भोजन भी धरती पर मौजूद वनस्पतियों और जीव जंतुओं के चलते ही संभव होता है।
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