Senior Citizens Act: भरण-पोषण के लिए 10,000 रुपये तक का गुजारा भत्ता
Senior Citizens Act: क्या आपको पता है…जिन बुजुर्गों के बच्चे उनकी देखभाल नहीं करते, ऐसे वृद्ध मां-बाप अगर चाहें तो वो अपने बच्चों के विरूद्ध अदालत जाकर अपने भरण-पोषण के लिए 10,000 रुपये तक का गुजारा भत्ता पा सकते हैं। Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 कानून के तहत जिला कलेक्टर बुजुर्ग को न सिर्फ उनके बच्चों को भत्ता देने का आदेश पारित कर सकते हैं, बल्कि अगर बुजुर्गों मां-बाप के बच्चे उन्हें घर में रहते हुए परेशान करते हैं,
तो बच्चों को उस घर से बेदखल किया जा सकता है। कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक कलेक्टर के आदेश को बरकरार रखा था यानी उसे सही ठहराया था। हम बताएंगे कि आखिर बुजुर्गों की सुरक्षा के लिये ये Senior Citizens Act, 2007 कितना कारगर, और ये भी बताएंगे कि इस act के लाभ क्या हैं।

गुजाराभत्ता पा सकते हैं
Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 के तहत माता-पिता को शांति से जीने का अधिकार है। अगर उनके बच्चे उनके इस अधिकार को चुनौती देते हैं तो माता-पिता अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत न सिर्फ जिला कलेक्टर से उनकी शिकायत करके, उनसे गुजाराभत्ता पा सकते हैं।
बल्कि इसी कानून के चलते माता-पिता अपनी संतानों को अपनी संपत्ति से बेदखल भी कर सकते हैं। आपको जानकारी दे दें कि अगर बेटा मां-बाप से अलग रहता है और उसकी मौत हो जाती है तो उसके बीमा दावे पर उसकी पत्नी के साथ-साथ मां-बाप भी मुआवजा हासिल कर सकते हैं। अगर लड़के की शादी नहीं हुई और उसकी मौत हो जाती है तो उसके बैंक खाते में जमा धनराशि को पाने का भी मां-बाप का अधिकार है।

संपत्ति पर भी अधिकार
इसी तरह बेटे की कमाई गई संपत्ति पर भी मां-बाप का अधिकार होता है। इस Senior Citizens Act 2007 के तहत अगर कोई मां-बाप अपनी संतान को अपनी सारी प्रॉपर्टी, उसके नाम करा चुके हैं। और इसके बाद वह उनके साथ ज्यादती करता हैं, तो यह कानून मां-बाप को, दी हुई संपत्ति से भी अपनी संतान को बेदखल करने का अधिकार देता है।
इसके अलावा इस कानून के तहत जो माता-पिता अपनी आय से अपना पालन-पोषण करने में सक्षम नहीं हैं। वे उचित आहार, आश्रय, कपड़ा और उपचार के लिए बेटे ही नहीं बल्कि अपनी विवाहित बेटी या गोद लिए गए बच्चे से भी मुआवजा पाने का हक रखते हैं।

विवाहित बेटी का भी फर्ज
कहने का मतलब यह कि अगर मां-बाप आशक्त हैं तो विवाहित बेटी का भी उनकी देखरेख का फर्ज है। अगर वो इसे नहीं पूरा करती या इसकी आनाकानी करती है तो मां-बाप इसके लिए अदालत भी जा सकते हैं और अदालत या ट्रिब्यूनल ऐसे मां-बाप के लिए 10,000 रुपये तक के गुजाराभत्ता की संस्तुति कर सकता है। आपको बता दे कि सीनियर सिटीजन हो चुके मां-बाप को अगर उनका कोई बेटा या बेटी घर से निकाल देता है, तो यह हरकत गंभीर अपराध की श्रेणी में आती है। अदालत इसके लिए ऐसे व्यक्ति पर तीन महीने की कैद या 5000 रुपये का जुर्माना या फिर दोनो ही सजाएं दे सकती है।

बेदखल करना गंभीर घटना
घर से मां-बाप को बेदखल करना गंभीर घटना है। यही नहीं अगर मां-बाप जिंदा हैं, तो उनकी संपत्ति पर बेटी या बेटा कोई भी जबरन अधिकार नहीं जमा सकता। भले उनकी मौत के बाद उन्हें ही वह सब कुछ पाना हो। लेकिन जीवित रहते हुए किसी भी संतान का अपने मां-बाप की संपत्ति पर कोई जबरदस्ती का अधिकार नहीं होता। आपको पता ही होगा कि भारतीय संस्कृति में बुजुर्गों को अनुभवों का खजाना माना जाता रहा है,
मगर चिंताजनक है कि बुजुर्ग अब परिजनों और समाज की उपेक्षा, दुर्व्यवहार सहित कई तरह की समस्याएं झेलने को विवश हैं। भारतीय समाज में सदा सयुंक्त परिवार को अहमियत दी जाती रही है, जहां बुजुर्गों का स्थान सर्वोपरि रहा है, मगर अब एकल परिवारों के बढ़ते चलन के कारण बुजुर्गों की उपेक्षा बढ़ रही है।

स्नेह की भावना कम हो रही
समाज में अपनी हैसियत बड़ी दिखाने की चाहत में कुछ लोगों को अपने ही परिवार के बुजुर्ग मार्ग की बड़ी रुकावट लगने लगते हैं। ऐसे लोगों को सामाजिक तौर पर अपनी खुशियों में बुजुर्गों को शामिल करना शान के खिलाफ लगता है। ऐसी ही रूढ़िवादी सोच के कारण High class से लेकर middle class तक में अब वृद्धजनों के प्रति स्नेह की भावना कम हो रही है।
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किसी का एक शेर याद आ रहा है…
‘बहुत सेल्फी लेते हो, जरा मुस्कराया करो,
अपने चेहरे को आईना भी दिखाया करो,
अरे जमाने के तजुर्बे google पर नहीं मिलेंगे,
मिले जो वक्त, बुजुर्गों के पास बैठ जाया करो।