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Reading: Old Games in India: कहा गये वो गुजरे जमाने के खेल
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WeStory > खेल > Old Games in India: कहा गये वो गुजरे जमाने के खेल
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Old Games in India: कहा गये वो गुजरे जमाने के खेल

वो खेल जो कभी हम सबकी जिंदगी का हिस्सा थे, लेकिन अब इनकी जगह धीरे धीरे यादों में, किताबों में, किस्सों और कहानियों तक सिमट गयी है। जब देश में करोड़ों बच्चों और किशोरों के हाथ में मोबाइल फोन....

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/02/26 at 5:25 PM
WeStory Editorial Team
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Old Games in India
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Old Games in India: बहुत याद आते हैं छुपन छुपाई, गुल्ली डंडा और कंचे

वो खेल जो कभी हम सबकी जिंदगी का हिस्सा थे, लेकिन अब इनकी जगह धीरे धीरे यादों में, किताबों में, किस्सों और कहानियों तक सिमट गयी है। जब देश में करोड़ों बच्चों और किशोरों के हाथ में मोबाइल फोन नहीं होते थे, तब वो अपना टाइम कंकड़ पत्थर के टुकड़े, छुपन छुपाई, गुल्ली डंडा और कंचे आदि खेलों में गुजराते थे। उस जमाने में किशोर हर दिन औसतन साढ़े तीन से चार घंटे तक विभिन्न किस्म के जिस्मानी खेल खेलते थे। आज यह औसत एक घंटे से भी नीचे आ गया है। जबकि उन दिनों आम लोगों की आय आज के मुकाबले दो से तीन गुना तक कम थी और आज देश में खेलों की जितनी दुकानें हैं, तब इसके 10 फीसदी भी नहीं होती थीं। आज की तरह खेलों के संसाधन नहीं थे, मैदान नहीं थे, स्टेडियम नहीं थे, समझ नहीं थी। बावजूद इसके तब बच्चे हर दिन लाखों नहीं बल्कि करोड़ों घंटे जिस्मानी खेल खेलते हुए गुजारते थे।

Table of Contents
Old Games in India: बहुत याद आते हैं छुपन छुपाई, गुल्ली डंडा और कंचेहर मौसम में मजा देता था ‘छुपन छुपाई’लड़कों का भी मन ललचता था ‘लंगड़ी टांग’ मेंबहुत याद आते हैं गुल्ली डंडा-कंचेलड़कियां खेला करती थीं ‘पोसंपा भई पोसंपा’वो पेड़ की डाली पर चढ़ना और कूदनालड़कियों का पसंदीदा खेल था ‘कंकड़ पत्थर’

हर मौसम में मजा देता था ‘छुपन छुपाई’

Old Games in India
Old Games in India

एक जमाने में छुपन-छुपाई का खेल करोड़ों बच्चे हर दिन खेलते थे। मौसम कोई भी हो। बस कीचड़ न हो और न पानी वाला यानी बारिश का मौसम हो, बाकी सभी मौसमों में चाहे वो हल्की गर्मी हो या भीषण गर्मी, हल्की ठंड हो या भीषण ठंड। हर कोई छुपन छपाई खेलता था। इस खेल में एक बच्चा 100 तक गिनती गिनता था और वह इस दौरान अपनी आंखें मूंदकर रखता था। उसके 100 तक गिनती गिनने के अंतराल में जो बच्चे छुपन छुपाई खेल का हिस्सा होते थे, वो ऐसी जगह छुप जाते थे, जहां उनके मुताबिक कोई उन्हें ढूंढ़ नहीं सकता था। लेकिन ऐसे सभी बच्चे हमेशा ढूंढ़ें जाते। शहरों, गांवों, छोटे कस्बों हर जगह ये खेल खूब खेला जाता था।

लड़कों का भी मन ललचता था ‘लंगड़ी टांग’ में

Old Games in India
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भूले बिसरे खेलों में अब भी जो एक खेल कई जगह बच्चे खेलते मिल जाते हैं, वह है लगड़ी टांग का खेल। वैसे तो यह खेल लड़कियां ज्यादा खेलती थीं, लेकिन इसके लिए लड़कों का भी मन ललचता था। कई तो लड़कियों के साथ भी खेलते थे। यह खेल, घरों के सामने, गांव की चौपाल में या कहीं भी जहां इतनी जगह होती थी कि जमीन में खाका खींच दिया जाए, उसमें नौ बॉक्स बना दिये जाएं और एक टांग के बल इन बॉक्सों से उछलते हुए दूसरे में पहुंचना होता था। इस खेल की शुरुआत टूटे फूटे मिट्टी के बर्तनों के टुकड़ों के एक गुम्पल से होती थी।

बहुत याद आते हैं गुल्ली डंडा-कंचे

गुल्ली डंडा से लेकर कंचे तक ऐसे खेलों की फेहरिश्त बहुत लंबी है। लेकिन गुल्ली डंडा पुराने खेलों में आज सबसे ज्यादा नॉस्टेलिक है वरना ज्यादातर खेल या तो लुप्त हो गए हैं या उनमें कई तरह के बदलाव के बाद उनके नाम भी बदल गए हैं। गुल्ली डंडा खेल में दो दल होते थे और इस खेल में दो डंडे होते थे एक बड़ी डंडी और एक छोटी वाली डंडी बड़ी वाली डंडी से छोटी वाली डंडी को मारा जाता था और इस खेल में छोटी वाली डंडी होती थी उससे गिल्ली के नाम से जाना जाता था, और बड़ी डंडी को डंडी के नाम से जाना जाता था।

Old Games in India
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छोटी डंडी के दोनों किनारों पर घिसकर नुकीली बनाई जाती थी ताकि उसकी नोकीले भाग पर मारने पर वह एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाए। इस खेल को खेलने के लिए एक भी रुपया का खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती थी क्योंकि डंडी गांव में कहीं भी मिल जाती था। अगर नही मिली तो कही से लकड़ी को काटकर डंडी बनायी जा सकता था यह खेल काफी पुराना है लेकिन नई नई टेक्नोलॉजी तथा नए नए अविष्कार होने के कारण पुरानी खेल विलुप्त होते जा रहे हैं। वैसे ही कंचे के खेल में कई खिलाड़ी खेल सकते थे।

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इसे खेलने के लिए सबसे पहले एक गड्ढा बनाया जाता था और उसमें कुछ दूरी पर एक रेखा खींची जाती थी। इस रेखा पर खड़े होकर खिलाड़ी गड्ढे की ओर कंचे फेंकता था, जिसके सबसे ज्यादा कंचे गड्ढे में जाते थे वो खिलाड़ी गेम जीतता थी। जो कंचे गड्ढे से बाहर होते थे, उनमें से विपक्षी खिलाड़ी के बताए गए किसी एक कंचे पर वहीं खड़े रहकर निशाना लगाना होता ता। अगर निशाना लग जाता था, तो निशाना लगा रहा खिलाड़ी वह बाज़ी जीत जाता था, नहीं तो दूसरा खिलाड़ी को कंचे फेकने का मौका मिलता था।

Old Games in India
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लड़कियां खेला करती थीं ‘पोसंपा भई पोसंपा’

एक खेल होता था पोसंपा। यह भी अखिल भारतीय खेल था, जिसे ज्यादातर लड़कियां खेला करती थीं। इस खेल में दो लड़कियां अपने हाथ ऊपर करके एक दूसरे को पकड़ लेती थीं और उसके नीचे से बाकी खिलाड़ियों को गुजरना होता था। इस दौरान एक गीत चलता रहता था, ‘पोसंपा भई पोसंपा, लाल किले में क्या हुआ, सौ रुपये की घड़ी चुराई, अब तो जेल में जाना पड़ेगा, जेल की रोटी खाना पड़ेगी’। इस लाइन के खत्म होने के क्षणों में हाथ के नीचे से गुजर रहे खिलाड़ी को दबोच लिया जाता था। जो पकड़ में आता था, वह आउट हो जाता था।

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वो पेड़ की डाली पर चढ़ना और कूदना

लब्बोडाल या कहीं कहीं इसे गिल्हर कहते थे। यह खेल विशेष रूपसे गांवों में और गांवों से भी ज्यादा जब छुट्टियों में बच्चे बागों में इकट्ठा होते थे, तो यह, वहां खेला जाता था। इस खेल में बच्चे किसी पेड़ की निचली डाली में चढ़ते थे और उस डाली के नीचे एक गोल घेरे में डंडा रखा होता था, जो आउट होता था उसे डाल में चढ़े किसी बच्चे को छूकर जल्दी से जमीन में कूदना होता था और डंडे को जोर से दूर फेंक देना होता था। जिसको छूकर यह डंडा दूर तक फेंका गया होता था, अब वह पिदता था। यह सिलसिला तब तक चलता रहता था, जब तक बच्चे खेलना चाहते थे।

Old Games in India
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इससे बच्चे बहुत आसानी से पेड़ों में चढ़ना, स्वस्थ रहना, आदि सीख जाते थे। पुराने खेलों में एक आंखमिचैली का खेल तो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का सबसे व्यंग्यात्मक मुहावरा है। लेकिन एक जमाने में यह सचमुच खेल था, मुहावरा नहीं। गांवों में शाम होते ही बच्चे इसे खेलते थे। इसमें भी कई बच्चे मिलकर खेलते थे, जिसमें एक की आंख में पट्टी बांध दिया जाता था, अब बाकी बच्चे उसके इर्दगिर्द मंडराते थे और उसके लिए चुनौती थी कि वह बिना आंख से देखें किसी को अपनी चपलता से पकड़ ले। इस आंखमिचैली के खेल में जो पकड़ा जाता था, अगली बार उसकी आंखों में पट्टी बंधती थी।

लड़कियों का पसंदीदा खेल था ‘कंकड़ पत्थर’

Old Games in India
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क्या कभी आप कल्पना कर सकते हैं कि राह में पड़े कंकड़ पत्थर के टुकड़े तक कभी लाखों-करोड़ों बच्चों के खेल का साधन थे? लड़कियों का यह पसंदीदा खेल हुआ करता था, क्योंकि इसमें कई लड़कियां मिलकर एक टीम के रूप में, दो लड़कियां, दो प्रतिद्वंदियों के रूप में, हद तो यह है कि इसे सिर्फ एक अकेली लड़की भी खेल सकती थी। इस खेल में एक जबरदस्त इनर कनेक्टीविटी हुआ करती थी, जाहिर है इन खेलों में न कॅरियर बनना था, न कोई प्रतियोगिता जीतनी थी, न कहीं नाम होना था, सिर्फ यह मन को खुश और शरीर को स्वस्थ रखने भर का जरिया होते थे।

फिर भी बच्चों में इन खेलों को लेकर दीवानगी और जूनून, क्रिकेट या बैडमिंटन से कम नहीं होता था। इस खेल में गुट्टे छोटे छोटे कंकड़ या पत्थर के टुकड़े होते थे। इस खेल को लड़कियां अलग अलग तरीके से खेलती थीं। लड़कियां इसे खेलने के लिए आमने सामने जमीन में बैठ जाती थीं और अपने बीच गुट्टे बिखेर लेती थीं। फिर एक गुट्टा यानी पत्थर का वह टुकड़ा हवा में उछाला जाता था, हवा में उछाला गया वह पत्थर, नीचे जमीन तक आये, इसके पहले ही जमीन के किसी पत्थर के टुकड़े को उठाकर ऊपर से आने वाले गुट्टे को बिना जमीन में गिरे ऊपर ही लपक लेना होता था और इस तरह जमीन से उठाये गए गुट्टे को एक तरफ रखकर दिया जाता था,इस तरह यह सिलसिला चलता रहता था।

इस खेल में न सिर्फ हाथों की चपलता बल्कि मस्तिष्क की फुर्ती और निगाहों के कंसनट्रेशन की जबर्दस्त भूमिका होती थी। इस खेल के दर्जनों तरीके होते थे, हर तरीके में हाथों, आंखों, अंगुलियों, बाजुओं और बैठने की चपलता तथा सजगता खेल जिताती थी। अब यह खेल या तो स्मृतियों में बचा है या किताबों में, कहीं दूरदराज हो सकता है खेला भी जाता हो।

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