Dr. Velumani Success Story – देशभर में Thyrocare के 1122 आउटलेट और टेस्टिंग सेंटर्स
Dr. Velumani Success Story: ज़िंदगी में कुछ बड़ा करने के लिए जज्बा का होना बहुत ज़रूरी है. इसी सोच के साथ एक शुरुआत हुई. Thyrocare के संस्थापक Dr. Velumani एक ऐसे व्यक्ति जिन्होंने अपने जीवन की कठिनाइयों को पार कर एक बड़ा साम्राज्य खड़ा किया। Dr. Velumani का जन्म तमिलनाडु के एक छोटे से गांव में हुआ था। एक गरीब किसान परिवार में जन्मे Dr. Velumani ने अपनी मेहनत और समर्पण से शिक्षा प्राप्त की और Bhabha Atomic Research Centre में काम किया। लेकिन उनका सपना यहीं नहीं रुका। थायरोकेयर टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के फाउंडर, चेयरमैन और एमडी ए वेलुमणि का करियर संघर्षों से भरा है। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने दुनिया की निया की सबसे बड़ी थॉयरॉइड टेस्टिंग कंपनी बनाई। थायरोकेयर थायराइड डिसऑर्डर से जुड़े टेस्ट के लिए एक जाना-पहचाना नाम है।

5,000 से अधिक नॉन-ब्रांडेड आउटलेट्स
जीवन में मिले बुरे अनुभवों ने उन्हें और भी अच्छा बनाया है। इसीलिए, जहां अन्य कंपनियां नौकरी के लिए अनुभव देखती हैं, वहीं वेलुमणि सिर्फ फ्रेशर्स को नौकरी देते हैं। डॉ. वेलुमणि की कहानी अदने से अरबपति बनने की दास्तान है। उन्होंने साबित किया है कि मेहनत और धीरज के बल पर किसी भी परिस्थिति में कोई भी कामयाब हो सकता है। थायरोकेयर टेक्नोलॉजीज लिमिटेड दुनिया की सबसे बड़ी थॉयरॉइड टेस्टिंग कंपनी है। इस कंपनी के 950 से अधिक ब्रांडेड और 5,000 से अधिक नॉन-ब्रांडेड आउटलेट्स हैं। ऐसा कई बात होता था, जब काम के बोझ के चलते उन्हें लैब में ही सोना पड़ता था। जिस कंपनी क शुरुआत उन्होंने पीएफ का पैसा निकालकर किया था, आज वो कंपनी करोड़ों की है। साल 2021 में उन्होंने कंपनी की 66 फीसदी हिस्सेदारी फार्मईजी की पैरेंट कंपनी को 4546 करोड़ रुपये में बेच दी। मौजूदा वक्त में थायरोकेयर का मार्केट कैप 2500 करोड़ रुपये से अधिक का है। देशभर में थायरोकेयर डायग्नोस्टिक की लंबी चेन है। देशभर में इसके 1122 आउटलेट और टेस्टिंग सेंटर्स हैं।
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दवा कंपनी में काम किया, सैलरी रुपये 150 थी
वेलुमणि का जन्म तमिलनाडु में कोयंबटूर के करीब एक गरीब परिवार में हुआ। उनके तीन और भाई-बहन थे। परिवार का गुजारा करने के लिए मां दूध बेचने का काम करती थी। कई साल तक मां ने ही घर का खर्च चलाया। वेलुमणि ने अपनी स्कूलिंग गांव से पूरी की और फिर ग्रेजुएशन करने के लिए शहर चले गए। उन्होंने सारी पढ़ाई सरकारी स्कूल-कॉलेजों से ही पूरी की है। 19 वर्ष की उम्र में उन्होंने बीएससी की डिग्री पूरी की और फिर कोयंबटूर में एक छोटी सी दवा कंपनी में काम करने लगे। यहां उनकी सैलरी 150 थी। सैलरी काफी कम थी लेकिन उन्होंने फिर भी वो 100 रुपये घर मां के पास भेजते थे, और किसी तरह से 50 रुपयों में खुद का खर्च चलाते थे। लेकिन कुछ समय बाद कंपनी ही बंद हो गई और वेलुमणि बेरोजगार हो गए।

14 साल तक भाभा में काम किया
लेकिन कहते हैं कि एक रास्ता बंद होता है तो 100 रास्ते खुल जाते हैं। कंपनी बंद होने के बाद वेलुमणि ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में लैब असिसटेंट की पोस्ट के लिए अप्लाई किया। इसमें उनका सेलेक्शन हो गया। इसमें काम करते हुए उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की और फिर साइंटिस्ट बने। 14 साल तक भाभा में काम करने के बाद वेलुमणि ने अपनी कंपनी खोलने की बात सोची। उनकी शादी सुमति वेलुमणि से हुई थी जो एसबीआई में कर्मचारी थीं। जब 1995 में उन्होंने कंपनी खोली तो उनकी बीवी ही पहली कर्मचारी थीं। कंपनी के लिए उनकी पत्नी ने जॉब छोड़ दी थी। पहली लैब मुंबई में खोली गई। वेलुमणि ने अपने पीएफ के एक लाख रुपये से यह कंपनी खोली थी। शुरुआत में उनका फोकस केवल थॉयरॉइड के टेस्ट पर था लेकिन बाद में दूसरे टेस्ट को भी इसमें शामिल किया गया।
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सस्ते में लैब की सुविधा मुहैया कराना था मकसद
वेलुमणि का मकसद लोगों को सस्ते में लैब की सुविधा मुहैया कराना था। शुरुआत के दिनों में रोज के केवल दो सैंपल ही आते थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और रात-दिन मेहनत की। धीरे-धीरे अपने बिजनस मॉडल को भी औरों से अलग बनाया। टेस्ट की लागत कम थी और ज्यादा लोगों तक पहुंच के कारण उन्हें काफी फायदा मिला। धीरे-धीरे देश के अलग-अलग हिस्सों में सैंपल लैब खोले गए। अब उनका यह कारोबार पूरे देश में अपनी पहचान बना चुका है। 2016 में उन्होंने कंपनी को लिस्ट कराया। कंपनी का आईपीओ करीब 73 गुना सब्सक्राइब हुआ और आज इसका मार्केट कैप 3,361.70 करोड़ रुपये है।

सफलता की प्रेरणा मां थी
वेलुमणि ने बताया कि शुरुआती दिनों में वह सैलरी नहीं लेते थे और अपनी कमाई का एक-एक पैसा कंपनी में निवेश करते थे। उनका परिवार सादगी के साथ रहता था। कंपनी का प्रॉफिट बढ़ने के बाद भी यही स्थिति रही। वह कहते हैं, ‘शुरुआती जीवन में मेरी सफलता की प्रेरणा मेरी मां थी और मेरी बिजनेस सक्सेस की वजह मेरी पत्नी थी।’ लेकिन 2016 में कंपनी का आईपीओ आने से कुछ ही दिन पहले उनकी पत्नी को कैंसर डिटेक्ट हुआ। वेलुमणि ने कहा, आईपीओ से 50 दिन पहले मैंने अपनी पत्नी को खो दिया था। 12 फरवरी को उनका निधन हुआ और मई में आईपीओ आया। उनकी मौत से 50 दिन पहले हमें पता चला कि उन्हें ग्रेड फोर का पैंक्रिएटिक कैंसर है। आपकी सफलता में आपके जीवनसाथी की अहम भूमिका होती है। अगर आपका जीवनसाथी आप पर भरोसा करता है तो आपकी 10 गुना बढ़ जाती है।
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25,000 फ्रेशर्स को नौकरी दी
Thyrocare Technologies का आईपीओ अप्रैल 2016 में आया था। उस वक्त कंपनी ने अपने आईपीओ के तहत प्रत्येक शेयर के लिए 420 रुपये से 446 रुपये का प्राइस बैंड फिक्स किया था। आज कंपनी के शेयर का भाव 918.90 रुपये है। 2011, में नई दिल्ली की कंपनी सीएक्स-पार्टनर्स ने थायरोकेयर में 30% स्टेक खरीद लिया। जिसकी कीमत लगाई गई तकरीबन 188 करोड़ रुपए और कंपनी की पूरी वैल्यू बनी 600 करोड़ रुपए। इसके बाद एक के बाद एक दूसरे इन्वेस्टर्स ने भी कंपनी में अपने पैसे इन्वेस्ट करने शुरू किए। आज की तारीख में थायरोकेयर करोड़ों नहीं बल्कि अरबों की कंपनी है और डॉ. अरोक्यास्वामी वेलुमनी की संपत्ति तकरीबन 1200 करोड़ से भी ज्यादा की है।
याद रहे ये वही आदमी है जिसके घर की पूर कमाई एक वक्त पर हफ्ते का 50 रुपया हुआ करता था। उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी ने 25 साल में 25,000 फ्रेशर्स को नौकरी दी। थायरोकेयर द्वारा पूरे देश में सबसे सस्ती सेवाएं देने के बावजूद उनका मुनाफा 40 फीसदी था। कंपनी का मार्केट कैप 1 बिलियन डॉलर पार होने के बाद उन्होंने जून, 2021 में थायरोकेयर छोड़ दिया। उन्होंने बताया कि वे सिर्फ 500 रुपये लेकर आए थे और जब कंपनी को छोड़ा तो उनके हाथ में 5000 करोड़ रुपये का चेक था।
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