सेल्फ-प्रमोशन में महिला-पुरुष में जबरदस्त अंतर
कुछ दिन पहले की बात है मैं कार्यालय में अपने एक सहकर्मी के साथ एक कामकाजी विवाहित महिला के रूप में अपने अनुभव शेयर कर रही थी। मैंने उससे कहा कि मैं अपनी कॅरिअर यात्रा में सफलता हासिल नहीं कर पाती अगर मेरे पति का मुझे सहयोग नहीं मिलता। मेरा यह दोस्त भी विवाहित है और उसने भी अपना अनुभव शेयर किया कि किस प्रकार उसने अनेक चुनौतियों का सफलतापूर्वक डटकर सामना किया। जब मैं वापस घर लौट रही थी तो मैं सोचने लगी कि मेरे दोस्त व मेरे व्यक्तिगत नैरेटिव में कितना अंतर है। मेरा परिवार मेरा चीयरलीडर है और मेरी हर उपलब्धि में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मेरा दोस्त अपना चीयरलीडर स्वयं रहा है और उसने बुनियादी तौर पर अपनी मेरिट की बदौलत सफलता अर्जित की है।
शेरील सैंडबर्ग और दीपिका पादुकोन
फेसबुक की सीओओ शेरील सैंडबर्ग ने अपनी पुस्तक ‘लीन इन: वीमेन, वर्क एंड द विल टू लीड’ में इस तरफ ध्यानाकर्षण किया है कि महिलाएं अक्सर अपनी कामयाबी का श्रेय बाहरी तत्वों जैसे लक, पारिवारिक समर्थन व कड़ी मेहनत को देती हैं, जबकि पुरुष आंतरिक कौशल व टैलेंट को देते हैं। एक इंटरव्यू में दीपिका पादुकोण ने अपनी सफलता का श्रेय अन्य चीजों के अतिरिक्त भाग्य व लक को दिया। दूसरी ओर उनके पति रणवीर सिंह ने अपनी सफलता का श्रेय पक्के इरादे व लगन को दिया। इन दोनों के नैरेटिव में अंतर को अनदेखा करना कठिन है।

एहसान की याद
इसलिए मैं यह सोचने लगी कि आखिर वह क्या वजह है महिलाएं अपनी कड़ी मेहनत से प्राप्त सफलता का स्वयं श्रेय लेने में असहजता महसूस करती हैं? जबकि दूसरी ओर पुरुष स्वाभाविक रूप से अपनी सफलता का श्रेय स्वयं लेते हैं। जब मेरा विवाह हो रहा था तो मेरे पैरेंट्स इस बात को लेकर बहुत उत्साहित थे कि मेरे पति का परिवार इस बात का ‘समर्थन’ करता है कि मैं शादी के बाद अपनी शिक्षा पूर्ण करके काम करूं। मेरे दोस्त, परिवार व सहकर्मी भी निरंतर इस ‘एहसान’ की याद मुझे दिलाते थे और जो आज तक जारी है। मुझे प्रोफेशनल फ्रंट पर जितनी अधिक सफलता मिलती, उतनी तीव्रता से मुझे इस ‘एहसान’ की याद दिलायी जाती।
इंद्रा नूयी
भारतीय घरों में एक इंटरव्यू जो बहुत अधिक कोट किया जाता है, वह इंद्रा नूयी का है। नूयी जब पेप्सी-को की अध्यक्ष बनने के बाद घर लौटीं, तो उनकी माँ ने उनसे पहले दूध लाने को कहा, उन्हें यह याद दिलाते हुए कि भले ही वह पेप्सी-को की अध्यक्ष हों, ‘जब तुम इस घर में कदम रखो, तो तुम पहले पत्नी व मां हो। कोई यह जगह नहीं ले सकता। इसलिए इस ताज को गेराज में छोड़ आओ।’ लेकिन जिस ताज के लिए इतनी कड़ी मेहनत की है उसे गेराज में क्यों छोड़ा जाए? क्या गुनाह हो जाएगा अगर वह ताज कुछ समय के लिए या पूरे दिन लिविंग रूम में भी पहना जा सके? नेशनल ब्यूरो ऑफ इकनोमिक रिसर्च के 2019 के अध्ययन से यह जाहिर हुआ कि कार्यस्थल पर पुरुष तो अपने प्रदर्शन का आत्म-मूल्यांकन बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, लेकिन महिलाएं अपनी उपलब्धि को भी कम करके पेश करती हैं।
इस रिसर्च से यह भी मालूम हुआ कि सेल्फ-प्रमोशन, जो जॉब इंटरव्यू व वार्षिक समीक्षा में जबरदस्त महत्व का स्किल है, में महिलाओं व पुरुषों में जबरदस्त अंतर है। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि लिंग समता सुनिश्चित करने के निरंतर प्रयासों के बावजूद, महिलाओं का दुनियाभर में नेतृत्व पदों पर प्रतिनिधित्व बहुत कम है। अपने काम व उपलब्धियों को लेकर सिर उठाकर जियें और हां, इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि जिस ताज को हासिल करने के लिए हमने बिना थके कड़ी मेहनत की है, उसे गेराज में छोड़ने की जरूरत नहीं है।
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