Innovation Hub – नवाचारों ने बढ़ाई दुनिया की धड़कनें
Innovation Hub: साल 1957 में जब सोवियत संघ ने पहला मानव निर्मित उपग्रह ‘स्पुतनिक’ अंतरिक्ष में भेजा तो अमेरिका के भीतर वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति की लहर दौड़ गई। राष्ट्रपति आइजनहावर ने तब देश के उद्योगों और विश्वविद्यालयों से विज्ञान में तेजी लाने की अपील की थी। इतिहास ने उस घटना को एक चेतावनी के रूप में लिया और अब वैसा ही दौर फिर लौट आया है।

टैक्सियां, री-यूजेबल रॉकेट, ह्यूमनॉइड रोबोट
आज पूरी दुनिया एक नई तकनीकी दौड़ में शामिल है। जहां एक ओर उड़ने वाली टैक्सियां, री-यूजेबल रॉकेट, ह्यूमनॉइड रोबोट और जनरेटिव एआई जैसी चीजें तेजी से हकीकत बन रही हैं वहीं हर देश यह सोचने को मजबूर है कि वह इस दौड़ में कहां खड़ा है। भारत भी इस नई क्रांति में भागीदार बनने के लिए तैयार हो रहा है। डीप-टेक कोई ट्रेंड नहीं है बल्कि ऐसी तकनीकें हैं जो मौलिक वैज्ञानिक रिसर्च पर आधारित होती हैं। जैसे कि अंतरिक्ष रॉकेट्स, क्वांटम कंप्यूटिंग, एआई, बायोटेक्नोलॉजी, और रोबोटिक्स। यह तकनीकें न केवल इंडस्ट्री बदलती हैं बल्कि देशों की आर्थिक और रणनीतिक स्थिति को भी प्रभावित करती हैं।
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डीप-टेक इनोवेशन की दौड़
चीन और अमेरिका फिलहाल डीप-टेक इनोवेशन की दौड़ में सबसे आगे हैं। वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक चीन ने सिर्फ जनरेटिव एआई में ही 2014 से 2023 के बीच 38,000 से ज्यादा पेटेंट दर्ज किए अमेरिका से छह गुना ज्यादा। वहीं एएसपीआई की रिपोर्ट कहती है कि चीन 64 में से 57 प्रमुख तकनीकों में विश्व स्तर पर आगे है। अमेरिका, जापान, जर्मनी जैसे देश अपने जीडीपी का 3% से ज्यादा आरएंडडी पर खर्च करते हैं जबकि भारत अभी भी 1% से कम निवेश करता है लेकिन भारत ने भी अब अपने इरादे साफ कर दिए हैं। इनमें से कई स्टार्टअप्स अंतरिक्ष, रक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम क्षेत्रों में अभूतपूर्व काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए स्काईरूट ने 2022 में भारत का पहला निजी तौर पर लॉन्च किया गया रॉकेट ‘विक्रम-एस’ सफलतापूर्वक लॉन्च किया।

नीतिगत स्तर पर भी कई अहम बदलाव
जैसे भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023, ड्रोन नियम 2024, राष्ट्रीय डीप-टेक स्टार्टअप नीति का मसौदा (2023) और परमाणु ऊर्जा विस्तार नीति 2024। भारत में टैलेंट की कोई कमी नहीं लेकिन चुनौती है विशेष टेक्नोलॉजी में गहराई रखने वाले इंजीनियरों की संख्या कम है। साथ ही डीप-टेक इनोवेशन में समय लगता है वेंचर कैपिटल की तेज रिटर्न चाहत के साथ यह मेल नहीं खाता। इसके बावजूद भारत को हार नहीं माननी चाहिए। वहीं कहा जा सकता है कि भारत के लिए यह सिर्फ तकनीकी विकास का मामला नहीं है यह आर्थिक आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की चुनौती भी है। डीप-टेक ही वह ज़रिया है जिससे भारत दुनिया में अपनी वैज्ञानिक और नवाचार क्षमता को साबित कर सकता है।
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डीप-टेक स्टार्टअप्स की उभर रही है एक नई पीढ़ी
➤ स्पेसटेक : स्काईरूट, अग्निकुल
➤ फ्लाइंग टैक्सियां : सरला, ईप्लेन
➤ जीन एडिटिंग : क्रिस्परबिट्स
➤ क्वांटम टेक : क्यूएनयू लैब्स
➤ सेमीकंडक्टर : माइंडग्रोव
➤ डिफेंस टेक : आइडियाफोर्ज, आईरोव
➤ ई-मोबिलिटी : ओला इलेक्ट्रिक, एथर

भारत सरकार भी अब इस क्षेत्र में गंभीर निवेश कर रही है
➤ इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन : 76,000 करोड़ रुपये
➤ इंडियाएआई मिशन : 10,371 करोड़ रुपये
➤ डीप टेक स्टार्टअप फंड : 10,000 करोड़ रुपये
➤ स्पेस-टेक वेंचर फंड : 1,000 करोड़ रुपये
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