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Reading: Supreme Court: जजों से भी होती हैं गलतियां, सुधारने से पीछे न हटें
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WeStory > हिंदी न्यूज़ > Supreme Court: जजों से भी होती हैं गलतियां, सुधारने से पीछे न हटें
हिंदी न्यूज़

Supreme Court: जजों से भी होती हैं गलतियां, सुधारने से पीछे न हटें

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक वर्ष पुराने एक फैसले में गलतियों को स्वीकार करते हुए उसमें बदलाव किया है।

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/10/03 at 10:43 AM
WeStory Editorial Team
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5 Min Read
Supreme Court
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Supreme Court – कर्ज वसूली और मनी लॉन्ड्रिंग पर सुको की टिप्पणी

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक वर्ष पुराने एक फैसले में गलतियों को स्वीकार करते हुए उसमें बदलाव किया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जजों से भी गलतियां हो सकती हैं, इसे कबूल करने में संकोच नहीं करना चाहिए। अगर गलती हुई है तो अदालतों को उसे तब भी सुधारना चाहिए जब केस क्लोज हो चुका है। बेंच ने संशोधित आदेश जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जज भी गलती कर सकते हैं।

Table of Contents
Supreme Court – कर्ज वसूली और मनी लॉन्ड्रिंग पर सुको की टिप्पणीकार्रवाई पर रोक का आदेशआदेश में संशोधन कियाकार्यवाही के संबंध में निर्देशों से बांधना उचित नहींसुप्रीम कोर्ट अंतिम उपाय वाला न्यायालय

अदालतों को अपने आदेशों में गलतियों को स्वीकार करने और मामले के बंद होने के बाद भी उन्हें सुधारने से पीछे नहीं हटना चाहिए। यह मामला इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस और उसके अधिकारियों को अंतरिम सुरक्षा देने के सुप्रीम कोर्ट के एक वर्ष पुराने आदेश से जुड़ा है। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ कर्ज वसूली और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है कि उसके आदेश में कुछ त्रुटियां रह गई थीं।

Supreme Court
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कार्रवाई पर रोक का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ईडी को सुनवाई का मौका दिए बिना ही उसकी कार्रवाई पर रोक का आदेश पारित कर दिया गया था। ईडी ने आदेश में संशोधन की मांग की थी। जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस संजय कुमार की तरफ से सुनाए गए फैसले में एक और दोष था। इसमें एक तरफ तो पक्षकारों को अपनी शिकायतें उठाने के लिए हाई कोर्ट जाने को कहा गया था, लेकिन दूसरी तरफ अंतरिम सुरक्षा दी गई थी जो हाई कोर्ट में मामले के लंबित रहने तक जारी रहती।

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Supreme Court
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आदेश में संशोधन किया

आमतौर पर, सुप्रीम कोर्ट की सुरक्षा तब तक बनी रहती है जब तक कि पक्षकार हाई कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा लेते। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट अंतरिम सुरक्षा पर फैसला लेने के लिए हाई कोर्ट पर छोड़ देता है। जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने दोनों गलतियों को स्वीकार किया और आदेश में संशोधन किया। बेंच ने कहा कि वसूली कार्यवाही में अंतरिम सुरक्षा तब तक रहेगी जब तक पक्षकार हाई कोर्ट का रुख नहीं कर लेते। इसके बाद अंतरिम आदेश पर फैसला लेना हाई कोर्ट का काम होगा।

Supreme Court
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कार्यवाही के संबंध में निर्देशों से बांधना उचित नहीं

बेंच ने कहा, ‘इस अदालत द्वारा रिट याचिका में दी गई कार्यवाही पर रोक, पहली तीन प्राथमिकी के संबंध में, हाई कोर्ट के समक्ष दायर की जाने वाली रिट याचिकाओं के निपटारे तक जारी रखने का निर्देश दिया गया था। जब किसी पक्ष को उसके उपचार के लिए हाई कोर्ट में भेज दिया जाता है, तो सामान्य स्थिति में, उक्त न्यायालय को ऐसी अदालत के समक्ष चुनौती दी जाने वाली कार्यवाही के संबंध में निर्देशों से बांधना उचित नहीं होगा। साधारण तौर पर, यह न्यायालय सभी मुद्दों को उस पक्ष के लिए खुला छोड़ देगा ताकि वह हाई कोर्ट के सामने उठा सकें।’

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Supreme Court
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सुप्रीम कोर्ट अंतिम उपाय वाला न्यायालय

बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अंतिम उपाय वाला न्यायालय होता है लिहाजा वह अपने आदेशों में किसी भी गलती को स्वीकार करने से पीछे नहीं हटेगा। अगर आदेश में कोई गलती मिली तो उसे ठीक करने के लिए तैयार रहेगा। बेंच ने ईडी की याचिका को स्वीकार करते हुए पिछले वर्ष 4 जुलाई को पारित अपने आदेश के उस हिस्से को वापस ले लिया जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग मामले का जिक्र था। सुप्रीम कोर्ट के वी के जैन बनाम दिल्ली हाई कोर्ट मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि हमारी कानूनी व्यवस्था न्यायाधीशों की गलती की संभावना को स्वीकार करती है। हालांकि यह अवलोकन जिला न्यायपालिका के न्यायाधीशों के संदर्भ में किया गया था, यह न्यायिक पदानुक्रम के उच्च सोपानों पर बैठे लोगों पर समान रूप से लागू होगा। रिकॉर्ड के न्यायालयों के रूप में, यह आवश्यक है कि संवैधानिक न्यायालय उन त्रुटियों को पहचानें जो उनके न्यायिक आदेशों में आ गई हों… और उन्हें सुधारें।’

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