Non-Performing Assets : 29 कंपनियों के प्रत्येक पर 1,000 करोड़ रुपये और उससे अधिक का बकाया
Non-Performing Assets – बैंकों ने पिछले 10 वित्त वर्षों में करीब 16.35 लाख करोड़ रुपये मूल्य की गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) या खराब ऋण राइट ऑफ किए हैं। यह जानकारी संसद में दी गई। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान सबसे अधिक 2,36,265 करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाले (राइट ऑफ) गए। 2014-15 में 58,786 करोड़ रुपये के एनपीए बट्टा खाते में डाले गए, जो पिछले 10 वर्षों में सबसे कम है। 2023-24 के दौरान, बैंकों ने 1,70,270 करोड़ रुपये के लोन राइट ऑफ किए थे। उससे पिछले वित्तीय वर्ष में राइफ ऑफ किए गए 2,16,324 करोड़ रुपये से कम है।

उधार लेनेवालों को देनदारियों में छूट नहीं मिलती
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दिशा-निर्देशों और बैंकों के बोर्ड की ओर से अनुमोदित नीति के अनुसार गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) को बट्टा खाते में डालते हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की बट्टे खाते में डालने से उधार लेनेवालों को देनदारियों में छूट नहीं मिलती है और इसलिए उसे इससे कोई लाभ नहीं होता है। उन्होंने कहा कि बैंक अपने पास उपलब्ध विभिन्न वसूली तंत्रों के तहत उधारकर्ताओं के विरुद्ध शुरू की गई वसूली की कार्रवाई जारी रखते हैं। वित्त मंत्री ने बताया कि आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 31 दिसंबर, 2024 तक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में 29 ऐसी कंपनियां थीं, जिन्हें एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया गया है और उनमें से प्रत्येक पर 1,000 करोड़ रुपये और उससे अधिक का बकाया है। इन खातों में कुल बकाया 61,027 करोड़ रुपये था।

बैंक अपने नुकसान को स्वीकार कर लेता
जब कोई बैंक या वित्तीय संस्था यह मान लेती है कि कोई उधार लिया गया पैसा (लोन) अब वापस नहीं आएगा, तो वह उसे अपने बहीखाता से हटा देती है। इसे ही राइट ऑफ करना कहते हैं। लोन राइट-ऑफ का मतलब यह नहीं है कि उधार माफ हो गया, बल्कि यह सिर्फ एक अकाउंटिंग प्रोसेस है जिससे बैंक अपने नुकसान को स्वीकार कर लेता है, लेकिन फिर भी रिकवरी की कोशिश जारी रखता है। इसे सिर्फ खातों से हटा दिया जाता है ताकि बैलेंस शीट साफ दिखे।

व्यावसायिक शोषण की निंद
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सरकारी विज्ञापनों में एक महिला की तस्वीर का उसकी सहमति के बिना अवैध इस्तेमाल और उसके व्यावसायिक शोषण की निंदा की है। साथ ही, अदालत ने केंद्र और चार राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है। महिला नम्रता अंकुश कवले ने अपनी याचिका में कहा कि एक फोटोग्राफर, जो कि एक परिचित है, की ओर से ली गई उसकी तस्वीर को उसकी सहमति और जानकारी के बिना ‘शटरस्टॉक डॉट कॉम ‘ वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि तब से इस फोटो का इस्तेमाल महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और ओडिशा की राज्य सरकारों और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय और कुछ निजी संस्थाओं की ओर से अपनी वेबसाइटों, होर्डिंग्स और अन्य विज्ञापनों में अनधिकृत रूप से किया जा रहा है।
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विभिन्न राज्य सरकारों को नोटिस
न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी और न्यायमूर्ति अद्वैत सेठना की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दे इलेक्ट्रॉनिक युग और सोशल मीडिया के समकालीन समय को देखते हुए काफी गंभीर हैं। उच्च न्यायालय ने कहा प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि यह याचिकाकर्ता की तस्वीर का व्यावसायिक उपयोग है। पीठ ने इस इस मामले में रॉयल्टी-मुक्त स्टॉक फोटोग्राफ वाली वेबसाइट चलाने वाली अमेरिकी कंपनी शटरस्टॉक और महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और ओडिशा सहित विभिन्न राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया। तेलंगाना कांग्रेस, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय और एक निजी संस्था टोटल डेंटल केयर प्राइवेट लिमिटेड को भी नोटिस जारी किया गया,
जिसने याचिकाकर्ता की तस्वीर का इस्तेमाल किया था। अदालत ने सभी प्रतिवादियों से हलफनामा मांगा है और मामले की अगली सुनवाई 24 मार्च को तय की है। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह मामला विभिन्न राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों की ओर से अपनी योजनाओं के विज्ञापन में महिला की तस्वीर के अनधिकृत उपयोग से जुड़ा गंभीर मुद्दा सामने लाता है। महिला ने अपनी याचिका में कहा कि उसके गांव के फोटोग्राफर तुकाराम कर्वे ने उसकी तस्वीर ली और उसकी सहमति के बिना उसे शटरस्टॉक वेबसाइट पर अपलोड कर दिया।