Ajay Gopikisan Piramal – 30 से ज्यादा देशों में है कारोबार, स्कॉटलैंड में सम्मानित
Ajay Gopikisan Piramal : 1920 में पीरामल ग्रुप के चेयरमैन अजय पीरामल के दादा सेठ पीरामल चतुर्भुज मखारिया 50 रुपए लेकर राजस्थान के बागड़ से मुंबई आए। उस दौरान मुंबई बतौर बिजनेस हब में तब्दील हो रहा था। उन्होंने कपास का बिजनेस शुरू किया। इसके साथ ही उन्होंने सिल्क, सिल्वर, कमोडिटी और अफीम का व्यापार भी किया। 1935 मे सेठ मखारिया ने बिजनेसमैन गोकुलदास से उनकी कॉटन मिल खरीदी। उस समय ये मिल देश की सबसे पुरानी और पहली रजिस्टर्ड कॉटन मिल थी। 1958 में सेठ पीरामल चतुर्भुज मखारिया के निधन के बाद बिजनेस की जिम्मेदारी अजय के पिता गोपीकिशन पर आ गई।

एक करोड़ की मॉडर्न स्पिनिंग यूनिट लगाई
1962 में गोपीकिशन ने एक करोड़ की मॉडर्न स्पिनिंग यूनिट लगाई। इसी दौरान उन्होंने एक अन्य कॉटन मिल भी खरीदी। 1970 के दशक में कंपनी के फाउंडर और दादा के सम्मान में बेटे ने अपना सरनेम मखारिया से पीरामल कर लिया। इस दिन से अजय के पिता गोपीकिशन मखारिया से गोपीकिशन पीरामल हो गए। यही वो समय था जब पिता के बिजनेस में अजय ने मदद करनी शुरू की। बिजनेस को आगे बढ़ाते हुए गोपीकिशन ने पहले VIP इंडस्ट्रीज और फिर मिरिंडा टूल्स कंपनी खरीद ली। अजय का जन्म 3 अगस्त 1955 को हुआ। 1977 में उन्होंने जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट से एमबीए किया। 1979 में उनके पिता गोपीकिशन पीरामल की न्यूयॉर्क में मौत हो गई। करीब एक साल बाद ही बड़े भाई दिलीप ने फैमिली बिजनेस का बंटवारा कर लिया और बैग मैन्युफैक्चरिंग कंपनी VIP इंडस्ट्रीज के साथ अलग हो गए। अजय के हिस्से में टैक्सटाइल फैक्ट्री आई। एक भाई अशोक पीरामल की भी 1982 में कैंसर से मौत हो गई। इसके बाद उनके तीन बच्चों और स्टील कारोबार मिरिंडा टूल्स की जिम्मेदारी अजय को संभालनी पड़ी। अजय पीरामल ने कहा था कि घर की परिस्थितियों को देखते हुए मुझे लीडरशिप मिली, ये मेरी चॉइस नहीं थी। मैं सिर्फ अपने पिता के जैसा बनना सीख रहा था। उस समय कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था, लेकिन मैंने विश्वास कायम रखा।
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कंपनियां खरीदने और बेचने के लिए जाना जाता
अजय पीरामल को कंपनियां खरीदने और बेचने के लिए भी जाना जाता है। वे कंपनियों को आपस में मर्ज करने के लिए भी जाने जाते हैं। अजय पीरामल ने 1984 में गुजरात ग्लास लिमिटेड कंपनी खरीदी। इसी साल उन्होंने टेक्सटाइल बिजनेस से निकलकर फॉर्मा बिजनेस में एंटर होने का फैसला लिया। 1988 में 6 करोड़ रुपए से ऑस्ट्रेलियन MNC निकोलस लैबोरेटरीज कंपनी खरीदी। 1990 में गुजरात ग्लास को निकोलस में मर्ज कर दिया गया। 1991 में मध्य प्रदेश के पीथमपुर इंडस्ट्रियल एरिया में प्लांट डाला। 1993 में अमेरिकी कंपनी एलेरगन के साथ जॉइंट वेंचर एग्रीमेंट किया। इस समय तक अजय कंपनियों के मर्जर और जॉइंट वेंचर के एक्सपर्ट से हो गए थे। 1994 में डेंटल केयर प्रोडक्ट्स के लिए फ्रांस की कंपनी सेटेलेक से एग्रीमेंट साइन किया।

अमेरिकी कंपनी एबोट को 17500 करोड़ में बेचा
1995 में हैदराबाद की सुमित्रा फॉर्मा कंपनी को निकोलस पीरामल इंडिया में मिला लिया। 1996 में जर्मन कंपनी Boehringer Mannheim की इंडियन यूनिट को खरीदा। 2000 में फ्रेंच कंपनी Rhone Poulenc की इंडिया यूनिट को 236 करोड़ में खरीदा। 2001 में पीरामल लाइफ साइंस लिमिटेड का फॉर्मेशन हुआ। 2002 में ICI फार्मा खरीदी। 2003 में साराभाई पीरामल और ग्लोबल बल्क ड्रग्स का अधिग्रहण किया। 2005 में अमेरिकी फर्म द ग्लास ग्रुप का एक हिस्सा खरीदा। 2006 में यूके की Pfizer’s Morpeth का अधिग्रहण किया। अजय पीरामल ने साल 2010 में फार्मास्युटिकल कंपनी निकोलस पीरामल को मशहूर अमेरिकी कंपनी एबोट को 17500 करोड़ रुपए में बेच दिया। तब ये कंपनी मुनाफे में चल रही थी। यह तब की इंडियन फार्मा इंडस्ट्री की दूसरी सबसे महंगी डील थी। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस डील में अजय को उस समय की वैल्यूएशन की तुलना में 9 गुना ज्यादा दाम मिले थे। ये कंपनी के प्रॉफिट का 30 गुना था। इससे पूरे मार्केट में खलबली मच गई थी। इस डील के पैसों को अजय ने रियल एस्टेट और टेलिकॉम सेक्टर में लगाया। इससे 1.6 बिलियन डॉलर का फायदा हुआ।
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वोडाफोन के जरिए मुनाफा कमाया
अपने कारोबार को लेकर संघर्ष कर रही टेलिकॉम कंपनी वोडाफोन के जरिए पीरामल ने मुनाफा कमाया था। उन्होंने 2011 में 1290 रुपए के औसत मूल्य से वोडाफोन इंडिया के 11% शेयर खरीदे थे। 2014 में ये सारे शेयर 8900 करोड़ रुपए में प्राइम मेटल लिमिटेड को बेच दिए। इससे कंपनी को अच्छा फायदा हुआ था। एक इंटरव्यू में अजय पीरामल ने कहा था… हम किसी भी चीज में निवेश से पहले उसका फ्यूचर देखते है। वोडाफोन के बारे में हमें पता था कि ये लॉन्ग टर्म निवेश नहीं है। इसी के चलते इसके शेयर बेच दिए। 2005 में बेटे आनंद ने पीरामल लाइफ साइंस लिमिटेड में बतौर डायरेक्टर जॉइन किया। इससे पहले आनंद अपने स्टार्ट अप Piramal e Swasthya को देख रहे थे। 2006 में S&P ने पीरामल हेल्थकेयर को ग्लोबल लीडर के तौर पर लिस्टेड किया।
2008 में निकोलस पीरामल इंडिया कंपनी का नाम बदलकर पीरामल हेल्थकेयर लिमिटेड हुआ। 2009 में 188 करोड़ रुपए में यूएस फर्म Minard International Inc के बिजनेस का अधिग्रहण किया। 2009 आते-आते पीरामल ग्रुप 1 बिलियन डॉलर का रेवेन्यू वाला हो गया था। इस समय तक कंपनी इंडिया की 5वीं सबसे बड़ी फॉर्मा कंपनी बन चुकी थी। 2010 में कंपनी ने रियल एस्टेट बिजनेस में भी एंटर किया। बेटे आनंद ने अपनी पीरामल रियल्टी कंपनी खोली। 2012 में पीरामल हेल्थकेयर का नाम बदलकर पीरामल एंटरप्राइजेज किया गया। 2014 में श्रीराम कैपिटल में 2014 करोड़ में 20% हिस्सेदारी खरीदी। साथ ही श्रीराम सिटी यूनियन फाइनेंस लिमिटेड में भी 9.99% हिस्सा खरीदा। 2017 में आनंद पीरामल एंटरप्राइजेज के नॉन एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर और पीरामल ग्रुप के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर बने। उन्होंने पीरामल ई-हेल्थ, ‘पीरामल रियल्टी’ जैसे स्टार्ट- अप शुरू किए है।

इनोवेशन में सक्रिय है पत्नी
अजय पीरामल की पत्नी डॉ. स्वाती पीरामल हेल्थकेयर इनोवेशन में सक्रिय रही हैं। उन्होंने पीरामल फाउंडेशन के जरिए स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काफी सोशल वर्क किया है। इसके लिए उन्हें 2012 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। अजय पीरामल की पत्नी डॉ. स्वाती पीरामल हेल्थकेयर इनोवेशन में सक्रिय रही हैं। उन्होंने पीरामल फाउंडेशन के जरिए स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काफी सोशल वर्क किया है। इसके लिए उन्हें 2012 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। सही समय पर सही जगह पैसे लगाने की रणनीति के चलते अजय पीरामल की तुलना दुनिया के सबसे मशहूर निवेशक वॉरेन बफे से की जाती है। उन्होंने कई दवा कंपनियों को तब खरीदा, जब 1980 के दशक में बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां उन्हें सस्ते में बेच रही थीं। वहीं, उन्हें तब बेचा, जब उनसे सबसे ज्यादा मुनाफा मिलने की उम्मीद थी। अमेरिकी बिजनेस टाइकून वॉरेन बफे को दुनिया का सबसे बड़ा निवेशक माना जाता है। उनकी कंपनी बर्कशायर हैथवे के शेयर दुनिया में सबसे महंगे हैं। बफे ने कई कंपनियों में निवेश किया है, जो आगे चलकर मल्टी-बिलियन डॉलर कॉरपोरेशन बन गई हैं। हालांकि, बफे ने भी कई ऐसे निवेश किए हैं, जिसमें उन्हें भारी नुकसान हुआ है।
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शेखावटी के मखर गांव से ताल्लुक रखता है परिवार
पीरामल ग्रुप के चेयरमैन अजय गोपीकिशन पीरामल अपने कारोबारी फैसलों के लिए जाने जाते हैं। एक सफल बिजनेसमैन के तौर पर अजय पीरामल ने अपने ग्रुप को बीते 4 दशक में नई ऊंचाई पर पहुंचाया है। ग्रुप का कारोबार 30 से ज्यादा देशों में है। फोर्ब्स के अनुसार अजय पीरामल की नेटवर्थ 30 हजार करोड़ से अधिक की है। उन्हें मर्जर किंग भी कहा जाता है। पिछले दिनों पीरामल फार्मा सॉल्यूशन्स को स्कॉटलैंड के ग्रेंजमाउथ शहर में सम्मानित किया गया। यह अवॉर्ड नेशनल स्कॉटिश पेशेंट अवेयरनेस काउंसिल (SPAC) की स्थापना में पीरामल के योगदान के लिए दिया गया है। पीरामल परिवार राजस्थान के शेखावटी के मखर गांव से ताल्लुक रखता है। अजय के दादा सेठ पीरामल चतुर्भुज मखारिया ने 1928 में जयपुर के महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय के स्वागत के लिए शेखावटी में पीरामल गेट बनवाया था। सेठ के स्वागत से खुश होकर जयपुर के महाराज ने उनको सम्मानित भी किया था। सेठ पीरामल चतुर्भुज मखारिया की प्रसिद्धि इतनी थी कि उनके वंशजों ने अपने उपनाम के रूप में उनके नाम पीरामल को अपनाया। 1928 में ही उन्होंने राजस्थान के बांगड़ में एक महलनुमा कोठी बनवाई जो आज पीरामल परिवार का फाइव स्टार होटल है।