Fired From Job: कंपनी को ब्रांड बनाने वाले सीईओ भी आउट हुए हैं
Fired From Job: आधुनिक कॉरपोरेट जगत में आम कर्मचारियों के लिए ही नहीं सर्वोच्च पदों पर बैठे संस्थापकों तक की भी जगह सुरक्षित नहीं है। इन्हें कई वजहों से निकाला जा सकता है। मसलन सीईओ के रूप में इनका प्रदर्शन लक्ष्य के अनुरूप न हो, ये अवैध गतिविधियों में शामिल हों, इनका आचरण अनैतिक हो। यही नहीं, किसी कंपनी का सीईओ चाहे वह कंपनी का संस्थापक ही क्यों न हो अगर कंपनी के कर्मचारियों, उपभोक्ताओं और शेयरधारकों को जोखिम में डाल रहा हो तो उसे भी बोर्ड के बहुमत से निकाला जा सकता है। कुछ समय पहले चैट जीपीटी निर्माता कंपनी ओपेन एआई कई वजहों से चर्चा में रही। कभी अपनी रोमांचित कर देने वाली तकनीकी के कारण तो नवंबर 2023 में यह इसलिए दुनिया भर की मीडिया की सुर्खियों में आई क्योंकि इसके निदेशक बोर्ड ने कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सैम आल्टमैन को पद से हटा दिया। यह ऐसे लोगों के लिए जो कॉरपोरेट संरचनाओं के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते, हतप्रभ कर देने वाली खबर थी।
इस्तीफा देकर जाने को मजबूर
आल्टमैन न केवल एआई तकनीकी के जनक हैं बल्कि उनके ही अथक प्रयासों से यह कंपनी खड़ी हुई थी। इसलिए निदेशक बोर्ड द्वारा उन्हें निकाला जाना कई लोगों को अटपटा लगा और कुछ को ज्यादती। फिलहाल यह न तो कोई अटपटी घटना थी और न ही किसी तरह ज्यादती। पूरी दुनिया में हर साल ऐसी सैकड़ों घटनाएं होती हैं। सैम आल्टमैन पहले ऐसे दिग्गज नहीं हैं जिन्हें उसी कंपनी से निकाला गया हो जिसकी स्थापना के लिए उन्होंने दिन-रात एक किए हों। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जब किसी कंपनी के निर्माता या कंपनी को ब्रांड बनाने वाले सीईओ को निकाल दिया गया हो। ऐसी कई दर्जन घटनाएं घटीं। करीब 20 सीईओ तो भारत में ही अलग-अलग स्टार्टअप्स से या तो खुद ही इस्तीफा देकर चले गए या उन्हें इसके लिए मजबूर कर दिया गया।

स्थितियां खराब हो जाने की वजह से निकल गये
कॉरपोरेट इतिहास में सैम आल्टमैन जैसे अनेक दिग्गज हैं जिन्हें यह दिन देखने पड़े हैं। यहां तक कि कॉरपोरेट सफलता का पर्याय माने जाने वाले और एप्पल के सीईओ रहे स्व. स्टीव जॉब्स को भी पिछली सदी में 90 के दशक में अपनी ही कंपनी से निकाल दिया गया था। दरअसल स्टीव जॉब्स ने स्टीव वोज्नियाक के साथ मिलकर 1976 में एप्पल की स्थापना की थी और रातोंरात उसे बहुमूल्य कंपनी में बदल दिया था लेकिन कंपनी के डायरेक्टर्स बोर्ड को जॉब्स की गतिविधियां पसंद नहीं आयीं तो उन्हें कंपनी से निकाल दिया गया। हालांकि उन्होंने निकाले जाने के बाद 2 और शानदार कंपनियां खड़ी कर दीं- पिक्सर और नेक्स्ट। इस वजह से उनकी फिर से एप्पल में सीईओ के रूप में वापसी करा ली गई। अगर सिर्फ वर्ष 2022-23 में भारत में कॉरपोरेट दिग्गजों को उनके पद से बर्खास्त कर दिये जाने या इनके इस्तीफा देकर चले जाने की ही बात करें तो 5 बड़े कॉरपोरेट दिग्गजों ने इस दौरान या तो अपने संस्थानों से निकाले गए या स्थितियां खराब हो जाने की वजह से खुद ही निकल गए। इनमें थे भारतपे के पूर्व सीईओ और एमडी अश्नीर ग्रोवर, ई-कॉमर्स स्टार्टअप जिलिंगो की संस्थापक और सीईओ अंकिति बोस, स्पोर्ट्सक्रीड़ा के संस्थापक और सीईओ पोरुष जैन, जेबपे के सीईओ अविनाश शेखर और ओला कार्स के सीईओ अरुण सिरदेशमुख।
दो भाइयों को कंपनी छोड़नी पड़ी
भारत में इस तरह के हटाए जाने या उलटफेर के सबसे चर्चित मामले की बात करें तो यह साल 2007 में सचिन बंसल और बिन्नी बंसल द्वारा स्थापित फ्लिपकार्ट कंपनी का है। आईआईटी के इन 2 पूर्व छात्रों को कंपनी बनाने के एक साल बाद ही जबरदस्त सफलता हाथ लग गई थी जब उन्हें उनकी उम्मीद के कई गुना ज्यादा ऑर्डर मिलने लगे थे और कंपनी का राजस्व दिन दूनी, रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ने लगा था। हालांकि वर्ष 2018 में वॉलमार्ट के साथ एक अधिग्रहण डील के दौरान इनका अपने ही बोर्ड के साथ विवाद हो गया। इस कारण बोर्ड के सदस्यों ने ऐसी स्थितियां पैदा कर दीं कि इन दो भाइयों को अपनी हिस्सेदारी एक अरब डॉलर में बेचकर कंपनी छोड़नी पड़ी। दरअसल इन पर सिर्फ इनके बोर्ड ने ही नहीं वॉलमार्ट ने भी कॉरपोरेट इथिक्स को तोड़ने के आरोप लगाये थे।
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फर्जी चालन बनाने का आरोप
शार्क टैंक इंडिया से लोकप्रिय हुए अश्नीर ग्रोवर को जनवरी 2022 में एक ऑडियो क्लिप विवाद के चलते पहले लंबी छुट्टी पर भेजा गया, फिर दबाव डालकर फिनटेक स्टार्टअप भारतपे से उन्हें निकलने के लिए मजबूर कर दिया गया। अश्नीर इस स्टार्टअप के सह-संस्थापक और प्रबंधन निदेशक थे। अश्नीर पर अपनी पत्नी और परिजनों के फर्जी चालन बनाने का आरोप लगाया गया और दिल्ली उच्च न्यायालय में पेश ईओडब्ल्यू के निष्कर्षों के मुताबिक इसमें शामिल लोगों ने कथित तौर पर सेवाओं को किराये पर लेने के लिए भारतपे के फंड को स्थानांतरित करने के लिए चालान का इस्तेमाल किया। इसी तरह कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी के पायनियर टेक्नोक्रेट में से एक जेरी यांग रहे। उन्हें वर्ष 1999 में एमआईटी टेक्नोलॉजी में 35 साल से कम उम्र के दुनिया के 100 इनोवेटर्स में से एक माना गया था। याहू सर्च इंजन और वेब सेवा जैसी कंपनियों की स्थापना में सहायक रहने वाले जेरी यांग को भी वर्ष 2008 में माइक्रोसॉफ्ट की ओर से कंपनी के अधिग्रहण का विरोध करने परे याहू के सीईओ के रूप में उनकी भूमिका को सीमित कर दिया गया था। इस कारण अंततः उन्होंने ही कंपनी से इस्तीफा दे दिया था। वास्तव में कॉरपोरेट दुनिया में कामयाबी की पटकथाएं लिखने वाले कई सीईओ को उनकी संदिग्ध गतिविधियों के कारण या दूसरे कॉरपोरेट मुद्दों के चलते कई बार बर्खास्त कर दिया जाता है या ऐसी स्थितियां बनायी जाती हैं कि वे खुद ही अपने पद छोड़कर चले जाएं। हाल के दशकों में तेज रफ्तार कामयाबी के सफर में दर्जनों ताकतवर सीईओ और कंपनियों के संस्थापक इसके शिकार हुए हैं।

अपमानजनक ढंग से चलता किया
ट्विटर (जो अब एक्स है) ने जिस अपमानजनक ढंग से भारतीय मूल के अपने सीईओ पराग अग्रवाल को कंपनी से चलता किया, वह कॉरपोरेट सेक्टर को हिला देने वाला अनुभव था। दरअसल जब पराग अग्रवाल को उनके पूर्ववर्ती जैक डोर्सी की जगह लाया गया था तो यह कहा गया था कि पराग दुनिया में एक्सप्रेशन का ढंग बदलने की क्षमता रखते हैं। ट्विटर उनके आने के बाद प्रगति भी कर रहा था लेकिन जब कंपनी का एलन मस्क द्वारा अधिग्रहण कर लिया गया तो एलन मस्क ने बिना कोई ठोस कारण बताए न सिर्फ पराग अग्रवाल बल्कि कंपनी की पूरी टॉप लीडरशिप को ही बाहर निकाल दिया था। इसके पहले ट्विटर से उसके सह-संस्थापक जैक पैट्रिक डोर्सी को भी निकाला गया था। डोर्सी ने 2006 में ट्विटर में सह-संस्थापक के रूप में अपनी शानदार भूमिका अदा की थी लेकिन वर्ष 2008 में इवान विलियम्स द्वारा उन्हें कंपनी के बाहर का दरवाजा दिखा दिया गया। हालांकि 2015 में उन्होंने फिर से सीईओ के रूप में वापसी की थी लेकिन 2021 में उन्होंने खुद ही ट्विटर को छोड़ दिया और ज्यादातर लोग इसका ठोस कारण जान नहीं सके। डोर्सी ने सिर्फ इतना कहा था कि कंपनी उनके बिना आगे बढ़ने को तैयार है। जाहिर है ऐसी स्थितियां बना दी गई थीं कि वह ज्यादा देर तक यहां न रहें।
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