TS Kalyanaraman – Kalyan Jewellers : कल्याण ज्वेलर्स के देश में हैं 250 से ज्यादा शोरूम
TS Kalyanaraman – Kalyan Jewellers – कल्याण ज्वेलर्स के जन्मदाता टीएस कल्याणरमन को गोल्ड का व्यापार शुरू करना था। उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे नया शोरूम खोल सकें। उन्होंने अपने पुश्तैनी व्यापार में कुछ समय तक काम करके पहले 25 लाख रुपए इकट्ठा किए थे। ये पैसा सोने के गहनों का व्यापार शुरू करने के लिए कम था। उन्होंने बैंक से 50 लाख रुपए का लोन लिया।
75 लाख रुपए इकट्ठा होने के बाद उन्होंने त्रिशूर में पहला शोरूम खोला। शोरूम का नाम कल्याण ज्वेलर्स रखा। शहर में ज्यादातर ज्वेलरी स्टोर 300 वर्ग फीट की जगह में थे। यह शोरूम 4 हजार वर्ग फीट में फैला था। शहर के लोगों के लिए यहां से गहने खरीदना एक नया अनुभव था। यहां से कल्याण ज्वेलर्स के कारोबार की शुरुआत हुई।

ग्राहकों की जरूरत के हिसाब से सेवाओं में बदलाव
त्रिशूर में कल्याण ज्वेलर्स का कारोबार अच्छा चलने लगा। आसपास के इलाकों से भी लोग आकर कल्याण से गहने खरीदने लगे। कल्याणरमन ने सोचा कि दूसरे शहरों में भी शोरूम खोलने चाहिए। केरल के पलक्कड़ शहर से कल्याणरमन के पास काफी ग्राहक आते थे, उन्होंने दूसरा शोरूम इसी शहर में खोला। नया शोरूम खोलते ही उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। दरअसल, पलक्कड़ के ग्राहक त्रिशूर के मुकाबले अलग थे। खरीदार अमीर तो थे, लेकिन उनकी खरीदारी का तरीका बिल्कुल अलग था। ग्राहकी उम्मीद से बहुत कम हो रही थी।
कल्याणरमन ने अपनी रणनीति बदली। उन्होंने बेटे रमेश कल्याणरमन को पलक्कड़ भेजा। रमेश ने वहां कई हफ्ते बिताए और वहां के ग्राहकों की जरूरतों को समझा। रमेश ने ग्राहकों की जरूरत के हिसाब से सेवाओं में बदलाव किया। इससे कंपनी की सेल पलक्कड़ में बढ़ने लगी और वहां के लोगों का भरोसा भी कल्याण के लिए बढ़ा।
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हाइपर लोकल फॉर्मूला अपनाया
कल्याणरमन ने पलक्कड़ से सीख लेते हुए जिस शहर में भी अपना शोरूम खोला, वहां उन्होंने हाइपर लोकल फॉर्मूला अपनाया। अब वे उस इलाके में शोरूम खोलने से पहले रिसर्च और ज्वेलरी डिजाइन करने वाली टीम भेजते हैं। इसके बाद उस इलाके के रीति-रिवाजों और संस्कृति के हिसाब से गहनों का डिजाइन तैयार कराते हैं। स्टाफ भी ऐसे रखे जाते हैं, जिन्हें उस इलाके के रीति-रिवाज और कस्टमर की समझ हो। कल्याण ज्वेलर्स ने अलग-अलग राज्यों और भाषाओं से ब्रांड एम्बेसडर बनाया है। कंपनी ने शुरुआती दस साल अपना कारोबार केरल में ही स्थापित करने में लगाए।

2004 में खोला केरल से बाहर पहला शोरूम
2004 में केरल से बाहर पहला शोरूम तमिलनाडु के कोयंबटूर में खोला। 2010 तक, कल्याण ने कर्नाटक और तेलंगाना के बाजारों में शोरूम खोले। 2012 में, दक्षिण भारत के बाहर पहला शोरूम गुजरात के अहमदाबाद में खोला। 2013 तक महाराष्ट्र और अरब देशों में भी कंपनी ने अपने स्टोर खोल लिए थे। 2012 में कल्याण ज्वेलर्स ने अमिताभ बच्चन को ब्रांड एम्बेसडर बनाया। अमिताभ बच्चन का नाम जुड़ने से कल्याण ज्वेलर्स को काफी फायदा हुआ।
इसके बाद कल्याण ने कई क्षेत्रीय ब्रांड एम्बेसडर बनाए, ताकि अलग-अलग राज्यों के स्थानीय ग्राहकों तक पहुंचा जा सके। आज अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, कटरीना कैफ, नागार्जुन, प्रभु गणेशन, वामिका गब्बी, पूजा सावंत, शिव राजकुमार, किंजल राजप्रिया, रिताभरी चक्रवर्ती जैसी हस्तियां कल्याण ज्वेलर्स के ब्रांड एम्बेसडर हैं। कल्याण ज्वेलर्स अपने हर डिजाइन का पेटेंट कराता है। उनके शोरूम पर मिलने वाली गोल्ड ज्वेलरी जैसी डिजाइन किसी दूसरे ब्रांड में नहीं मिलती।

हर डिजाइन का पेटेंट
कल्याण ज्वेलर्स अपने हर डिजाइन का पेटेंट कराता है। उनके शोरूम पर मिलने वाली गोल्ड ज्वेलरी जैसी डिजाइन किसी दूसरे ब्रांड में नहीं मिलती। करीब 10 साल पहले कल्याण ज्वेलर्स ने ‘हीरा सबके लिए है’ नाम से एक कैंपेन चलाया। इस कैंपेन से कल्याण ने हीरे के लिए लोगों के नजरिए को बदल दिया। जो हीरा पहले सिर्फ अमीर लोग खरीद पाते थे, उसे मिडिल क्लास तक ले जाने में इस कैंपेन से मदद मिली। कैंपेन के दौरान अमिताभ बच्चन कल्याण के डायमंड से बने गहनों के बारे में बताते थे, जिनकी कीमत 8000 रुपए से शुरू होती थी। इतने कम दाम से बने हीरे के गहनों ने मिडिल क्लास उपभोक्ताओं को अपनी तरफ खींचा।

2017 में कैंडेरे के शेयर खरीदे और अधिग्रहण किया
कल्याण ने ऑनलाइन बाजार में उतरने के लिए 2017 में कैंडेरे के शेयर खरीदे और अधिग्रहण कर लिया। कैंडेरे एक ऑनलाइन आभूषण स्टोर है, जिसे 2013 में रूपेश जैन ने शुरू किया था। जून 2024 में कल्याण ने रूपेश के बचे हुए 15 प्रतिशत शेयर भी खरीद लिए और बाकी बची हिस्सेदारी भी हासिल कर ली। क्षेत्र, संस्कृति और वहां के लोगों के हिसाब से प्रोडक्ट बनाना और उन तक पहुंचाना।
ग्राहकों से फीडबैक के आधार पर बिजनेस मॉडल में बदलाव करते रहना। कंपनी ‘ग्रेट प्लेस टू वर्क’ वर्क स्पेस कल्चर में ग्लोबल लीडर है। ये अन्य कंपनियों को अपने कर्मचारियों को पॉजिटिव वर्कस्पेस अनुभव देने में मदद करती है। जो कंपनियां अपने कर्मचारियों को वर्क प्लेस पर अच्छा अनुभव और वर्क स्पेस देती हैं, उन्हें ‘ग्रेट प्लेस टू वर्क’ सर्टिफिकेट दिया जाता है। ग्रेट प्लेस टू वर्क सर्टिफिकेशन पाने के फ़ायदे – यह प्रमाण पत्र, कंपनी की प्रतिष्ठा को बढ़ाता है। इससे कंपनी को नए कर्मचारी मिलने में आसानी होती है। इससे कर्मचारियों की नौकरी छोड़ने की दर कम होती है।
इससे कर्मचारियों में क्रिएटिविटी और कुछ नया करने की इच्छा बढ़ती है। कल्याण ज्वेलर्स के भारत में अभी इसके 250 शोरूम हैं। भारत के अलावा यूएई, कतर, कुवैत और ओमान में कल्याण ज्वेलर्स के 30 शोरूम हैं। कंपनी जल्द ही अमेरिका में भी अपना शोरूम खोलने वाली है। हाल ही में कल्याण ज्वेलर्स को ‘ग्रेट प्लेस टू वर्क’ सर्टिफिकेट मिला है। फिलहाल कंपनी का मार्केट कैप 75 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है।
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दादा त्रिशूर के एक मंदिर में पुजारी थे
कल्याण ज्वेलर्स के जन्मदाता टीएस कल्याणरमन के दादा त्रिशूर के एक मंदिर में पुजारी थे। कल्याणरमन के पिता टीआर सीतारम्मैया अय्यर के साथ मंदिर पूजा करने जाते थे। पुजारी पिता के मना करने के बाद भी उन्होंने पूजा-पाठ की जगह कपड़े की दुकान खोल ली। धीरे-धीरे सीतारम्मैया का कपड़े का बिजनेस चल निकला। कुछ सालों बाद सीतारम्मैया ने कपड़ा बनाने का एक कारखाना त्रिशूर में ही लगा लिया। ये भी खूब चला।
सीतारम्मैया ने उस दौर में केरल के कई शहरों में कपड़ा बेचने के लिए दुकाननुमा शोरूम खोल दिए। हालांकि बाद में सरकार ने इनके कारखाने का अधिग्रहण कर लिया। 23 अप्रैल, 1947 को सीतारम्मैया के घर एक बेटे का जन्म हुआ। नाम रखा गया कल्याणरमन। सीतारम्मैया ने बेटा होने की खुशी में कई धार्मिक आयोजन कराए। कल्याणरमन 12 साल के थे, तभी से पिता के साथ उनकी दुकानों और कारखाने में मदद करने के लिए जाने लगे थे। थोड़ा बड़े हुए तो उनके बिजनेस का हिसाब-किताब भी देखने लगे। पिता के कारोबार में मदद के साथ कल्याणरमन ने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी।

कॉमर्स में ग्रेजुएशन
श्रीकेरल वर्मा कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन पूरा किया। कल्याणरमन भाइयों में सबसे बड़े थे, इसलिए पिता चाहते थे कि बड़ा बेटा पूरी तरह से कपड़ों का कारोबार संभाल ले। पिता ने जब उनसे अपना जमा-जमाया बिजनेस संभालने कहा, तो उन्होंने साफ मना कर दिया। कल्याणरमन को सोने के गहनों के व्यापार में ज्यादा स्कोप दिखा, इसकी एक वजह भी थी।
वे पिता के साथ त्रिशूर में जिस ऑफिसनुमा अपने कपड़े के शोरूम में बैठते थे, उसके आसपास गोल्ड ज्वेलरी की कई दुकानें थीं। वे भी कुछ ऐसा ही करना चाहते थे। कल्याणरमन ने महसूस किया कि विकल्पों की कमी और कम पारदर्शिता के कारण ग्राहकों को बहुत परेशानी होती हैं। उन्होंने मौके का फायदा उठाते हुए गोल्ड का व्यापार करने का फैसला किया।