China and Taiwan Conflict :जानिए चीन-ताइवान के बीच के संबंधों के बारे में
चीन और ताइवान के बीच का विवाद लगभग 73 साल पुराना है ताइवान, जिसे चीन गणराज्य (आरओसी) के रूप में मानता है, वह ताइवान चीन से अलग हुआ एक द्वीप हैं। ताइवान 1949 से ही चीन से स्वतंत्र रूप से शासित देश है, वहाँ लोगो द्वारा चुनी हुई स्वतंत्र सरकार हैं। ताइवान अपना अलग संविधान है।चीन ताइवान को आधिकारिक तौर पर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के रूप में मानता हैं। चीन पीआरसी को इस द्वीप को एक विद्रोही प्रांत के रूप में देखता है और हर हालत में इस पर अपना अधिकार करना चाहता हैं।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ताइवान और चीन को पुन: एक करने की हमेशा जोरदार वकालत करते हैं। ऐतिहासिक रूप से देखा जाये तो ताइवान कभी भी चीन का हिस्सा नहीं। ताइवान , जिसकी अपनी खुद की लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार है और ताइवान में कुल तेईस मिलियन लोगों का घर हैं।
ताइवान की स्थिति और मुख्य भूमि के साथ संबंधों पर अलग -अलग राजनीतिक नेताओं के अलग-अलग विचार हैं। जो इसे कूटनीतिक तोर पर अलग पहचान देता है। 2016 के बाद ताइवान की नई राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने जैसे कसम खा रखी है ताइवान के ऊपर से चीन के कंट्रोल को हटाने की। चुनाव के बाद से ही क्रॉस-स्ट्रेट तनाव बढ़ गया हैं। त्साई ने पुराने सारे फॉर्मूले को स्वीकार करने से मना कर दिया है, जिसे उनके पूर्ववर्ती मा यिंग-जेउ ने संबंधों में नमी बढ़ाने के लिए अनुमति दी थी।

इसके बाद से ही, बीजिंग ने तेजी से आक्रामक कार्रवाई शुरू कर दी है, जिसके बाद ताइवान के आस -पास कई लड़ाकू जेट कई बार उड़ाए गए । कई विश्लेषकों को डर है कि ताइवान पर चीनी हमले से अमेरिका के चीन पर हमले के आसार बढ़ सकते हैं। अगर यह युद्ध होता है तो विश्व में तीसरे विश्व युद्ध हो सकता हैं। क्योंकि दोनों ही देश सैन्य बल में एक से बढ़ कर एक हैं। यह युद्ध दुनिया की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से हिला सकता हैं।
ताइवान कैसे बना एक अलग राष्ट्र
ताइवान की कहानी 1644 से शुरू हुई थी । इस वक्त चीन पर चिंग वंश का शासन था। तब ताइवान चीन का अखंड हिस्सा हुआ करता था। 1895 में चीन ने ताइवान को जापानी सरकार को सौंप दिया। कहा जाता है कि यह विवाद यहीं से शुरू हो गया था 1949 में चीन में चल रहे गृहयुद्ध के दौरान माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हरा दिया था।
हार के बाद कॉमिंगतांग पार्टी ताइवान गई और उसने वहां जाकर अपनी सरकार का निर्माण किया। इसी बीच में दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार हो गई और जापान ने कॉमिंगतांग को ताइवान का अधिपत्य सौंप दिया। उसके बाद विवाद इस बात पर शुरू हुआ कि जब कम्युनिस्टों ने चीन में जीत हासिल की है तो ताइवान पर भी उनका ही अधिकार होना चाहिए। जबकि कॉमिंगतांग का कहना था कि भले ही वे चीन के कुछ हिस्सों में हारे हैं लेकिन वे ही आधिकारिक रूप से चीन पर अपना प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए ताइवान पर भी सिर्फ उनका ही अधिकार हैं।
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आखिर क्यों इन दिनों चीन और ताइवान के बीच तनावपूण संबधो की चर्चा हो रही है ?
1. चीन ने बड़ी घोषणा की है कि वह ताइवान की स्वतंत्रता को प्राप्त करने के किसी भी प्रयास या किसी विदेशी हस्तक्षेप को नहीं सहेगा और वह इसके खिलाफ लड़ने के लिये तैयार है।वह बस किसी भी तरह ताइवान पर कंट्रोल चाहता हैं।
2. संयुक्त राज्य अमेरिका में ताइवान के राष्ट्रपति की यात्रा के जवाब में चीन ने ताइवान के समुंदर में सैन्य अभ्यास किया और ताइवान को आने वाले बर्बादी के लिए चेताया। बड़े पैमाने पर अन्य देशों द्वारा मान्यता प्राप्त ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है । हालाँकि चीन इसे एक अलग राज्य मानता है और द्वीप को अपने नियंत्रण में लेने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं।

3. अमरीकी कांग्रेस ने ‘ताइवान रिलेशन एक्ट’ पास किया जिसके तहत तय किया गया है कि अमरीका, ताइवान को सैन्य हथियार सप्लाई करेगा और हर प्रकार की शेन्य सहायता भी देगा। अगर चीन ताइवान पर किसी भी तरह का हमला करता है तो अमरीका उसे बेहद गंभीरता से लेगा और उसका जवाब देने में ताइवान को सहयता देगा।
आखिर क्यों दुनिया के लिए इतना अहम है ताइवान?
ताइवान दुनिया का सबसे बड़ा चिप मैन्युफैक्चरिंग हब है। फोन, लैपटॉप, घड़ी,टीवी से लेकर कार तक में लगने वाले ज्यादातर चिप ताइवान बनाता हैं। ताइवान की वन मेजर कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी चिप मेकिंग कंपनी है। दुनिया की आधे से अधिक चिप का उत्पादन यही कंपनी करती है। इसी वजह से ताइवान की अर्थव्यस्था दुनिया के लिए काफी मायने रखती है। अगर ताइवान पर चीन का कब्जा होता है तो दुनिया के लिए यह एक बेहद नुकसान दायक होगा। इससे चिप उद्योग पर चीन का नियंत्रण हो जाएगा। इसके बाद उसकी मनमानी और बढ़ सकती हैं।जिस से चीन दुनिया को और अधिक तंग कर सकता हैं।
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