Indian Cinema: 195 से ज्यादा देशों में से रहते हैं भारतीय
भारत की कुल आबादी 1 अरब 40 करोड़ के ऊपर है और हर साल कम से कम 78 से 80 करोड़ लोग कोई न कोई एक फिल्म जरूर देखते हैं, चाहे वह हिंदी हो या किसी क्षेत्रीय भाषा की फिल्म। अगर दुनिया में बसे करीब 3 करोड़ भारतीयों या भारतीय मूल के लोगों को देखें तो वे भारत में रह रहे लोगों के मुकाबले करीब दोगुना फिल्में देखते हैं।
जाहिर है प्रवासी भारतीयों तक भारतीय संस्कृति का अपडेट इन्हीं फिल्मों के जरिये ही बना रहता है। इसलिए एक तरफ जहां फिल्में भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करती हैं वहीं ये फिल्में प्रवासी भारतीयों की बदौलत अपना अच्छा खासा कारोबार करती हैं। यह दोनों तरफ की जरूरत है, तभी भारतीय फिल्में, भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण राजदूत बनी हुई हैं। सिनेमा न केवल एक कला है बल्कि दुनिया भर में बिखरे प्रवासी भारतीयों और भारतवंशियों को देश से जोड़कर रखने की मजबूत डोर का भी काम ये बखूबी करता है।
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मजबूत कड़ी की भूमिका निभाता सिनेमा
दुनिया के 195 से ज्यादा देशों में से ज्यादातर में भारतीय रहते हैं। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022 में पूरी दुनिया में करीब 2.9 करोड़ प्रवासी भारतीय और 30 लाख से ज्यादा भारतवंशी रहते थे। भारत से बाहर रह रहे इन अप्रवासी भारतीयों को देश से जोड़े रखने में सिनेमा एक मजबूत कड़ी की भूमिका निभाता है।
भारतीय फिल्मों ने यह कोई नया काम नहीं शुरू किया है बल्कि शुरू से ही वह यह सब कर रही हैं। फिल्म निर्माता राजकपूर को विदेशों में भारत के पहले सांस्कृतिक राजदूत के बतौर जाना जाता है। उनकी फिल्में न केवल देश के आम लोगों की कहानियों को खूबसूरती से बयां करती थीं बल्कि ये विभिन्न संस्कृतियों के साथ दूरियों को पाटने में भी मदद करती थीं। इसलिए उनकी फिल्मों ने आजादी के तुरंत बाद भारत की संस्कृति का परचम देश की राजनीतिक और भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर लहराया।
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बॉलीवुड ने किया भारत से बाहर परिभाषित
देश में वर्ष 1913 में पहली फिल्म बनी। तभी से बॉलीवुड ने राष्ट्रीयता को, खासकर भारत से बाहर परिभाषित करने में अपनी भूमिका निभायी है। यह अकारण नहीं है कि पिछले 75 सालों में भारतीय सिनेमा ने खासकर मुंबई फिल्मों ने प्रवासी भारतीयों को हमेशा किसी न किसी रूप में अपनी कथाओं और पटकथाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है।
साल 1970 में आयी मशहूर बॉलीवुड फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ की कहानी में एनआरआई की महत्वपूर्ण उपस्थिति थी तो कई सालों बाद 1995 में आयी ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में एक बार फिर से भारत के बाहर रहने वाले प्रवासी भारतीय को भारत के मूल्यों और सांस्कृतिक संवेदनाओं से ओत-प्रोत दिखाया गया। वर्ष 1999 में डेमियन ओ’ डोनेल द्वारा निर्देशित फिल्म ‘ईस्ट इज ईस्ट’ में भी ओमपुरी ने एक ऐसे एनआरआई परिवार के महत्वपूर्ण सदस्य की भूमिका निभायी थी जो मिश्रित जातीयता को भारतीय लोकतंत्र के गुण के रूप में जोड़ती है। ‘मानसून वेडिंग’ मीरा नायर निर्देशित उन कुछ खास फिल्मों में से एक है जिसने भारत की शादी कल्चर को दुनिया की ललक और जिज्ञासा का विषय बनाया है। निश्चित रूप से यह उन कुछ फिल्मों में शामिल है जिन्होंने भारतीय संस्कृति का परचम बहुत मजबूती से फहराया है।
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प्रवासी भारतीयों को चुना गया
ऐसी ही कई और फिल्मों ने जिनमें भारतीयता के दर्शन और उसके सांस्कृतिक गौरव की कहानी बरास्ते एनआरआई आती है, उनमें अक्षय कुमार और अनुष्का शर्मा की ‘पटियाला हाउस’, अक्षय कुमार और कैटरीना कैफ की मुख्य भूमिका वाली ‘नमस्ते लंदन’, झुंपा लाहिड़ी के उपन्यास ‘द नेमसेक’ पर इसी नाम से बनी फिल्म में भी एनआरआई किरदार को भारत की संस्कृति को मजबूती देते और उसका विस्तार देते पाया गया है।
साल 2004 में आयी ‘स्वदेश’, 2002 में आयी ‘बॉलीवुड हॉलीवुड’ ‘मित्र: माई फ्रेंड’, ये सब ऐसी फिल्में हैं जिन्होंने पूरी दुनिया में बड़े पर्दे के माध्यम से भारतीय संस्कृति का परचम फहराया है और आने वाले दिनों में भी ऐसी कई कहानियों की उम्मीदें की जा रही हैं। दरअसल बॉलीवुड ने ही नहीं बल्कि देश के सभी फिल्म इंडस्ट्रीज ने प्रवासी भारतीयों को अपनी फिल्मों के लिए महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय विषय के रूप में चुना है।
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घटनाओं को फिक्शन का रूप देती फिल्में
फिल्में भारत के बाहर बसे भारतीयों और भारतवंशियों को अपने तक कई तरीकों से समेटती हैं। ये प्रवासियों को अपनी फिल्मी कथाओं या पटकथाओं का अहम किरदार बनाती हैं और न सिर्फ घटी हुईं घटनाओं को फिक्शन का रूप देती हैं बल्कि काल्पनिक फिक्शन के जरिये भी प्रवासी भारतीयों की भारतीय संस्कृति को पालने, पोसने व मजबूत बनाये रखने में उनकी भूमिका सुनिश्चित करती हैं। देश की सभी फिल्म इंडस्ट्रीज यह सब इसलिए नहीं करतीं क्योंकि उन्हें प्रवासी भारतीयों को भारत की संस्कृति के साथ जोड़े रखने की बहुत फिक्र है। फिल्मों के लिए अगर प्रवासी भारतीय महत्वपूर्ण विषय और संदर्भ हैं तो इसलिए भी क्योंकि ये भारतीय फिल्मों के काफी आकर्षक दर्शक हैं। भारतीय फिल्में देश में जितना कमाती हैं उसमें से 12 से 15 फीसदी से ज्यादा विदेशों में और प्रवासी भारतीयों तथा भारतीय मूल के दर्शकों के कारण कमाती हैं।
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