Cash in Bank – नीतिगत रुख को ‘तटस्थ’ से बदलकर ‘उदार’ कर दिया
Cash in Bank: वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में कमजोर प्रदर्शन के बाद वृद्धि में सुधार हो रहा है, हालांकि यह अब भी उम्मीद से कम है। आरबीआई गवर्नर ने कहा महंगाई के मोर्चे पर, खाद्य मुद्रास्फीति में उम्मीद से अधिक गिरावट ने राहत दी है। हम वैश्विक अनिश्चितताओं और मौसम की गड़बड़ी से उत्पन्न होने वाले जोखिमों के प्रति सतर्क हैं। नीतिगत रुख को ‘उदार’ करने के बारे में उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब है कि एमपीसी नीतिगत दर के मामले में यथास्थिति बनाये रखेगी या फिर जरूरत के मुताबिक इसमें कटौती करेगी। मल्होत्रा ने दिसंबर में पदभार ग्रहण करने के बाद से अपने पूर्ववर्ती शक्तिकान्त दास की तुलना में अधिक वृद्धि-अनुकूल दृष्टिकोण को अपनाया है। नये गवर्नर ने फरवरी में अपनी पहली मौद्रिक नीति बैठक में प्रमुख ब्याज दर में कटौती की है और पिछले दो माह में बैंकों में 80 अरब डालर से अधिक का नकदी डाली है। कम ब्याज दर कंपनियों और उपभोक्ताओं दोनों को राहत प्रदान करती हैं। इससे कर्ज मांग के साथ निवेश और रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलता है।

रेपो दर में 0.25 प्रतिशत कटौती
भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिका के जवाबी शुल्क को लेकर चिंता के बीच अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के मकसद से लगातार दूसरी बार प्रमुख ब्याज दर रेपो को 0.25 प्रतिशत घटाकर छह प्रतिशत कर दिया। साथ ही केंद्रीय बैंक ने अपने रुख को ‘तटस्थ’ से ‘उदार’ करते हुए आने वाले समय में ब्याज दर में एक और कटौती का संकेत दिया है। आरबीआई ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए अपने आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 6.7 प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है। चालू वित्त वर्ष की पहली द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा की जानकारी देते हुए आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आम सहमति से रेपो दर में 0.25 प्रतिशत कटौती करने का निर्णय किया है।
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कर्जों पर मासिक किस्त में कमी
एमपीसी में तीन सदस्य केंद्रीय बैंक से, जबकि तीन सदस्य बाहर से होते हैं। मल्होत्रा ने कहा कि आरबीआई ने अपने नीतिगत रुख को ‘तटस्थ’ से बदलकर ‘उदार’ कर दिया है। इसका मतलब है कि आरबीआई आने वाले समय में जरूरत पड़ने पर नीतिगत दर में और कटौती कर सकता है। रेपो वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। आरबीआई मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिये इस दर का उपयोग करता है। रेपो दर में कमी करने का मतलब है कि मकान, वाहन समेत विभिन्न कर्जों पर मासिक किस्त (ईएमआई) में कमी आने की उम्मीद है।

ढाई साल के बाद पहला संशोधन
उल्लेखनीय है कि आरबीआई ने इससे पहले इस साल फरवरी में मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर 6.25 प्रतिशत कर दिया था। यह मई, 2020 के बाद पहली कटौती और ढाई साल के बाद पहला संशोधन था। मुद्रास्फीति में कमी और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बीच इस कदम से नवंबर, 2022 के बाद से कर्ज की लागत सबसे कम स्तर पर आ गई है। आरबीआई ने नीतिगत दर में कटौती ऐसे समय की है, जब अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले भारतीय उत्पादों पर 26 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लागू हुआ है। अमेरिकी शुल्क से अनिश्चितताएं बढ़ी हैं और कुछ अर्थशास्त्रियों ने एक अप्रैल से शुरू हुए चालू वित्त वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि में 0.2 से 0.4 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान जताया है।