GDP Growth: आरबीआई के नवनियुक्त गवर्नर संजय मल्होत्रा ने जताया अनुमान
GDP Growth: – आरबीआई के नवनियुक्त गवर्नर संजय मल्होत्रा ने अगले वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है, जबकि मुद्रास्फीति 4.2 प्रतिशत रहने की संभावना जतायी है। आरबीआई ने 31 मार्च, 2025 को समाप्त होने वाले वित्त वर्ष के लिए सरकार के 6.4 प्रतिशत के अनुमान को बरकरार रखा है। यह चार साल का निचला स्तर है। वहीं मुद्रास्फीति 4.8 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा गया है। मल्होत्रा ने नीतिगत दर में कटौती का कारण बताते हुए कहा कि महंगाई में गिरावट आई है। खाद्य पदार्थों को लेकर अनुकूल स्थिति और पिछली मौद्रिक नीति समीक्षाओं में में उठाए गए कदमों का असर जारी है। इससे 2025-26 में इसके और नरम होने की उम्मीद है तथा धीरे-धीरे यह चार प्रतिशत के लक्ष्य के आसपास आएगी।

नीतिगत दर में कमी की गुंजाइश
एमपीसी ने कहा कि हालांकि, वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर में निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो पिछले दो साल की तुलना में सबसे कम वृद्धि है। इसके बावजूद मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप लाने की वजह से मौद्रिक नीति समिति के लिए वृद्धि को बढ़ावा देने को लेकर नीतिगत दर में कमी की गुंजाइश बनाई है। खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर में उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन दिसंबर में यह घटकर 5.22 प्रतिशत पर रही। नवंबर में यह 5.48 प्रतिशत थी।

रेपो को 6.25% कर दिया
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सुस्त पड़ रही अर्थव्यवस्था को गति देने के मकसद से लगभग पांच साल बाद प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 0.25 प्रतिशत घटाकर 6.25 प्रतिशत कर दिया। रेपो दर घटने का मतलब है कि मकान, वाहन समेत विभिन्न कर्जों पर मासिक किस्त (ईएमआई) में कमी आने की उम्मीद है। आरबीआई के नवनियुक्त गवर्नर संजय मल्होत्रा ने छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने कहा कि रेपो दर वह प्रमुख ब्याज है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। आरबीआई मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिए इस दर का उपयोग करता है। रेपो दर अधिक होने का मतलब है कि कर्ज की लागत अधिक होगी। यानी ग्राहकों को अधिक ब्याज पर कर्ज मिलेगा। वहीं इसके उलट, रेपो दर कम होने से आवास, कार और व्यक्तिगत ऋण पर ब्याज दर घटने की उम्मीद रहती है।
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पांच साल बाद घटी रेपो दर
रेपो दर बचत और निवेश उत्पादों पर रिटर्न भी तय करती है। उच्च रेपो दर से सावधि जमा और अन्य बचत उत्पादों पर बेहतर रिटर्न मिल सकता है, क्योंकि बैंक जमा को आकर्षित करने के लिए उच्च ब्याज दर की पेशकश करते हैं। दूसरी ओर, कम रेपो दर इन बचत उत्पादों पर अर्जित ब्याज को कम कर सकती हैं। इससे पहले मई, 2020 में कोविड-19 महामारी के समय रेपो दर को 0।40 प्रतिशत घटाकर चार प्रतिशत किया गया था। फिर रूस-यूक्रेन युद्ध के जोखिमों से निपटने के लिए आरबीआई ने मई, 2022 में दरों में बढ़ोतरी करनी शुरू की थी और यह सिलसिला फरवरी, 2023 में जाकर रुका था। रेपो दर करीब दो साल से 6।50 प्रतिशत पर स्थिर थी।

रियल एस्टेट में निवेश कर सकेंगे लोग
रेपो रेट घटने के बाद बैंक भी हाउसिंग और ऑटो जैसे लोन्स पर अपनी ब्याज दरें कम कर सकते हैं। ब्याज दरें कम होंगी तो हाउसिंग डिमांड बढ़ेगी। ज्यादा लोग रियल एस्टेट में निवेश कर सकेंगे। लोन की ब्याज दरें 2 तरह से होती हैं फिक्स्ड और फ्लोटर। फिक्स्ड में आपके लोन पर ब्याज दर शुरू से आखिर तक एक जैसी रहती है। इस पर रेपो रेट में बदलाव का कोई फर्क नहीं पड़ता। फ्लोटर में रेपो रेट में बदलाव का आपके लोन की ब्याज दर पर भी फर्क पड़ता है। ऐसे में अगर आपने फ्लोटर ब्याज दर पर लोन लिया है तो ईएमआई भी घट जाएगी। RBI जिस ब्याज दर पर बैंकों को लोन देता है उसे रेपो रेट कहते हैं। रेपो रेट कम होने से बैंक को कम ब्याज पर लोन मिलेगा।
बैंकों के लोन सस्ता मिलता है, तो वो अकसर इसका फायदा ग्राहकों को पास कर देते हैं। यानी, बैंक भी अपनी ब्याज दरें घटा देते हैं। हालांकि ये कटौती 1-2 महीने में की जाती है। आरबीआई गवर्नर ने कहा- बीते कुछ समय में महंगाई दर में गिरावट देखी गई है। 2025-26 में महंगाई में और कमी आने का अनुमान है, इसलिए ब्याज दरों को घटाया गया है। किसी भी सेंट्रल बैंक के पास पॉलिसी रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है, तो सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है।
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सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज महंगा होगा
पॉलिसी रेट ज्यादा होगी तो बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है। मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है। इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है
और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है। RBI ने मई 2020 में आखिरी बार रेपो रेट में 0.40% की कटौती की थी और इसे 4% कर दिया था। हालांकि, मई 2022 में रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू किया, जो कि मई 2023 में जाकर रुका। इस दौरान रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 2.50% की बढ़ोतरी की और इसे 6.5% तक पहुंचा दिया था। इस तरह से 5 साल बाद रेपो रेट घटाया गया है।
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