जानिए उस राजकुमारी के बारे में जो गुजरात ,भावनगर के स्थनीय कारीगरों को सशक्त बनने में मदद कर रही है
गुजरात के भावनगर के पूर्व शाही परिवार की वंशज बृजेश्वरी गोहिल गुजरात की विरासत को कला,क्राफ्ट और फैशन के रूप में पूरी दुनियाँ में फैलाने की कोशिस कर रही है.राजकुमारी अपनी हेरिटेज कंजर्वेशन की शिक्षा के लिए यूनाइटेड किंगडम चली गई थी। यूके में रह कर उन्होंने अपनी शिक्षा को पूरा किया और फिर अपने देश भारत लौट आई और कंजर्वेशन प्रोजेक्ट्स पर काम करने लगी ताकि,वे अपने पूर्वजो की विरासत को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना चाहती हैं।
वैसे तो राजकुमारी बृजेश्वरी गोहिल के मन में शुरआत से ही अपने क्षेत्र की विरासत के लिए काफी झुकाव था,जिस वजह से वे पेशवर के रूप में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित हुई थी।हालांकि राजकुमारी ने पुरे विश्व की यात्रा करी हैं.वे नेपाल में स्थित लुंबनी में यूनेस्को चेयर और छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय के कला संरक्षण विभाग में एक शोधकर्ता के रूप में भी काम कर चुकी हैं। परन्तु राजकुमारी का दिल तो गुजरात के भावनगर में ही अटका हुआ था जिस वजह से वह अपने देश वापस आ पहुंची और भावनगर में रहते हुए वहाँ के कारीगरों को सशक्त करने में जुट गई हैं ।
भावनगर के कारीगरों के लिए स्थाई आजीविका कमाने में कैसे अपना योगदान देती है?
राजकुमारी का कहना है कि उनका मुख्य उदेश्य भावनगर के लोगों और कारीगरों के मन में स्थानीय कला के लिए सम्मान जगाना है. जिस से स्थानीय कला और शिल्पकारी को बढ़ावा मिल सके। इसके साथ ही स्थानीय कारीगर पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो सके. राजकुमारी ने एक जीर्ण-शीर्ण शिल्प संग्रहालय के जीर्णोद्धार के लिए भी कार्य किया और इसके नए डिज़ाइन बनाने के लिए INTACH को भी अपने साथ सम्मिलित किया। कलाकृतियों की बहाली का काम स्थानीय कारीगरों के द्वारा किया जा रहा है।
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कपड़ा विरासत को भी सरंक्षण प्रदान करती है
राजकुमारी के अनुसार कपड़ा हमारी विरासत का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, देश के हर एक कोने का अपना खुद का घरेलू कपड़ा है। हर एक कपड़ा अपने इलाके और जलवायु के अनुसार उपयुक्त होता है। गुजरात में ही कारीगरों के कई अलग-अलग समुदाय है जैसे – कन्बी,चारण, कैथी, गरासिया, मोलेसलम, राजपूत,रबारी,कन्बी, मेर्स, सतवारा, कोली, भरवाड, महाजन और रबारी आदि जैसे समुदाय गुजरात के हैं। हर समुदाय की अपनी अलग -अलग कड़ाई व बुनाई शैली हैं। इसलिए कपड़ा विरासत को संरक्षित करना महत्वपूर्ण है। आने वाली पीढ़ियों के लिए भी कपड़ा विरासत को जानना और पारंपरिक प्रथाओं (बुनाई और कढ़ाई) की विशेषज्ञता और ज्ञान होना जरुरी है।
सांस्कृतिक संरक्षण भी जरुरी हैं
सांस्कृतिक संरक्षण की चुनौतियाँ बहुत ही अलग है। इमारतों, विरासत स्थलों और स्मारकों के जीर्णोद्धार की चुनौतियाँ स्वाभाविक रूप से स्थानीय शिल्प के संरक्षण से भिन्न होती हैं। विरासत स्थलों के संबंध में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा है, जिनमें स्थानीय लोगों द्वारा ज्ञान की कमी और परिवेश के प्रति सम्मान की भी कमी शामिल है, जिसके कारण तोड़फोड़, ऐतिहासिक धरोहर पर गंदगी करना या इन परिसरों में कूड़ा-कचरा फैलाना शामिल हैं और जब बात ऐतिहासिक स्थलों के रखरखाव की त आती है तो इसमें बहुत ज्यादा लापरवाही की जाती है।
राजकुमारी ब्रिजेश्वरी गोहिल एक विरासत विशेषज्ञ हैं। उन्होंने नॉटिंघम विश्वविद्यालय से पुरातत्व और कला इतिहास में स्नातक की डिग्री हासिल की हैं। साथ ही डरहम विश्वविधालय से विरासत प्रबंधन और संरक्षण में मास्टर की भी ड्रिग्री हासिल ही है ,इसके अलावा उन्होंने जेजे कॉलेज ऑफ आर्ट्स, मुंबई से बिल्ड हेरिटेज कंजर्वेशन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा हासिल किया हैं। फिलहाल वे अपनी स्थानीय विरासत को बचाने में पूर्ण रूप से लगी हुई हैं। उनके इस काम में उनके साथ कई लोग जुड़े हुए हैं। राजकुमारी ब्रिजेश्वरी गोहिल जैसी महिला आज के समाज के लिए एक मिशाल है।
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