Chocolate Industry: 20 लाख से ज्यादा लोगों के रोजगार पर लटकी तलवार
Chocolate Industry: चॉकलेट शायद पहला ऐसा लोकप्रिय खाद्यान्न है जो सीधे सीधे ग्लोबल वार्मिंग की चपेट में आया है। इसलिए पूरी दुनिया में चॉकलेट की न सिर्फ कीमतें बढ़ रही हैं बल्कि आर्टिफिशियल चॉकलेट बनाने का सिलसिला तेज हुआ है, जो कई तरह से नुकसानदायक है। वर्तमान में 100 अरब डॉलर से ज्यादा का चॉकलेट उद्योग जिसे साल 2030 तक 350 अरब डॉलर के उद्योग में परिवर्तित होना था, ग्लोबल वार्मिंग के कारण उसकी इस ग्रोथ पर अब तलवारें लटक गई हैं, उल्टा स्थितियां यह पैदा हो गई हैं कि इस पूरे उद्योग में 50 से 60 फीसदी तक ही आकार संबंधी कटौती हो जाए।
हालांकि इतना आसान नहीं होगा, फिर भी अगर ग्लोबल वार्मिंग के कारण चॉकलेट उद्योग प्रभावित होगा तो सिर्फ लाखों लोगों की जीभ का स्वाद ही नहीं बिगड़ेगा बल्कि पूरी दुनिया में 20 लाख से ज्यादा लोगों की रोजी रोटी पर भी तलवार लटक जायेगी। यही वजह है कि महंगी चॉकलेट से ज्यादा दुनिया के वे देश जहां कोको बड़े पैमाने पर पैदा होती है या चॉकलेट बनाने के लिए उसे प्रसंस्कृत किया जाता है, वहां ये जीभ से ज्यादा कारपोरेट का स्वाद बिगाड़ रही है। यह स्थिति इशारा करती है कि कई दूसरे लोकप्रिय खाद्य व्यंजनों के सिर पर तलवार लटके इसके पहले ही पर्यावरण को बेहतर बनाने की कोशिश और गर्मायी धरती को धीरे धीरे ठंडी करने की कोशिशें होनी चाहिए। वैलेंटाइन डे पर अकेले अमेरिका में 58 मिलियन पाउंड चॉकलेट प्रेमियों द्वारा खरीदी जाती है।

25% चॉकलेट ऑनलाइन मंगवाते हैं युवा
भारत में भी एक शोध के मुताबिक, 18 से 24 साल के युवा देश में बिकने वाली कुल चॉकलेट का 25 फ़ीसदी चॉकलेट ऑनलाइन द्वारा मंगवाते हैं, इनमें विशेषकर युवतियां शामिल हैं। यही नहीं भारत में युवाओं द्वारा ऑनलाइन आर्डर की जाने वाली ज्यादातर मिठाइयां,चॉकलेट की बनी होती हैं। लिंड्ट चॉकलेट के एक सर्वेक्षण में 58 प्रतिशत युवाओं ने चॉकलेट के लिए अपनी दीवानगी दर्शाई है। आमतौर पर करीब 77 फीसदी युवा चॉकलेट को निताई नहीं उपहार मानते हैं
और अपने किसी प्रियजन को यह उपहार देने की मंशा रखते हैं। कुल मिलाकर देखें तो खाने पीने की बहुत कम चीजें ऐसी हैं, जिनको लेकर पूरी दुनिया में चॉकलेट के जैसे दीवानगी हो। आज से नहीं, सदियों से दुनिया के कई हिस्सों में लोग चॉकलेट को दीवानगी की हद तक पसंद करते रहे हैं। लेकिन इस साल की शुरुआत से ही चॉकलेट की कीमतों में जो उफान आना शुरू हुआ था,अब वह उफान आसमान छूने लगा है। जिससे आम लोगों के लिए चॉकलेट खाना तो दुर्लभ हो ही गया है,प्यार जताना और मुश्किल हो गया है।
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कोको की कीमतों में हुई वृद्धि
खैर चॉकलेट की कीमतों में हुई इस बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण है कोको की कीमतों में हुई वृद्धि है और कोको की कीमतों में वृद्धि का कारण है ग्लोबल वार्मिंग जी हां, ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ी गर्मी से कोको की फसल लगातार न केवल कमजोर बल्कि घटिया किस्म की भी हो रही है। कम पैदावार और अच्छी क्वालिटी के कोको की कीमतें किस तरह आसमान छू रही हैं, इसका अंदाजा गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन के एमडी जेएन मेहता की इस बात से लगाया जा सकता है कि जो अमूल आमतौर पर अपनी चॉकलेट की कीमतें बहुत मुश्किल से बढ़ाता था, वह भी जल्द ही दूसरी बार इनकी कीमतों में 10 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी करने की सोच रहा है।
कोको की कीमतें कितनी बढ़ गयी हैं कि साल की शुरुआत में जहां यह बढ़ोत्तरी 150 रुपये से 200 रुपये प्रति किलोग्राम थी, वहीं अप्रैल 2024 के आखिरी हफ्ते तक 800 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ चुकी है। अमेरिका में भी जहां इस साल की शुरुआत में प्रति टन कोको की कीमत करीब 2900 डॉलर थी, वहीं अप्रैल 2024 के अंत तक यह कीमत 5874 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है। जाहिर है कोको की कीमतों में हो रही इस भारी वृद्धि का कारण कोको के उत्पादन में आयी भारी गिरावट ही है। अधिकांश कोको का उत्पादन अफ्रीका के चार देशों में होता है ये हैं- आइवरी कोस्ट, घाना, नाइजीरिया और कैमरून।

मौसम में आ रहे बड़े बदलावों का असर
एशिया में इंडोनेशिया कोको का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और अब भारत भी तेजी से कोको के उत्पादन में हिस्सेदारी करने के लिए तैयार है, लेकिन शायद अभी हमें इसके बाजार को प्रभावित करने वाले स्तर पर उत्पादन में काफी देर है। बहरहाल मौसम में आ रहे बड़े बदलावों और नये तरह के कीटों के फैलने से कोको के पौधों पर काफी असर पड़ रहा है। दूसरी समस्या ये है कि भले अफ्रीकी देश कोको का उत्पादन करते हों, लेकिन उसे थोक के भाव खरीदकर चॉकलेट में इस्तेमाल करने लायक यूरोपीय देश खासकर स्पेन ही बनाता है,इसलिए यह बहुत मंहगा है।
कोको उत्पादन से जुड़े छोटे-बड़े करीब 52 देश हाल के सालों में ग्लोबल वार्मिंग का कई तरह से शिकार हुए हैं- मसलन कोको उत्पादक देशों में गर्मी ज्यादा पड़ रही है, जिस कारण वेनेजुएला, इक्वाडोर सहित कई देशों में कोको की फसल खराब हो रही हैं। साथ ही गर्मी की वजह से इसकी क्वालिटी में भी गिरावट आ रही है। दरअसल कोको का पौधा बेहद संवेदनशील होता है अगर इसे सही मात्रा में आद्र्रता और गर्मी नहीं मिली तो इसकी फसल खराब हो जाती है और ग्लोबल वार्मिंग के कारण जहां कोको उत्पादन का सीजन छोटा हो गया है, वहीं गर्मी और आद्र्रता के साझे समीकरण भी गड़बड़ा गए हैं। 50 साल पहले घाना में किसान कोको के पौधे फरवरी के अंत में लगाने शुरु कर देते थे और अब उन्हें मई तक का इंतजार करना पड़ रहा है। घाना में हाल के दशकों में सूखा और बाढ़ दो ऐसी समस्याएं उभरी हैं, जिन्होंने कोको की फसल को रह रहकर घेर लेती हैं।
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खेती हो गई है महंगी
चूंकि अफ्रीका के उन ज्यादातर देशों जहां कोको की खेती है, पिछले कई सालों से बार बार सूखा पड़ रहा है, इसलिए न सिर्फ वातावरण में जरूरत से ज्यादा गर्मी बढ़ गई है बल्कि नई तरह के कीटक भी पैदा हुए हैं जो फसल के लिए ज्यादा नुकसानदेह हैं और सबसे बड़ी बात ये है कि इन कीटकों पर पुराने कीटनाशकों से काबू पाना भी मुश्किल हो रहा है। भारत में भी हाल के सालों में केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में कोको की खेती हो रही है,
जो तीन तरह की चॉकलेट मसलन, वाइट डार्क और मिल्क चॉकलेट में इस्तेमाल होती है। हालांकि भारत में अभी ग्लोबल वार्मिंग का असर उतने भयानक स्तर पर नहीं पड़ा, जैसा कैमरून, घाना, दक्षिण अफ्रीका और लैटिन अमरीका में दिख रहा है। लेकिन चूंकि कोको के उन्नत बीज आमतौर पर स्पेन, ब्रिटेन या अफ्रीकी देशों से आते हैं, तो उनकी कीमतें पिछले कुछ सालों में कई गुना ज्यादा बढ़ गई हैं। इसलिए भारत के कई छोटे किसान जो पहले कोको पैदा किया करते थे, अब इसमें रूचि नहीं ले रहे, क्योंकि यह काफी महंगी खेती हो गई है।

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