Cricket Betting Apps: ऑनलाइन सट्टेबाजी और फैंटेसी ऐप्स का दलदल
फेंटेसी ऐप्स का बिजनेस कितना बड़ा है, ये इसी बात से साबित हो जाता है कि इन ऐप्स के विज्ञापन में बॉलीवुड से लेकर खेल जगत के वो सितारे शामिल हैं, जिनकी फीस करोड़ों में होती है। फेंटेसी ऐप्स में हर साल स्टार्स की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है। यानी कमाई भी दोगुनी हो रही है। सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं, पैसों का ये खेल तीन पत्ती, लूडो और ऐसे ही बाकी दूसरे ऑनलाइन गेम्स में भी चल रहा है।
अब आपको ये बताते हैं कि कैसे सिर्फ एक ही मैच में करोड़ों-अरबों रुपये लगाए जाते हैं और इसका कितना फीसदी ऐप्स को मिलता है। एक बड़े फेंटेसी क्रिकेट ऐप में अलग-अलग कॉन्टेस्ट होते हैं। जिनमें सबसे बड़ा प्राइस 2 करोड़ रुपये का होता है, यानी अगर आपका पहला रैंक आता है तो दो करोड़ देने का दावा किया जाता है। इसे आप 49 रुपये में लगा सकते हैं। 49 रुपये के इस कॉन्टेस्ट में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग खेल सकते हैं।

अब अगर इसका हिसाब लगाएं तो ये कुल करीब 74 करोड़ रुपये होते हैं। ये फेंटेसी ऐप दावा करता है कि इस कॉन्टेस्ट में 66 फीसदी लोगों को पैसा मिल जाएगा। यानी 56 करोड़ रुपये का प्राइज पूल है। विनिंग प्राइस पर सरकार को भी टैक्स जाता है।
आर्थिक जोखिम संभव है, जिम्मेदारी से खेलें
अब आपको बाकी कॉन्टेस्ट्स की जानकारी देते हैं। दो करोड़ रुपये के बाद 1 करोड़, 22 लाख, 15 लाख, 8 लाख, 4 लाख और 1 लाख से लेकर 10 हजार रुपये तक के कॉन्टेस्ट एक ही ऐप में होते हैं। जितना महंगा कॉन्टेस्ट होगा, उतने ही कम उसमें लोग होंगे। ऐसे भी कॉन्टेस्ट हैं, जिसमें सिर्फ दो लोग खेलते हैं। जिसकी टीम अच्छा खेलेगी, वो जीतेगा। ऐसे करीब 30 से ज्यादा कॉन्टेस्ट एक ही ऐप में होते हैं।
अगर हिसाब लगाया जाए तो ये कई अरबों में पहुंचता है। हालांकि आखिर में इन तमाम ऐप्स में तेजी से जो डिस्क्लेमर पढ़ा जाता है, उसी को लोगों को समझने की जरूरत है। इसमें कहा जाता है- “इस खेल में आदत लगना या आर्थिक जोखिम संभव है, जिम्मेदारी से खेलें।” पैसे गंवाने के खतरे की जानकारी देकर ये ऐप्स आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं, ठीक उसी तरह जैसे सेहत के लिए खतरनाक सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है।
सरकार ने जारी की है एडवाइजरी
ऑनलाइन गेम्स और सट्टे का ये बाजार पिछले कई सालों से सज रहा है, लेकिन अब जाकर सरकार ने इस पर कुछ कदम उठाने की बात सोची है। सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग को लेकर हाल ही में एक एडवाइजरी जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि सेल्फ रेगुलेटरी ऑर्गेनाइजेशन (SRO) की तरफ से इन ऑनलाइन गेम्स की जांच की जाएगी। जांच के बाद जो भी ऑनलाइन गेम नियमों का पालन करेगा, उसी को जारी रखा जा सकता है।
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बाकी गेम्स पर गाज गिर सकती है। सरकार की तरफ से जारी एडवाइजरी में कहा गया है कि जुआ या सट्टेबाजी से जुड़े ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स पर लिया जाएगा एक्शन, पाबंदी लगाने की तैयारी। सभी तरह के मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पैसे गंवाने के रिस्क वाले और भ्रामक कंटेट और विज्ञापन हटाने होंगे, ऐसा नहीं करने पर कार्रवाई होगी। सिर्फ ऐसे ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स को ही मंजूरी दी जाएगी, जिनमें किसी भी तरह का रिस्क या बाजी लगाने को नहीं कहा जाएगा।
मंत्रालय के मुताबिक जुआ या सट्टेबाजी भारत में अवैध है, इसीलिए इनसे जुड़े विज्ञापन भी गैरकानूनी माने जाएंगे। इनका प्रमोशन करना कानून का उल्लंघन माना जाएगा। ऑफशोर बेटिंग प्लैटफॉर्म्स और सरोगेट विज्ञापनों पर रोक लगाने की बात भी सरकार की तरफ से जारी एडवाइजरी में की गई है।
सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे
ये तमाम ऐप्स धड़ल्ले से नियमों को ताक पर रखकर चल रहे हैं। इनमें आयु की भी कोई समयसीमा तय नहीं है, 18 साल से कम उम्र के बच्चे भी टीम बनाकर ये ऑनलाइट सट्टा लगा रहे हैं। इसके लिए सख्त नियम बनने जरूरी हैं। सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे, पिछले एक साल में सरकार की तरफ से ये तीसरी एडवाइजरी आई है। जब तक कोई एक्शन नहीं होगा तब तक ऐसी एडवाइजरी का कोई फायदा नहीं है।
सरकार की तरफ से बनाए जा रहे सेल्फ रेगुलेटरी ऑर्गेनाइजेशन (SRO) को लेकर एक्सपर्ट ने कहा कि इससे सीधे ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स को ही फायदा होगा। क्योंकि उन्हें इसके जरिए राज्यों में खुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी। ये ऐप किसी भी राज्य में एसआरओ से क्लियरेंस लेकर काम कर सकते हैं। इससे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा मिलेगा या नहीं, बच्चों की सुरक्षा की गारंटी मिलेगी या नहीं, या फिर जो अवैध कारोबारी हैं उनसे देश को मुक्ति मिलेगी या नहीं ये अब तक हमें मालूम नहीं है।

राज्यों ने बनाए अलग-अलग कानून
ये तो साफ है कि भारत में किसी भी तरह का सट्टा पूरी तरह से गैर कानूनी है। अब सवाल ये है कि ऑनलाइन सट्टे को लेकर देश में क्या कानून है। दरअसल मौजूदा जो कानून हैं, उनमें कई तरह के विरोधाभास नजर आते हैं। जिनका फायदा उठाकर ये ऑनलाइन गेमिंग और फेंटेसी ऐप्स फल-फूल रहे हैं। पब्लिक गैंबलिंग एक्ट के मुताबिक सट्टेबाजी एक अपराध है। इसके अलावा राज्यों ने भी इसे रोकने के लिए अलग-अलग कानून बनाए हैं। हालांकि ऑनलाइन गेमिंग को लेकर कोई भी स्पष्ट कानून नहीं है।
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सेल्फ रेगुलेटरी सिस्टम बनाना जरूरी
सरकार की तरफ से पिछले साल संसद में ऑनलाइन गेमिंग रेगुलेशन बिल पेश किया गया था, जिसमें फेंटेसी स्पोर्ट्स, ऑनलाइन गेम्स, आदि को रेगुलेट करने की बात कही गई थी। इसके अलावा हाल ही में सरकार की तरफ से ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के लिए नए नियम बनाए गए थे। जिनके मुताबिक कंपनियों के लिए सेल्फ रेगुलेटरी सिस्टम बनाना जरूरी होगा। इसके अलावा भारत में उनके परमानेंट एड्रेस का वेरिफिकेशन होना भी जरूरी है। साथ ही यूजर्स के सभी ट्रांजेक्शन की जानकारी भी देनी होगी। हालांकि जुर्माने या किसी तरह की सजा का कोई जिक्र नहीं है, जिससे नियम काफी लचर नजर आते हैं।
तमिलनाडु में ऑनलाइन गेम्स पर बैन
हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने इन ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स को लेकर सख्ती दिखाई है और इन्हें पूरी तरह से बैन करने का फैसला किया है। हाल ही में तमिलनाडु ने ऐसे तमाम ऑनलाइन गेम्स पर बैन लगा दिया है, इसके लिए एक कानून पास किया गया है। जिसके तहत 3 साल की जेल और 10 लाख जुर्माने का प्रावधान है। इसके अलावा तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स को लेकर कड़े नियम बनाए गए हैं।