Global Warming-Youth Worried: गरमाती धरती और बिगड़ते पर्यावरण से सर्वाधिक प्रभावित हैं युवा
Global Warming-Youth Worried: आज यूरोप के 75 फीसदी नौजवान ग्लोबल वार्मिंग से चिंतित हैं। जैव विविधता की हानि उन्हें परेशान कर रही है। शायद युवा बाकी लोगों से ज्यादा संवदेनशील इसलिए भी हैं क्योंकि वही गरमाती धरती और बिगड़ते पर्यावरण से सर्वाधिक प्रभावित हैं। यह अकारण नहीं है कि आज दुनियाभर के युवा इस संकट से जागरूक हैं और इस पर बातें करते हैं। साल 2012 से ही मौजूद ग्लोबल यूथ बायोडायवर्सिटी नेटवर्क जैव विविधता की हानि पर युवाओं की राय और इसके समाधान में युवाओं की सोच को अधिकृत रूप से व्यक्त करना शुरू कर चुका था। यह संगठन अपने विभिन्न प्रस्तावों के माध्यम से लगातार जैविक विविधता प्रक्रियाओं पर कन्वेंशन में योगदान देता है और जैव विविधता के संरक्षण पर आगे बढ़कर भूमिका निभाता है।

60 फीसदी युवा बहुत चिंतित
एक वैश्विक सर्वेक्षण के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग को लेकर दुनिया के करीब 60 फीसदी युवा बहुत चिंतित हैं और 84 फीसदी युवा चिंतित हैं भले इसके लिए उनकी नींदें हराम न होती हों। ऐसे भी युवा हैं जो इस पूरी समस्या से बहुत भावनात्मक स्तर पर जाकर जुड़ते हैं। वे उदास हैं, चिंतित हैं, अपनी सरकारों से नाराज हैं और गुस्से से भरे हैं। कई बार वे शक्तिहीनता का भी एहसास करते हैं लेकिन अंत में जलवायु परिवर्तन में अपनी मजबूत भूमिका निभाना चाहते हैं। ऐसा योगदान देना चाहते हैं जिससे जलवायु परिवर्तन का यह भयावह दौर थमे लेकिन यह बात भी है कि न तो एक हद से ज्यादा सरकारों को युवाओं पर भरोसा है और न ही युवा ही सरकारों पर भरोसा करते हैं। यही कारण है कि अब युवाओं का एक बड़ा हिस्सा बल्कि कहना चाहिए नाराज हिस्सा, ग्लोबल वार्मिंग के लिए किए जा रहे अपने आंदोलन के माध्यम से सरकारों के विरुद्ध मुकदमा चलाने तक की बात कहने लगा है।

ठोस जलवायु कार्यक्रम चाहते हैं युवा
युवा ठोस जलवायु कार्यक्रम चाहते हैं और इससे आनाकानी करने वाली सरकारों के खिलाफ मुकदमेबाजी तक करने को राय देते हैं। युवा स्थानीय और वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग को रोकने अपनी जीवनशैली में बदलावों और ठोस समाधानों के लिए तैयार हैं भले इसके लिए बड़ी मात्रा में संसाधन खर्च हों। यह अकारण नहीं है कि पिछले कई बार से आधिकारिक जलवायु परिवर्तन वार्ता के दौरान दुनियाभर के मुखर युवा वार्ता स्थलों पर मौजूद रहते हैं और समानांतर आयोजन, हस्तक्षेप, कार्रवाइयां, जो भी संभव हो, सब कुछ करते हैं। ऐसा करें भी क्यों ना। युवा लोग जहरीली होती हवा, मिट्टी और पानी के प्रदूषण से प्रभावित हैं। जैसा कि हम जानते हैं आज की कारोबारी दुनिया में युवा इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे सबसे बड़े और मजबूत उपभोक्ता हैं। इसलिए युवा अब नहीं चाहते कि धरती के पर्यावरण के साथ क्रूर खिलवाड़ जारी रहे। प्लास्टिक प्रदूषण पर भी युवा किसी भी दूसरे आयु वर्ग के मुकाबले ज्यादा सहयोग के लिए तैयार है।
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निर्णायक कदम उठाना ही पड़ेगा
सवाल है कि क्या सरकारें जो संकट की किसी भी घड़ी में युवाओं के क्या, आम लोगों के साथ भी नहीं हैं? बात स्पष्ट है क्योंकि ऐसा होने से उनके राजकाज संचालन में उन्हें फायदा नहीं होता। सरकारें अपने हितों के लिए हर उस कदम को उठाने से पीछे हट जाती हैं जो ग्लोबल वार्मिंग पर निर्णायक प्रहार कर सकता है। इसलिए अब पूरे दुनिया में युवाओं के बीच यह समझ बनती जा रही है कि अगर सचमुच उन्हें टूटे ग्रह की विरासत हासिल नहीं करनी तो ग्लोबल वार्मिंग के खात्मे के लिए एक बड़ा और निर्णायक कदम उठाना ही पड़ेगा चाहे इससे जिसे और जितना नुकसान क्यों न हो। युवाओं की यह गहराती धारणा बिल्कुल सही है। उन्हें जितना जल्द हो यह कमान संभाल लेनी चाहिए क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग रुक नहीं रही और दुनिया की भूमिका तमाशबीनों की हो गई है।
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1 अरब 20 करोड़ युवा हैं दुनियाभर में
दुनिया में युवावस्था की कोई सर्वमान्य और सर्वस्वीकृत अंतरराष्ट्रीय परिभाषा नहीं है लेकिन संयुक्त राष्ट्र 15 से 24 वर्ष आयु के लोगों को युवाओं के रूप में संदर्भित करता है। वर्तमान में इस उम्र समूह के दुनियाभर में 1 अरब 20 करोड़ युवा हैं और साल 2030 तक इनकी संख्या 7 फीसदी बढ़कर 1 अरब 30 करोड़ हो जायेगी। युवाओं का यह लेखा-जोखा हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यूनाइटेड नेशन एनवायर्नमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडर्सन का मानना है कि ये इस दौर के युवा ही हैं जिन्हें विरासत में एक टूटा हुआ ग्रह मिला है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस कहते हैं, ‘अब ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का सारा दारोमदार युवाओं पर ही है।’ गुटेरेस के शब्दों में युवाओं में असीम ऊर्जा होती है और इतिहास में मानवता जब-जब किसी संकट का शिकार हुई है तब ये युवा ही हैं जिन्होंने उसे संकट से निकाला है। युवाओं की असीम ऊर्जा उनके विचारों और योगदान पर निर्भर करती है। आज हर दिन ब्रह्मांड का यह खूबसूरत ग्रह विनाश के दलदल में समाता जा रहा है।

पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा
ग्लोबल वार्मिंग तो मानो धरती का डेथ वॉरंट लिखने को ही उतारू हैं। ऐसे में अब युवा ही हैं जो इस धरती को खाक होने से बचा सकते हैं। जाहिर है चाहे इंगर एंडर्सन हों या एंटोनियो गुटेरेस; वे जिस तरह से युवाओं की तरफ धरती के ग्लोबल वार्मिंग को रोकने या थामने के लिए उम्मीदभरी निगाहों से देख रहे हैं, उसका मतलब है कि लोग अब मौजूदा सरकारों, बड़ी-बड़ी बात करने वाले प्रबंधकों पर से दुनिया की सेहत वापस लौटाने का भरोसा खो चुके हैं। इसलिए अब युवाओं की तरफ देखा जा रहा है और संयोग से युवा भी अब इस समस्या की चिंताओं से अपने आपको बहुत गहराई तक जोड़ रहे हैं। युवाओं के पास आज की इस गूगल दुनिया में चीजों को समझने के अपने संसाधन व तौर-तरीके भी हैं। इसलिए आज के युवा अधेड़ों या बूढ़ों के मुकाबले कहीं ज्यादा गहराई से जानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के पर्यावरण के लिए कितना बड़ा खतरा है और इससे क्या हो सकता है? युवाओं के पास पर्याप्त शिक्षा है, कौशल है और अब ग्लोबल यूनिटी के लिए उनके पास इंटरनेट जैसा मंच है।
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