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Reading: Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश पर बढ़ता जा रहा कर्ज का पहाड़
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WeStory > हिंदी न्यूज़ > Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश पर बढ़ता जा रहा कर्ज का पहाड़
हिंदी न्यूज़

Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश पर बढ़ता जा रहा कर्ज का पहाड़

Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का पहाड़ लगातार बढ़ता जा रहा है। आर्थिक सेहत इतनी बिगड़ती जा रही है कि अगले दो महीने तक मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव और बोर्ड निगमों के चेयरमैन सैलरी और भत्ते नहीं लेंगे।

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/09/05 at 12:13 PM
WeStory Editorial Team
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Himachal Pradesh – 2 महीने तक मुख्यमंत्री समेत मंत्री और आला अधिकारी नहीं लेंगे सैलरी

Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का पहाड़ लगातार बढ़ता जा रहा है। आर्थिक सेहत इतनी बिगड़ती जा रही है कि अगले दो महीने तक मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव और बोर्ड निगमों के चेयरमैन सैलरी और भत्ते नहीं लेंगे। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने बताया कि प्रदेश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, इसलिए वो और उनके मंत्री दो महीने के लिए सैलरी और भत्ता छोड़ रहे हैं। हिमाचल में करीब ढाई साल पहले आई कांग्रेस सरकार लगातार कर्ज में डूब रही है। हिमाचल के आर्थिक संकट की वजह सरकार की तरफ से बांटी जा रही फ्रीबीज को जिम्मेदार माना जा रहा है। ढाई साल पहले हुए विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस ने मुफ्त की कई योजनाओं का वादा किया था। सरकार बनने पर इन वादों को पूरा किया, जिसने कर्जा और बढ़ा दिया।

Table of Contents
Himachal Pradesh – 2 महीने तक मुख्यमंत्री समेत मंत्री और आला अधिकारी नहीं लेंगे सैलरी86,600 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्जकेंद्र सरकार ने कर्ज लेने की सीमा को किया कमसैलरी और भत्ते पर 50 लाख खर्चसिर्फ हिमाचल ही नहीं, बाकियों की भी यही हालत
Himachal Pradesh
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86,600 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल में कांग्रेस के सत्ता में आने से पहले मार्च 2022 तक 69 हजार करोड़ रुपये से कम का कर्ज था। लेकिन उसके सत्ता में आने के बाद मार्च 2024 तक 86,600 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज हो गया। मार्च 2025 तक हिमाचल सरकार पर कर्ज और बढ़कर लगभग 95 हजार करोड़ रुपये का हो जाएगा। 2022 के चुनाव में सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने कई बड़े वादे किए थे। सरकार में आने के बाद इन वादों पर बेतहाशा खर्च किया जा रहा है। हिमाचल सरकार के बजट का 40 फीसदी तो सैलरी और पेंशन देने में ही चला जाता है। लगभग 20 फीसदी कर्ज और ब्याज चुकाने में खर्च हो जाता है। सुक्खू सरकार महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये देती है, जिस पर सालाना 800 करोड़ रुपये खर्च होता है। ओल्ड पेंशन स्कीम भी यहां लागू कर दी गई है, जिससे एक हजार करोड़ रुपये का खर्च बढ़ा है। जबकि, फ्री बिजली पर सालाना 18 हजार करोड़ रुपये खर्च होता है। इन तीन स्कीम पर ही सरकार लगभग 20 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है।

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केंद्र सरकार ने कर्ज लेने की सीमा को किया कम

हिमाचल सरकार को और झटका तब लगा जब केंद्र सरकार ने कर्ज लेने की सीमा को और कम कर दिया। पहले हिमाचल सरकार अपनी जीडीपी का 5 फीसदी तक कर्ज ले सकती थी। लेकिन अब 3.5 फीसदी तक ही कर्ज ले सकती है। यानी, पहले राज्य सरकार 14,500 करोड़ रुपये तक उधार ले सकती थी, लेकिन अब 9 हजार करोड़ रुपये ही ले सकती है। आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि हिमाचल पर पांच साल में 30 हजार करोड़ रुपये का कर्ज बढ़ा है। अभी 86 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है। हिमाचल में हर व्यक्ति पर 1.17 लाख रुपये का कर्ज है। हिमाचल में मुख्यमंत्री, मंत्री और संसदीय सचिव अगर दो महीने की सैलरी-भत्ते नहीं लेते हैं, तो उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। ये ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ वाली बात होगी।

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सैलरी और भत्ते पर 50 लाख खर्च

मुख्यमंत्री को हर महीने ढाई लाख रुपये सैलरी और भत्ते के रूप में मिलते हैं। दो महीने में हुए 5 लाख। हिमाचल सरकार में 10 मंत्री हैं और इन्हें भी हर महीने ढाई लाख रुपये मिलते हैं। दो महीने में इन मंत्रियों की सैलरी और भत्ते पर खर्च होते हैं 50 लाख रुपये। 6 संसदीय सचिव हैं, जिन्हें भी महीने के ढाई लाख रुपये मिलते हैं। 6 संसदीय सचिवों की दो महीने की सैलरी-भत्ते पर 30 लाख रुपये खर्च होते हैं। यानी, मुख्यमंत्री, मंत्री और संसदीय सचिव अगर दो महीने तक सैलरी और भत्ते नहीं लेंगे तो कुल 85 लाख रुपये की बचत होगी। जबकि, हिमाचल सरकार पर मार्च 2025 तक लगभग 95 हजार करोड़ रुपये का कर्ज होगा।

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सिर्फ हिमाचल ही नहीं, बाकियों की भी यही हालत

सिम्पल सा गणित है। कमाई कम और खर्च ज्यादा है तो कर्ज लेना पड़ेगा। लेकिन खर्च और कर्ज का प्रबंधन सही तरीके से नहीं किया गया तो हालात ऐसे हो सकते हैं कि न तो कमाई का कोई जरिया बचेगा और न ही कर्ज लेने के लायक बचेंगे। राज्य सरकारों पर कर्जा लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकारें सब्सिडी के नाम पर फ्रीबीज पर बेतहाशा खर्च कर रही हैं। आरबीआई की एक रिपोर्ट बताती है कि राज्य सरकारों का सब्सिडी पर खर्च लगातार बढ़ रहा है। राज्य सरकारों ने सब्सिडी पर कुल खर्च का 11.2% खर्च किया था, जबकि 2021-22 में 12.9% खर्च किया था।

आरबीआई की इस रिपोर्ट में कहा गया था कि अब राज्य सरकारें सब्सिडी की बजाय मुफ्त ही दे रही हैं। सरकारें ऐसी जगह खर्च कर रही हैं, जहां से कोई कमाई नहीं हो रही है। आरबीआई के मुताबिक, 2018-19 में सभी राज्य सरकारों ने सब्सिडी पर 1.87 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे। ये खर्च 2022-23 में बढ़कर 3 लाख करोड़ रुपये के पार चला गया था। इसी तरह से मार्च 2019 तक सभी राज्य सरकारों पर 47.86 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जो मार्च 2024 तक बढ़कर 75 लाख करोड़ से ज्यादा हो गया। मार्च 2025 तक ये कर्ज और बढ़कर 83 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान है।

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