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Reading: Indian Foreign Policy: विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी की दमदार भूमिका
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WeStory > हिंदी न्यूज़ > Indian Foreign Policy: विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी की दमदार भूमिका
हिंदी न्यूज़

Indian Foreign Policy: विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी की दमदार भूमिका

भारतीय शासन व्यवस्था में प्रधानमंत्री कार्यालय को विदेश नीति बनाने का विशेष अधिकार प्राप्त है। यही कारण है कि प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक विदेश नीति की परंपरा चली आ रही है।

WeStory Editorial Team
Last updated: 2024/06/12 at 2:51 PM
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Indian Foreign Policy
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Indian Foreign Policy: तीसरे कार्यकाल में भारत को बड़े पैमाने पर होगा फायदा

भारतीय शासन व्यवस्था में प्रधानमंत्री कार्यालय को विदेश नीति बनाने का विशेष अधिकार प्राप्त है। यही कारण है कि प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक विदेश नीति की परंपरा चली आ रही है। मोदी ने पिछले 10 वर्षों में विदेश नीति में विशेष रुचि दिखाकर तेजी लाने की कोशिश की है। इस दौरान पहले की सरकारों से अलग और भविष्य की दृष्टि से कुछ साहसिक फैसले लिए गए हैं और इससे भारत को बड़े पैमाने पर फायदा भी हुआ है। मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल में देश को तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनाने का वादा किया है और वह भारत को एक विकसित देश बनाने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं।

Table of Contents
Indian Foreign Policy: तीसरे कार्यकाल में भारत को बड़े पैमाने पर होगा फायदाराजनीतिक दबाव से मुक्तचीन और पाकिस्तान का विशेष महत्वराष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने में सफल रहे
Indian Foreign Policy
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लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद केंद्र में ‘राजग’ की नई सरकार बन गई है और नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं। बेशक पिछले दो कार्यकाल में उन्होंने पूर्ण बहुमत की सरकार चलाया, लेकिन अब तीसरे चरण में उन्हें घटक दलों के भरोसे सरकार चलानी होगी। नतीजे के बाद मोदी के भाषण से साफ हो गया कि इससे पिछले कार्यकाल में चल रहे विकास कार्यों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। राजनीतिक दृष्टिकोण से, जनमत की अलग-अलग व्याख्या की जा सकती है। पिछले दस सालों की तरह इस कार्यकाल में भी विदेश नीति के मोर्चे पर भारत की भूमिका दिखेगी और इसमें प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली की छाप भी दिखेगी। पिछले फैसलों से अलग और दूरदर्शी कुछ साहसिक फैसले लिए गए हैं और इससे भारत को बड़े पैमाने पर फायदा हुआ है।

राजनीतिक दबाव से मुक्त

विदेश नीति काफी हद तक राजनीतिक दबाव से मुक्त है। ऐसी ही स्थिति गठबंधन सरकार में भी बन सकती है। असाधारण स्थिति में गठबंधन के घटक दलों के दबाव के कारण कुछ समझौते करने पड़ेंगे। जैसे डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के दौरान भारत-बांग्लादेश नदी जल समझौते को गति देने के प्रयास किये गये, लेकिन घटक दल तृणमूल कांग्रेस ने इस समझौते को खारिज कर दिया और सरकार को पीछे हटना पड़ा। कभी-कभी, श्रीलंका के प्रति भारत की नीतियों पर द्रमुक जैसी पार्टी का दबाव देखा जा सकता है, लेकिन मोदी सरकार पर उस तरह का दबाव महसूस होने की संभावना नहीं है, क्योंकि बीजेपी बहुमत से दूर नहीं है और समर्थन के लिए या निर्णय लेते समय कुछ हद तक जेडीयू और तेलुगु देशम जैसी पार्टियों पर निर्भर रहेगी, ताकि पड़ोसी देशों के साथ कोई टकराव न हो।

चीन और पाकिस्तान का विशेष महत्व

भारत की विदेश नीति में चीन और पाकिस्तान का विशेष महत्व है। इन देशों के साथ धैर्य और दृढ़ता से निपटना मोदी सरकार की पहचान रही है। चाहे वह पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक हो, लॉन्चपैड पर हवाई हमले हों, साथ ही चीन के खिलाफ डोकलाम और लद्दाख जैसे उदाहरणों का भी उल्लेख किया जा सकता है। बेशक, गठबंधन के कारण मोदी का राजनीतिक समर्थन कुछ हद तक कमजोर हो गया है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत की विदेश नीति कैसी रहती है।

Indian Foreign Policy
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भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने और गठबंधन के बल पर मोदी के प्रधानमंत्री बनने से शायद चीन और पाकिस्तान जैसे देश मोदी को कमजोर मानेंगे या परेशान करने की कोशिश करेंगे। ऐसे में पहले की तरह उनकी दलीलों को करारा जवाब देना जरूरी है। केंद्र में कोई भी सरकार रही हो, पाकिस्तान और चीन की बात आने पर उसे व्यापक राजनीतिक समर्थन मिला है। चाहे पूर्वी बांग्लादेश मुक्ति संग्राम हो या कारगिल युद्ध, तत्कालीन विपक्षी दलों ने सरकार की मदद की है। इसलिए चीन और पाकिस्तान के मामले में प्रधानमंत्री की निर्णायक भूमिका की परंपरा जारी रहेगी।

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राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने में सफल रहे

प्रधानमंत्री मोदी के सामने अपने तीसरे कार्यकाल में चुनौती अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से पैदा हुई कठिनाइयों से बाहर निकलने और सद्भाव हासिल करने की है। विदेश नीति एक संवेदनशील विषय है और इसे प्रभावित करने वाले कई कारकों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है; लेकिन संतुलन बनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। मोदी विश्व नेताओं के साथ अच्छे संबंधों के माध्यम से राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने में सफल रहे हैं; लेकिन लगातार बदलते वैश्विक समीकरणों को देखते हुए राष्ट्रीय हित हासिल करना और शक्ति संतुलन बनाए रखना एक कठिन कार्य है। एक ओर, रूस और यूक्रेन युद्ध समाप्त नहीं कर रहे हैं, और दूसरी ओर, पश्चिम एशिया में संघर्ष जाकी है। अमेरिका और चीन के बीच भी तनाव जारी है। इस बीच, भारत ने रूस के साथ-साथ पश्चिम में अपने विरोधियों के साथ भी अच्छे संबंध बनाए रखे हैं।

भारत ने पश्चिम एशिया में संघर्ष में इज़राइल को अकेला नहीं छोड़ा है और उसके विरोधी देशों के साथ भी समन्वय बनाए रखा है। ऐसे में मोदी को भारत-पश्चिम एशिया और यूरोप आर्थिक गलियारा स्थापित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। इस कॉरिडोर पर दिल्ली में जी-20 सम्मेलन में सहमति बन गई है। चुनाव के दौरान ही सरकार ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के सौदे को अंतिम रूप दिया। खास बात है कि भारत ने यह डील तब भी रद्द नहीं जब अमेरिका ने ईरान पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे। इसमें भारत ने अपने हितों को प्राथमिकता दी, क्योंकि भारत चाबहार बंदरगाह के रणनीतिक महत्व को जानता है। अगर भारत ने समझौते के लिए पहल नहीं की होती तो चीन इस मौके का फायदा उठाने की फिराक में रहता। तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की सफलता दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों को चमत्कार जैसी लग सकती है। इस स्थिति से भारत को फायदा हो सकता है। अब मोदी ने देश को तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनाने का वादा किया है और वह भारत को एक विकसित देश बनाने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं।

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