Omar Abdullah – पहले और अब के हालातों में जमीन आसमान का अंतर
Omar Abdullah: उमर अब्दुल्ला पहले भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन तब और अब की परिस्थितियों में जमीन आसमान का फर्क है। पहले जम्मू-कश्मीर पूर्ण राज्य हुआ करता था, लेकिन अब वो केंद्र शासित क्षेत्र बन चुका है। लद्दाख वाला हिस्सा भी अब उससे अलग हो चुका है। बदले हालात में उमर अब्दुल्ला के सामने नई तरह की चुनौतियां पेश आएंगी, और उनसे राजनीतिक तरीके से ही डील करना होगा – लेकिन हर हाल में जम्मू-कश्मीर के लोगों की अपेक्षाओं का पूरा ख्याल रखना होगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि लोगों का जो गुस्सा पीडीपी के प्रति देखा गया, भाजपा के प्रति वैसा बिलकुल नहीं है। भाजपा भले ही बहुमत और सत्ता से दूर रह गई हो, लेकिन 2014 के मुकाबले सीटों के हिसाब से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है।

NC की जीत के मायने
उमर की राजनीति ने धारा 370 हटाने के बाद चुनाव नहीं लड़ने के ऐलान से लेकर दो-दो सीटों से चुनाव जीतने तक, एक लंबा सफर तय किया है – ऐसे में, ये तो है कि लोगों ने अब्दुल्ला परिवार पर भरोसा जताया,और पीडीपी को नकार दिया है। पीडीपी को भाजपा के साथ सरकार बनाने की कीमत चुकानी पड़ी है। अच्छी बात ये है कि अब्दुल्ला परिवार ने जनभावनाओं को समझा और वक्त की जरूरत के हिसाब से रणनीति भी बदली। इंजीनियर राशिद से हारने के बावजूद उमर ने हिम्मत नहीं छोड़ी, और जिस लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गये थे, उसी के तहत आने वाली विधानसभा से फिर से मैदान में उतरे और जीते भी।
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उमर के सामने यह रहेंगी चुनौतियां
उमर के लिए लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरना बहुत मुश्किल है। 2018 के बाद से जम्मू-कश्मीर में जनता की चुनी हुई सरकार नहीं है, और तब से लेकर अब तक उप राज्यपाल की तरफ से महज इतनी ही कोशिश नजर आई है कि चीजें सुचारु रूप से चलती रहें, और कानून व्यवस्था बरकरार रहे। 2019 में धारा 370 खत्म कर देने के बाद, जब एक साल तक चुनाव कराने लायक स्थिति नहीं बनी, तो एक राजनीतिक व्यक्ति की जरूरत महसूस हुई और पहले एलजी नौकरशाह गिरीश चंद मुर्मू की जगह भाजपा नेता मनोज सिन्हा को मोर्चे पर लगाया गया, ताकि अवाम के साथ राजनीति डायलॉग शुरू किया जा सके और चुनाव कराने लायक स्थिति बनाने की भी कोशिश हो।उमर की तरफ से केंद्र के साथ परस्पर संबंधों की जो पहल हुई है, केंद्र को भी वैसा ही रुख दिखाना होगा, तभी बात बनेगी। वरना, जम्मू-कश्मीर में अमन चैन के साथ लोगों की जिंदगी में खुशहाली लाने की उम्मीद भी बेमानी साबित हो सकती है।

फारूक और उमर के अलग अलग बयान
एक खास बात और भी देखने में आई है। चुनावी जीत के बाद फारूक और उमर के अलग अलग तरह के बयान आए हैं। फारूक अब भी यही कह रहे हैं कि जनता का ये फैसला सबूत है कि जम्मू-कश्मीर के लोग अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ हैं। फारूक कह रहे हैं, हमें बेरोजगारी खत्म करनी है महंगाई और नशीली दवाओं की समस्या से निपटना है|अब कोई एलजी और उनके सलाहकार नहीं होंगे|अब 90 विधायक होंगे जो लोगों के लिए काम करेंगे।
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