Water Scarcity: 30 बड़े शहरों की स्थिति बहुत ज्यादा खराब
Water Scarcity: देश में जल संकट के अन्य प्रमुख कारणों में आज भी अपशिष्ट जल का बहुत कम प्रबंधन भी जिम्मेदार है। जर्मनी, लग्जम्बर्ग, फ्रांस और इंग्लैंड में जहां 95 फीसदी तक अपशिष्ट जल का दोबारा से इस्तेमाल हो जाता है, वहीं भारत में अभी भी 20 फीसदी से ज्यादा घरों से निकलने वाले इस्तेमाल पानी का प्रबंधन संभव नहीं हो पाया। हमारी अस्थिर कृषि पद्धतियां भी विशेषकर भूजल खात्मे का सबसे बड़ा कारण हैं। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में सरकारें कई दशकों से लगातार किसानों को मई-जून में धान न लगाने की हिदायतें दे रही हैं, लेकिन लोग अपने फायदे के कारण सरकार की बात पर जरा भी कान नहीं दे रहे और भ्रष्टाचार के कारण विभिन्न सरकारें किसानों को इसके लिए धमकाने के बावजूद व्यवहार में कुछ नहीं कर पा रहीं।
पंजाब और हरियाणा में जिस तरह जल का अत्यधिक दोहन कृषि के लिए हुआ है, उसका फायदा तो कुछ मुट्ठीभर बड़े किसानों को हुआ है, लेकिन उसके नुकसान समूची स्थानी आबादी को उठाने पड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आशंका से कहीं ज्यादा तेजी से लगातार जल संकट की स्थिति गहराती जा रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2025 तक समूचे उत्तर-पश्चिमी भारत में गंभीर जल संकट की स्थिति खड़ी हो सकती है।

तेज पिघल रहे हैं ग्लेशियर
भारत में कुल मीठे पानी का लगभग 70 फीसदी हिस्सा हिमालय में ग्लेशियरों और हिमनदों के रूप में है और साल 2010 के बाद से लगातार जिस तरह ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में बढ़ोत्तरी हो रही है और ग्लेशियर आशंका से भी कहीं तेज पिघल रहे हैं, वह भी भारत के जल संकट का एक बड़ा कारण है। क्योंकि अपने देश में सिर्फ 2.4 फीसदी भूमि ही पानी से ढकी हुई है। इसलिए वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट ने भारत के 9 राज्यों को खासतौर पर आने वाले दिनों में जल संकट की गंभीर चेतावनी दी है। इनमें चंडीगढ़, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश और गुजरात विशेष रूप से शमिल हैं। इन सबकी हालत बंग्लुरु जैसे न हो, इसके उपाय हमें अभी से करने होंगे।
पानी के संकट से जूझ रहे हैं सभी महानगर
देश के करीब करीब सभी महानगर पानी के संकट से जूझ रहे हैं जबकि देश के 30 बड़े शहरों की स्थिति बहुत ज्यादा खराब है। इन शहरों में रहने वाले करीब 15 करोड़ लोग पानी की भयानक समस्या से गुजर रहे हैं। देश के जिन शहरों में हर साल गर्मियों में या साल के कुछ महीनों में पानी का गंभीर संकट उभरता है, उनमें शामिल हैं- मुंबई, बंग्लुरु, चंडीगढ़, कोलकाता, जयपुर, इंदौर, श्रीनगर, अमृतसर, गुरुग्राम, हैदराबाद, चेन्नई, कोयंबटूर, अमरावती, विशाखापत्तनम, आगरा, आसनसोल, मेरठ, फरीदाबाद, सोलापुर और दिल्ली।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में जल संकट लगातार गहराता जा रहा है और साल 2025 तक यह स्थिति बड़ी भयावह हो सकती है, जिसका इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रमुख कारण अत्यधिक भूजल दोहन और ग्लेशियरों के सामान्य से ज्यादा पिघलना है, जिसकी वजह से गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी हिमालयी नदियों का प्रवाह काफी धीमा हो गया है। साल 2018 में ही नीति आयोग ने जो समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई) लांच किया था, ताकि विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जल क्षेत्रों की स्थिति और प्रबंधन प्रदर्शन का वार्षिक स्नैप शॉट जारी किया जा सके और इस तरह जल प्रबंधन की वास्तविक स्थिति पर निगरानी बनायी रखी जा सके।
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तेजी से हो रहा शहरीकरण
देश के शहरीकरण के सपनीले भविष्य पर खड़ा हो गया संकट है। दुनिया की एक नहीं कम से कम आधा दर्जन विभिन्न एजेंसियां जोर देकर कह रही हैं कि साल 2050 तक भारत के लगभग 3 दर्जन शहर पानी के संकट का शिकार होंगे। लेकिन आज भी हमारा रवैय्या इस संकट के संबंध में महज तात्कालिक है। जबकि देखा जाए तो भारत में जल संकट का कोई एक अकेला कारण नहीं है। बढ़ती आबादी और उससे भी ज्यादा जिस तेजी से शहरीकरण हो रहा है, उससे भी यह संकट गहराया है। चूंकि देश में रोजगार, शिक्षा से लेकर कॅरियर के सारे अवसर, शहरों में और कुछ खास शहरों में केंद्रित हो गए हैं, इसलिए भारत के कुछ महानगरों में आबादी का बढ़ना इतना बड़ा संकट है कि उसके सामने सभी तरह की योजनाएं और मौजूद संसाधन बेमतलब हो गए हैं।
पिछले दिनों कमजोर मानसून, लगातार घट रहा भूजल, माफिया के चंगुल में जलाशय और अत्यधिक शहरीकरण ने देश की सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले बंग्लुरु को झकझोर करके रख दिया है। आमतौर पर आईटी से संबंधित मामलों के लिए चर्चा में रहने वाला बंग्लुरु इन दिनों पूरे देश में जिन कुछ बातों के लिए चर्चा में है, उनमें शामिल हैं- महीने में सिर्फ चार बार नहाने की सलाहें, दफ्तरों में आने की बजाय घर से ही काम करने के निर्देश, बच्चों को स्कूल से बिना मांगे मिली छुट्टियां और घर में कई बार खाना बनाने की बजाय कुछ बार रेस्टोरेंट से मंगाने के सुझाव। देखने वाली बात यह है कि जिस बंग्लुरु संकट को लेकर इन दिनों सरकारों से लेकर स्थानीय प्रशासकों तक के हाथ पांव फूल गए हैं। वह संकट, कोई ऐसी आपदाजनित संकट नहीं है, जो समझ में न आ रहा हो।

भूजल का अंधाधुंध दोहन
बंग्लुरु का जल संकट वास्तव में कम बारिश से कहीं ज्यादा भूजल का अंधाधुंध दोहन का संकट है और उससे भी बड़ी खामी इस संकट की तह में यह है कि अंधाधुंध शहरीकरण के चलते जिस तरह से जमीन का सीमेंटीकरण हुआ है, उसके चलते बारिश के जिस पानी को जमीन के अंदर समाना चाहिए, उसमें 80 से 85 फीसदी पानी यूं ही बह जाता है। बंग्लुरु में लगातार बढ़ती आबादी और ग्लोबल आईटी हब बनने के कारण जो अंधाधुंध निर्माण हुए हैं, उसके चलते आज हर दिन बंग्लुरु को 20 करोड़ लीटर पानी की जरूरत है। लेकिन सिर्फ 4 करोड़ लीटर पानी उपलब्ध है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह संकट कितना बड़ा है।
एक जमाने में जिस बंग्लुरु में 300 से ज्यादा जलाशय हुआ करते थे, आज उनकी संख्या घटकर 32 रह गई है और उसमें से भी 17 जलाशय गंभीर प्रदूषण का शिकार हैं और शेष में जल स्तर की बेहद कमी पैदा हो गई है। क्योंकि इनसे जितना पानी हर वर्ष निकलता है, बारिश के दिनों में भी उतने पानी की दोबारा पूर्ति नहीं हो रही। यही कारण है कि आज दक्षिण भारत का यह सबसे संभावनाशील शहर जल हाहाकार से गुजर रहा है। आज जिस बंग्लुरु में पौधों को पानी देने, गाड़ी धोने या दूसरे कामों में पानी के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है और इस्तेमाल करते पाये जाने पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया गया है। ऐसे सख्त कदम अगर आज से 5 साल पहले उठाये गए होते, जब लगातार कहा जा रहा था कि बंग्लुरु जल संकट की तरफ बढ़ रहा है, तो शायद यह स्थिति न आती।
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