Treasure of Happiness: खुशियों को जीने के लिए सामाजिक जुड़ाव बेहद जरूरी
आज के दौर में खुशियों के खो जाने का अहम कारण हर पल औपचारिक बने रहना भी है। हर कोई एक खास छवि बनाने के फेर में मन की खुशी को समझने के बजाय बाहरी परवेश में ढलने की जद्दोजहद में जुटा है, जबकि घर में इंसान अपने आप को किसी आवरण में लपेटकर नहीं रखता है। अपनों के बीच हम जैसे है, वैसे ही रहते हैं। पूरी सहजता से रहते हैं, दिखावटी-बनावटी इमेज से बनी यह दूरी भी भीतरी खुशी के लिए बेहद जरूरी है। असल में अपने करीबी रिश्तों के बंधन में इंसान सबसे ज्यादा खुला और सहज महसूस करता है। घर में पुरखों का आशीष और भावी पीढ़ी का भरोसा दोनों साथ चलते हैं। अपनी जड़ों से जुड़े रहने का यह सुंदर अहसास भी बहुत सुखदायी होता है। घर हर पीड़ा में इंसान की शरणस्थली बनता है। इतना ही नहीं तीज त्यौहार की रौनक हो या उपलब्धियों का उत्सव, अपनों के साथ के बिना मन-जीवन खुशहाल नहीं हो सकता है। घर इसी खुशहाली का बसेरा होता है।
जिन्दगी के बेहतर पक्ष दिखते हैं
खुशी साझी अनुभूति होती है। घर-परिवार और परिवेश से निकलकर समाज तक फैला सुख का उजास… ही असल में मन को आनंद से भर देता है। इसलिए खुश रहने और खुशियों को जीने के लिए सामाजिक जुड़ाव बेहद जरूरी है। मेलजोल का परिवेश खुशहाली को विस्तार देता है। सामाजिक सरोकारों से जुड़ना मन को संतोष देता है। मिलनसार इंसानके मन-जीवन में सरलता और सकारात्मकता का भाव सदा बना रहता है। साझा जीवन जीने की यह सोच सचमुच खुशियों से मिलवाती है। समाज से जुड़कर अपनी जिन्दगी के बेहतर पक्ष और नियामतों को देखने की समझ आती है। साथ ही सामाजिक मेलजोल तनाव, अवसाद और अकेलेपन से भी बचाता है। तकलीफदेह ही है कि आज हर कोई समाज से कटा सा है। जीवन अपने आप तक सिमट गया है। कोरोनाकाल के ठहराव को जीने के बाद जिंदगी जरा और सिमट गई है। ऐसे में सामाजिक सक्रियता के लिए विशेष कोशिशें करनी होगी। वर्चुअल वर्ल्ड की सामाजिकता के फेर में असल संसार में असामाजिक बनने से बचना होगा।
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सुख का अहसास तो घर के भीतर
हंसी-खुशी और सुख का अहसास तो घर के भीतर बसता है। पंछी भी शम को सुकून की तलाश में आशियाने की ओर लौट आते हैं। खुशी ढूंढ़ने से नहीं मिलती। घर में सुकून नहीं तो कहीं और कैसे मिलेगा? खुशियां सदा से घर में ही बसेरा करती आई हैं। खुशी का असली ठिकाना हमारा अपना आंगन ही रहा है। खुशियां जुटाने और जीने का हर इंसान का एक अलग अंदाज होता है। सभी के लिए मुस्कुराहटों की वजह भी अलग-अलग होती हैं और सुख का अपना पैमाना, पर खुशियों को लेकर एक साझी अनुभूति दुनिया के हर हिस्से में बसे लोगों पर लाग होती है। यह अनुभति अपने घर आंगन और अपनों की खुशियों से जुड़ी हैं। एक छत के तले इन खुशियों को अपनों का साथ और स्नेह सींचता है। सुख-दु:ख में एक दूजे को थामे रहने का भाव पोसता है। अपने आंगन में मिलने वाला यह सुख हर औपचारिकता से परे जिया जाता है। सहज अवलोकन से लेकर वैज्ञानिक अध्ययन तक, सभी इस बात को पुख्ता करते हैं कि घर में ही हैं दुनियाभर की खुशियां।
खुशियां तलाशने का नया ही दुख
तकनीक और तरक्की के इस दौर में इंसान खुशियां तलाशने का नया ही दुख पाल बैठा है। जाने-अनजाने सुख तलाशने की यात्रा पर निकल पड़ा है। जबकि हंसी-खुशी और सुख का अहसास तो घर के भीतर बसता है। खुशी ढूंढ़ने से नहीं मिलती। घर में सुकून नहीं तो कहीं और कैसे मिलेगा? खुशियां सदा से घर में ही बसेरा करती आई हैं। खुशी का असली ठिकाना हमारा अपना आंगन ही रहा है। घर, जहां जज्बातों को खुलकर जीया जाता है। प्यार-संस्कार और किसी अपने के इंतजार जैसे भाव- घर की चारदीवारी में ही मिलते हैं। अशांत मन को भी घर में ही राहत मिलती है। घर जिंदगी की वह ठहराव देता है जो गर्मी, सर्दी और बरसात से ही नहीं बल्कि दुनियायी उलझनों से भी बचाता है।
स्नेह से फलती-फूलती हैं खुशियां
घर में बसी खुशियां स्वार्थपरक सोच नहीं, स्नेह से फलती-फूलती हैं। अपनों संग जी रही खुशियों की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती। घर में कोई एक दूसरे से ऊंचे ओहदे या चर्चित व्यक्तित्व के नाते नहीं जुड़ता बल्कि रिश्तों की डोर मन को बंधती है। ऐसे में अच्छे-बुरे समय में भी साथ बना रहता है। सम्मान कायम रहता है। स्नेहपूरित बर्ताव में बदलाव नहीं आता। एक आध्यात्मिक शोध के मुताबिक दुनियाभर में औसत इंसान केवल 30 प्रतिशत समय ही खुश होता है। 40 फीसदी वक्त तो दुखीरहने में ही जाता है। इतना ही नहीं, बाकी बचें 30 प्रतिशत समय में इंसान सुख या दु:ख के अनुभव से परे न्यूट्रल यानी कि उदासीन सी स्थिति को जीता है। सीखने वाली बात है कि घर के बाहर हमारी मन:स्थिति के ऐसे पड़ावों को समझने वाला कोई नहीं होता। जबकि घर में कुशी या उदासी के हर दौर में अपनों कासाथ मिलता है। इतना ही न हीं, वह जुड़ाव टिकाऊ भी होता है, जो खुशियों के मजबूत आधार को कभी डिगने नहीं देता है।
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सुरक्षा और सम्मान की सौगात
जैसा कि कहा गया है कि खुशियां बांटने से बढ़ती हैं यह एक साझी अनुभूति हैं, जब किसी जरूरतमंद की मदद करते हैं तो मदद पाने वाले से ज्यादा खुशी मदद करने वाले को होती है। यही सच्ची खुशी है। परिस्थितियां चाहे जैसी हो, अपनों का साथ हर उम्र के लोगों को खुशी देता है। अपनेपन का खास लगाव बच्चों का मनोबल बढ़ाकर मुस्कुराहटें बिखेरना सिखाता है। बड़ों की सुरक्षा और सम्मान की सौगात देता है। मन की सच्ची खुशी के लिए सुरक्षा और संबल का भाव सबसे जरूरी है। सलामती का यह एहसास सिर्फ अपने आंगन में ही मिलता है। सबसे बड़ी बात इसके लिए कोई तयशुदा समय सीमा नहीं होती है। जीवन के हर पड़ाव पर यह भरोसा बना रहता है। सुरक्षित महसूस करने की यह अनुभूति है ही ऐसी कि पशु-पक्षियों का भी अपने घोंसलों-परींदों से गहरा जुड़ाव होता है। यही वजह है कि घर को मूलभूत जरूरतों में से एक माना गया है। इतना ही नहीं मानवीय स्वभाव कई बातों में निजता भी चाहता है। निजी जीवन की बातों और उतार चढ़ाव के हालात की यह गोपनीयता सिर्फ घर के साये में मिलती है। दुनियावी आघातों से बचाने का यह पहलू भी इंसान को खुशी देता है।
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