Point Nemo: न्यूजीलैंड के समुद्रतट से 3000 मील दूरी पर है
दुनिया में कई बेहद रहस्यमयी जगहें हैं जिनके बारे में जानकर लोगों को यकीन नहीं होता। धरती पर एक ऐसी ही जगह स्थित है, जो चारों तरफ से प्रशांत महासागर से घिरी हुई है। इस जगह को ‘प्वाइंट निमो’ कहा जाता है। सबसे हैरानी वाली बात यह है कि इसकी खोज करने वाले वैज्ञानिक भी अभी तक यहां पर नहीं पहुंच सके हैं। इंसानों की आबादी से हजारों किलोमीटर दूर स्थित इस जगह पर जाना आसान नहीं है।
‘प्वाइंट निमो’ का मतलब होता है ऐसी जगह जहां कोई न हो। सचमुच यह धरती की न केवल सबसे वीरान जगह है, बल्कि समुद्र के भीतर ऐसी जगह है, जहां से जमीन दूर और अंतरिक्ष नजदीक है। ‘प्वाइंट निमो’ न्यूजीलैंड के समुद्रतट से 3000 मील और अंटार्कटिका के उत्तर में 2000 मील की दूरी पर जमीन से इतना दूर है कि उसके निकटतम जो मनुष्य होता है, वह अंतरिक्ष स्टेशन में होता है, जो कि धरती से 227 समुद्री मील की दूरी पर है। पिछली सदी के 90 के दशक तक प्वाइंट निमो को कोई नहीं जानता था। साल 1992 में एक कनाडाई-सर्बियाई भूमंडलीय सर्वेयर हर्वोज लुकातेला ने इसकी खोज की थी। जल्द ही खोजी गई धरती की इस सबसे वीरान जगह को दुनियाभर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने आपसी सहमति से अंतरिक्ष में बेकार हुए सैटलाइटों की कब्रगाह बना दिया।

मृत या बेकार उपग्रह दफन
आज उपग्रहों की इस कब्रगाह में 263 से ज्यादा अपनी अवधि पूरी कर चुके मृत या बेकार उपग्रह दफन हैं। इसके साथ ही यहां रूस के अंतरिक्ष स्टेशन मीर और नासा के स्काईलैब का मलबा भी पड़ा हुआ है। यह धरती में उपग्रहों का एक विशाल ग्रेवयार्ड है। इसके नाम ‘प्वाइंट निमो’ के पीछे एक भारतीय कनेक्शन भी है। 1970 के दशक में फ्रांसीसी उपन्यासकार जूल्स वर्ने के उपन्यास ‘ट्वेंटी थाउजेंड लीग्स अंडर द सी’ के मुख्य पात्र कैप्टन निमो के नाम पर इस जगह का नामकरण हुआ है,
जहां आज पूरी दुनिया का अंतरिक्ष कबाड़ फेंका जा रहा है। दरअसल जूल्स वर्ने के उपन्यास के पात्र ‘कैप्टन निमो’ को भारत के एक विद्रोही राजकुमार के रूप में दर्शाया गया है, जो उत्तर भारत के बुंदेलखंड इलाके के ‘डक्कार’ राजकुमार थे और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरोध में उन्होंने अपनी एक पनडुब्बी विकसित करके समुद्र में उतर गए थे, जहां उन्होंने कई द्वीपों पर अपना कब्जा जमाया और बहुत से आम लोगों की मदद की।
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कई गुना ज्यादा डरावनी थी आवाज
हर्वोज लुकातेला जब गहरे समुद्र में सर्वे करने की प्रक्रिया के दौरान प्वाइंट निमो से करीब 2000 किलोमीटर दूर से गुजर रहे थे, तब उन्हें एक भयानक रहस्यमयी आवाज सुनाई पड़ी। यह आवाज इतनी भयानक और रहस्यमयी थी कि गहरे समुद्र में जो भयानक आवाज ब्लू व्हेल निकालती है, यह उससे भी कई गुना ज्यादा डरावनी थी। सर्वेयर ह्वोए लुकाटेला का ध्यान जब इस आवाज की ओर गया तो वह लगातार आ रही इस आवाज की अनदेखी नहीं कर सके और यह जानने के लिए आवाज की दिशा में बढ़ गए, तब उन्हें पता चला कि यह दुनिया की सबसे निर्जन जगह है, जहां बहुत बड़ी-बड़ी बर्फ की चट्टानें टूट रही थीं।
यह भयानक आवाज उन्हीं चट्टानों के टूटने से निकल रही थी। बाद में 1997 के आसपास गहरे समुद्र में अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों का एक दल भी प्वाइंट निमो की यात्रा की और पाया कि वहां हजारों किलोमीटर दूर तक गहरा सन्नाटा पसरा हुआ है, जहां इंसान ही नहीं, दूसरे जीव जंतु भी न के बराबर हैं। यह हर तरह से धरती की निर्जन जगह है, जिसे दुनियाभर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने मिलकर अंतरिक्ष में अपना काम पूरा कर चुके उपग्रहों को ठिकाने लगाने के रूप में चुना है।
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किसी देश ने अपना अधिकार नहीं जताया
प्वाइंट निमो से निकटतम आबाद द्वीप ‘ट्रिस्टन दा कुन्हा’ है जो कि यहां से 2400 किलोमीटर की दूरी पर है। धरती में कोई ऐसी दूसरी जगह नहीं है, जहां इतना ज्यादा सन्नाटा हो और इंसान तो छोड़ो, कोई जीव-जंतु या वनस्पति भी न हो। इसीलिए इस जगह का इस्तेमाल दुनिया के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने धरती के लिए खतरनाक बन चुके उपग्रहों को अंतरिक्ष से धरती में गिराने के लिए किया। ‘प्वाइंट निमो’ प्रशांत महासागर में दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से समान दूरी पर है और अब तक इस जगह पर दुनिया के किसी देश ने अपना अधिकार नहीं जताया।
वैसे कुछ खुफिया रिपोर्टें ऐसी हैं कि अमेरिका यहां समुद्र में लड़े जाने वाले खतरनाक परमाणु युद्ध की गुप्त प्रैक्टिस करना चाहता है, लेकिन इन खुफिया रिपोर्टों की कभी किसी ने पुष्टि नहीं की। माना जाता है कि ये एक अफवाह है। प्वाइंट निमो, जिसे समुद्र का केंद्र भी माना जाता है, अब यहां पर सैटेलाइट के अलावा अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे लाखों-करोड़ों उन खतरनाक उपग्रहों के टुकड़ों, पुच्छल तारों व उल्कापिंडों के मलबों व सैटेलाइट के ईंधन को भी गिराए जाने की योजना बनाई जा रही है, जिससे धरती को उन डरावनी आशंकाओं से बचाने की कोशिश की जाए, जिनको लेकर हाल के वर्षों में बहुत चिंता जताई गई है।

140 टन से ज्यादा वजन का था पहला सैटेलाइट
धरती पर उपग्रहों के इस कब्रिस्तान में जो सबसे पहला सैटेलाइट गिराया गया था, वह 140 टन से ज्यादा वजन का था। यह रूस का था और लगभग एक दशक तक अंतरिक्ष में रहने के बाद बेकार हो चुका था। अगर यह किसी ऐसी जगह गिर पड़ता, जहां इंसान रहते हैं, तो इससे बहुत बड़ी तबाही हो सकती थी। कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है।
पिछली सदी के आखिरी दशक में दुनिया को बहुत शिद्दत से अंतरिक्ष के कचरे को, जिसमें सबसे ज्यादा बेकार हो चुके उपग्रह थे, ठिकाने लगाने की एक व्यवस्था करनी थी। लगता है कुदरत ने इसी जरूरत को पूरा करने के लिए दुनिया को ‘प्वाइंट निमो’ की खोज करा दी। जब से प्वाइंट निमो खोजा गया है, थोड़े-थोड़े दिनों में यहां अंतरिक्ष में बेकार होकर मलबा बन चुके उपग्रह टपकते रहते हैं। हालांकि जब भी अंतरिक्ष से यहां उपग्रहों का मलबा गिराया जाता है तो बकायदा इसकी आधिकारिक चेतावनी होती है, ताकि उस समय उस इलाके से एयर ट्रैफिक न गुजरे।
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