Women’s cricket: वाइड व नो-बॉल्स की समीक्षा कर सकती हैं खिलाड़ी
महिलाओं की वजह से क्रिकेट में अनेक क्रांतियां आई हैं, जैसे एकदिवसीय विश्व कप का आरंभ होना, छोटे फॉर्मेट को प्राथमिकता देना आदि। पुरुष क्रिकेट तो टेस्ट तक ही सीमित था, लेकिन जब महिलाओं ने क्रिकेट में दिलचस्पी लेना शुरू किया तो उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए अनेक नियम व खेलने के तरीके बदले गए। भारत में महिलाओं की राष्ट्रीय प्रतियोगिता 70 के दशक में 25-ओवर की हुआ करती थी, यही बाद में चलकर टी-20 का आधार बनी। अब पहली विमेंस प्रीमियर लीग (डब्लूपीएल) में यह प्रयोग किया जा रहा है कि खिलाड़ी डीआरएस का इस्तेमाल करते हुए अंपायर द्वारा दी गई वाइड व नो-बॉल्स की समीक्षा कर सकती हैं। अभी तक डीआरएस का प्रयोग आउट के निर्णय के संदर्भ में ही किया जाता था। डब्लूपीएल पहली प्रतियोगिता है, जिसमें डीआरएस के इस मॉडिफिकेशन को लाया गया है और इसे आगामी आईपीएल में भी लागू किया जाएगा।
इस प्रयोग से क्रिकेट को लाभ
सवाल यह है कि क्या इस प्रयोग से क्रिकेट को लाभ होगा? क्या आईसीसी इसे स्वीकार करते हुए अंतरराष्ट्रीय मैचों व प्रतियोगिताओं में भी लागू करेगी? डब्लूपीएल के खेल नियमों में कहा गया है कि ‘टाइम्ड आउट’ के अपवाद को छोड़कर एक खिलाड़ी मैदानी अंपायर के किसी भी निर्णय की समीक्षा का आग्रह कर सकती है कि बैटर आउट थी या नहीं। ‘टाइम्ड आउट’ का अर्थ होता है कि अगर बैटर निर्धारित समय पर क्रीज पर बैटिंग करने के लिए नहीं पहुंचती है तो उसे आउट घोषित कर दिया जाएगा। साथ ही खिलाड़ियों को अब मैदानी अंपायर द्वारा वाइड या नो-बॉल संबंधी दिए गए निर्णयों की समीक्षा कराने की अनुमति होगी, जोकि थर्ड अंपायर करेगा। वाइड व नो-बॉल्स की यह समीक्षा उन 2 असफल रिव्यू का ही हिस्सा होगी, जिसकी हर टीम को प्रति पारी अनुमति होती है। लेकिन लेग-बाई के फैसले की डीआरएस द्वारा समीक्षा नहीं कराई जा सकती।

प्रतिस्पर्धी व प्रोफेशनल हो गया क्रिकेट
अब क्रिकेट इतना अधिक प्रतिस्पर्धी व प्रोफेशनल हो गया है कि एक गलत निर्णय से न केवल टीम हार या जीत सकती है, बल्कि एक खिलाड़ी का करिअर भी बर्बाद हो सकता है। वाइड गेंद पर एक अतिरिक्त रन तो मिलता ही है, एक अतिरिक्त गेंद भी फेंकनी पड़ती है। नो-बॉल करने पर अतिरिक्त रन के साथ अगली गेंद पर फ्री हिट भी मिलती है, जिस पर खिलाड़ी सिर्फ रन आउट ही हो सकता है। यह अतिरिक्त रन ही हार-जीत का अंतर बन जाते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह स्वागतयोग्य प्रयोग है जिसे अंतर्राष्ट्रीय मैचों में भी लागू किया जाना चाहिए।
नये फीचर का प्रयोग
डब्लूपीएल के पहले दो मैचों में खिलाड़ियों ने इस नये फीचर का प्रयोग भी किया। प्रतियोगिता के पहला मैच मुंबई इंडियंस और गुजरात जायंट्स के बीच खेला गया था। मुंबई की स्पिनर साइका इशाक की एक गेंद को मैदानी अंपायर ने लेग साइड पर वाइड करार दिया। मुंबई ने डीआरएस का इस्तेमाल करते हुए निर्णय की समीक्षा की मांग की। रीप्ले से मालूम हुआ कि गेंद बैटर मोनिका पटेल के दस्ताने को स्पर्श करते हुए गई थी, इसलिए अंपायर को अपना फैसला बदलना पड़ा। इस तरह मुंबई टीम की एक गेंद व एक रन बच गया।

मुंबई की हीथर नाइट का कहना है, “मेरे ख्याल में यह दिलचस्प प्रयोग है। टी-20 में अक्सर रिव्यू कराने के अधिक अवसर नहीं मिलते हैं। अब योजना बनानी होगी कि इसका कब प्रयोग किया जाए, पारी के अंतिम ओवरों में या जब आपको यकीन हो कि फैसला पलट दिया जाएगा? कांटे के मैचों में यह बहुत अच्छा रहेगा क्योंकि एक निर्णय मैच के नतीजे को प्रभावित कर देता है।” दिल्ली कैपिटल्स की बैटर जेमिमाह रोड्रिग्स ने भी ऐसा रिव्यू लिया था। उन्होंने मेगन शूट की फुल टॉस गेंद को पुल करने के बाद जब यह देखा कि अंपायर ने ऊंचाई के लिए गेंद को नो-बॉल करार नहीं दिया था तो उन्होंने डीआरएस रिव्यू की मांग की, जो असफल रही क्योंकि बॉल-ट्रैकिंग के रीप्ले से मालूम हुआ कि गेंद बैटर पर डिप कर रही थी और रोड्रिग्स भी लगभग अपने घुटने पर झुक गई थीं।
अंपायर व खिलाड़ी के हिसाब से अलग-अलग
आईसीसी इलीट पैनल के पूर्व अंपायर साइमन टॉफेल इस पक्ष में नहीं हैं कि वाइड व हाइट नो-बॉल्स को रिव्यू किया जाए। उनके अनुसार, ‘परफेक्शन की तलाश में अंपायरिंग की कला को विज्ञान में नहीं बदला जा सकता। जैसे, वाइड को ही लें, यह अंदाजे का निर्णय है जो अंपायर व खिलाड़ी के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। इसे थर्ड अंपायर को सौंपना अक्लमंदी नहीं। क्या एक थर्ड-अंपायर तय कर सकता है कि लेग-साइड वाइड कैसी दिखनी चाहिए? फिर यह कैसे तय होगा कि वाइड गेंद कौन-सी है।’ हाइट नो-बॉल पर काफी विवाद हो चुके हैं। बहरहाल, यह प्रयोग से ही पता चलेगा कि डब्लूपीएल में वाइड व नो-बॉल को लेकर जो नये नियम लागू किए गए हैं, वह खेल को कितना न्यायपूर्ण बनाते हैं। देखना होगा कि आईसीसी की इस पर क्या प्रतिक्रिया रहेगी।
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