Electronic Components Manufacturing – देश में स्मार्टफोन के लिए फैक्टरी उत्पादन में वृद्धि
Electronic Components Manufacturing: भारत सरकार इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स के लिए एक प्रोत्साहन योजना पर काम कर रही है। इस योजना पर 30,000 करोड़ रुपये से 40,000 करोड़ रुपये तक खर्च हो सकता है। यह भी सच है कि भारत में स्मार्टफोन के लिए फैक्टरी उत्पादन में वृद्धि हुई है, जिससे निर्यात में लगातार वृद्धि हुई है। फिर भी स्थानीय वैल्यू एडिशन अपेक्षित मात्रा में नहीं बढ़ा है। वर्तमान में मोबाइल फोन असेंबली में स्थानीय वैल्यू एडिशन लगभग 15 प्रतिशत है, जबकि संतोषजनक आंकड़ा लगभग 35-40 प्रतिशत होगा। पिछले कुछ वर्षों में भारत-चीन सीमा पर तनाव के बाद केंद्र सरकार एक तरह से चीन की आर्थिक नाकाबंदी की ओर बढ़ गई है। इसके बावजूद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि संयुक्त उद्यमों के हिस्से के रूप में घरेलू फर्मों के साथ साझेदारी में अधिक चीनी संस्थाओं को देश में आधार स्थापित करने की अनुमति देने के विचार को बढ़ावा मिल रहा है।

आयात को कम करना जरूरी
आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में भी कहा गया कि भारत को बीजिंग से निवेश बनाए रखते हुए चीनी उत्पादों के आयात को कम करना चाहिए। ‘मेड इन इंडिया’ अभियान के तहत बन रहे स्वदेशी उत्पादों के इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स की आपूर्ति पर भी चीन का दबदबा है। यही वजह है कि 2023-24 में भारत ने चीन से 12 बिलियन डॉलर और हांगकांग से 6 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स का आयात किया। ऐसे आयात होने वाले कंपोनेंट्स में दोनों देशों का आधे से अधिक हिस्सा है। साफ है कि कि देश में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की बढ़ती मैन्युफैक्चरिंग के बावजूद अभी भी बीजिंग पर निर्भरता में कमी नहीं आई है।
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34.4 बिलियन डॉलर रहा आयात
आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 वर्षों में चीन और हांगकांग से इलेक्ट्रॉनिक्स आयात दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान और सभी आसियान देशों से आयात की तुलना में कहीं अधिक है। वास्तव में 2023-24 में इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स का आयात 34.4 बिलियन डॉलर रहा। ये कंपोनेंट्स देश में तैयार हो रहे स्मार्टफोन से लेकर टीवी तक के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें वर्तमान में भारत में असेंबल किया जा रहा है। 2019-20 में चीन और हांगकांग से इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट का आयात 10 बिलियन डॉलर से अधिक था, जो इस श्रेणी में कुल आयात का 62 प्रतिशत था। एक साल बाद यानी 2020-21 में दोनों देशों से ऐसे कंपोनेंट् का आयात थोड़ा कम होकर 9.5 बिलियन डॉलर पर आ गया, लेकिन तब भी कुल आयात में इनकी हिस्सेदारी 62% पर स्थिर रही। 2021-22 में चीन और हांगकांग से आयात लगभग दोगुना होकर 17.7 बिलियन डॉलर हो गया, जो कुल आयात का 68 प्रतिशत से अधिक है।

चीन और हांगकांग से आयात अधिक
हालांकि 2022-23 में भारत को इलेक्ट्रॉनिक घटकों के निर्यात में चीन और हांगकांग की हिस्सेदारी 5 वर्षों में पहली बार 50 प्रतिशत से मामूली रूप से कम होकर 49.7 प्रतिशत हो गई। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की चीनी आपूर्ति पर भारत की निर्भरता की समग्र तस्वीर कुछ अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स केंद्रों जैसे दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान और वियतनाम और मलेशिया जैसे आसियान देशों से आयात की तुलना करने पर स्पष्ट हो जाती है। 2022-23 को छोड़कर पिछले 5 वर्षों में अकेले चीन से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आयात की मात्रा दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान और सभी आसियान देशों से हुए आयात से अधिक रही है। कुल मिलाकर पिछले 5 वर्षों में चीन और हांगकांग से आयात अन्य देशों की तुलना में अधिक रहा है। ऐसा तब है जब भारत के पास आसियान देशों, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते हैं।
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1.8 ट्रिलियन डॉलर का ग्लोबल कारोबार
इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स का कारोबार वैश्विक स्तर पर 1.8 ट्रिलियन डॉलर का है जबकि इसमें भारत की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से कम है। वर्ष 2030 तक 350 अरब डालर का इलेक्ट्रॉनिक्स का फाइनल प्रोडक्ट्स तो 150 अरब डॉलर का कंपोनेंट्स निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। कंपोनेंट्स का निर्माण घरेलू स्तर पर नहीं होने से मोबाइल फोन व अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद के निर्माण के लिए बड़े स्तर पर कंपोनेंट्स का आयात करना पड़ता है। यही वजह है कि मोबाइल फोन का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक होने के बावजूद इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम का हमारा आयात निर्यात से अधिक है। भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स के निर्माण की लागत अन्य देशों के मुकाबले 14-18 प्रतिशत अधिक है। ऐसे में कंपोनेंट्स बनाने वालों के लिए इंसेंटिव स्कीम लाने की जरूरत है। आयोग ने खास किस्म के इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स के निर्माण से जुड़ी यूनिट लगाने के लिए पूंजीगत मदद की भी सिफारिश की है। इस सेक्टर में भारत का मुकाबला चीन, वियतनाम, ताइवान, मलेशिया जैसे देशों से है।
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