Digital Poison: काम बाद में सबसे सोशल नेटवर्किंग की दुनिया
देश में जिस शहर की आबादी आधिकारिक तौर पर करीब ढाई करोड़ है, वहां आधिकारिक तौर पर मोबाइल फोनों की संख्या 10 करोड़ से ज्यादा है। भारत में कोई 45 लाख ऐसे दफ्तर हैं जहां कंप्यूटर पर काम होता है और विभिन्न सर्वेक्षणों के डाटा बताते हैं कि औसतन हर कर्मचारी जिसे दफ्तर में इंटरनेट की सुविधा उसकी डेस्क में हासिल है, उसका दिनभर में दो घंटे सिर्फ डिजिटल नेटवर्क के साथ गुजरता है। फोन, ई-मेल, फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्वीटर जैसी साइटों से अकसर लोग जुड़े ही रहते हैं। जिस भी व्यक्ति के दफ्तर में उसकी टेबल पर उसके काम करने के लिए डेस्क टॉप मिला हुआ है, वह अकसर हर दिन दफ्तर पहुंचकर सबसे पहले सोशल नेटवर्किंग की दुनिया से जुड़ता है बाकी काम बाद में होते हैं।
आजकल एक नया चलन भी शुरू हो गया है घर से निकल, दफ्तर जाने वाले 80 फीसदी युवा दफ्तर पहुंचने तक अकसर अपने कान में हैड फोन लगाये रखते हैं। पता नहीं चलता वो गाना सुन रहे हैं, कोई कहानी सुन रहे हैं या क्या कर रहे हैं? लेकिन यह तो पता होता ही है कि वे डिजिटल चक्रव्यूह में कैद हैं।

रोजमर्रा का जीवन घिरा
आज की तारीख में हमारा रोजमर्रा का जीवन डिजिटल उपकरणों और डिजिटल गतिविधियों से सुबह जगने से लेकर रात सोने तक घिरा रहता है। सूचना प्रौद्योगिकी के तमाम उपकरणों और इनके जरिये निर्मित इस डिजिटल दुनिया में दिन का ज्यादातर वक्त गुजारने के बाद लोगों में न सिर्फ अकेलेपन का एहसास होता है बल्कि उनमें एक खास किस्म की ऊब, अवसाद और चिड़चिड़ाहट भी भर जाती है। यह अति में की जाने वाली डिजिटल गतिविधियों का नतीजा होता है।
मनोचिकित्सक आजकल ‘डिजिटल प्वाइजन’ शब्द इस्तेमाल करने लगे हैं। वास्तव में किसी भी स्वस्थ इन्सान को यह डिजिटल प्वाइजन, वैसे ही अस्वस्थ कर देता है जैसे पारंपरिक जहर करता है। यह अकारण नहीं है कि आज अमेरिका में हर चैथा व्यक्ति चिड़चिड़ा है, हर छठवां व्यक्ति निराशा और हताशा में डूबा है और हर सातवां व्यक्ति डिजिटल लाइफस्टाइल के चलते मनोरोगों का शिकार है। भले यह सब कुछ अभी जानलेवा हद तक न पहुंचा हो, लेकिन आज डिजिटल मारामारी एक गंभीर बीमारी का भी रूप ले चुकी है। इसलिए यूरोप और अमेरिका में बड़े पैमाने पर ‘डिजिटल डिटॉक्स’ सेंटरों की शुरुआत हो चुकी है।
लोग जैसे पहले अपने अशुद्ध खानपान के चलते एक धीमे जहर की गिरफ्त में आ जाते थे और इससे छुटकारा पाने के लिए डिटॉक्स की प्रक्रिया अपनाते थे, आज वही डिजिटल दुष्प्रभावों से निपटने के मामले में हो रहा है।
Read more: Dog Licking Face: कुत्तों से अपना चेहरा चाटने वाले सावधान

नोटिफिकेशन एलर्ट का कर दो टर्नऑफ
फोन, स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप, डेस्कटॉप, कंप्यूटर, डिजिटल एक्सरसाइज संभव बनाने वाले उपकरण तथा इसी तरह के और तमाम उपकरण जिन्होंने हमारी व्यक्तिगत जिन्दगी को तेज रफ्तार कर दिया है, उनसे यह डिजिटल प्वाइजन बहुत तेजी से फैलने लगा है और अब इस जहर से निपटने का तरीका भी बड़े पैमाने पर लोग अपनाने लगे हैं।
सवाल है क्या आप भी डिजिटल व्यस्तता और इससे पैदा हुई सेहत संबंधी समस्याओं का शिकार हो चुके हैं? इसे जानने का सबसे साधारण तरीका यह है कि क्या आप हर पांच मिनट में अपने नोटिफिकेशन चैक करते हैं? अगर हां तो आप डिजिटल लत का शिकार हो चुके हैं। इस चक्रव्यूह से निकलने के तमाम उपायों पर तो हम आगे चर्चा करेंगे ही, सबसे पहले तुरंत जरूरी यही है कि आप अपने फोन से नोटिफिकेशन एलर्ट को फिलहाल तो टर्नऑफ कर दें। अगर यह परमानेंट टर्नऑफ करना संभव नहीं है तो हर दिन पूरी रात टर्नऑफ रखें और सुबह जगने से लेकर सोने तक कम से कम 3 घंटों तक इस मारामारी से दूर रहें।
Read more: Glitter Eyeshadow: देखते ही रह जाएंगे इन आंखों की मस्ती

आँखों के सामने न रखें स्मार्टफोन
डिजिटल जहर से बचने का एक तरीका यह भी है कि अपने स्मार्टफोन को हर समय अपनी आँखों के सामने न रखें। इसकी मौजूदगी आपके हर संयम को तोड़ेगी। इसलिए अगर घर में हों तो हमेशा अपने फोन को दूसरे कमरे में रखें, उस दूरी पर जहां से फोन आने पर आप बिना पलक गंवाये जल्दी से जल्दी उस तक पहुंच सकें।
डिजिटल जहर से बचने का एक तरीका यह भी है कि हर काम सोशल मीडिया में ही न कर लें। व्यवहारिक रूप से जीवन जीने की कोशिश करें। घर के बाहर लोगों से मिलें, व्यक्तिगत रूप से सशरीर कहीं जाने की कोशिश करें, हर जगह आभासी रूप में ही न जाएं। हर समय फोन या लैपटॉप में ही न व्यस्त रहें बल्कि अखबार पढ़ने की कोशिश करें। ज्यादातर लोग आज की तारीख में अपनी तमाम खबरें जानने के लिए डिजिटल नेटवर्क पर निर्भर होते हैं। लेकिन अगर इसके महज 10 फीसदी में फिजिकल मटीरियल के साथ जुड़ाव रहेगा तो स्वास्थ्य के लिए ज्यादा बेहतर होगा।
Read more: Cold and Cough Child: छोटे बच्चा खांसें तो हो जाएं सावधान

टेक्नो लाइफस्टाइल से फाइट
डिजिटल जहर से बचने का एक तरीका यह भी है कि अपने गहरे पुराने दोस्तों को ढूंढ़ें, उनके साथ हर महीने, दो महीने में कहीं मिलकर इंज्वॉय करने की योजनाएं बनाएं और तमाम प्रोग्राम, सॉफ्टवेयर के जरिये ही न बनाएं। बिना किसी योजना और बिना किसी जानकारी के कुछ रोमांचक पल भी तलाशें। यह सब इसलिए जरूरी है क्योंकि तभी आप पूरी तरह से स्वस्थ हो सकेंगे।
आज की तारीख में शारीरिक रूप से अच्छा से अच्छा स्वस्थ व्यक्ति भी डिजिटली बीमार है। यह बीमारी पारंपरिक बीमारियों से कोई कम नहीं है। अगर आप डिजिटल लत से निकलकर डिजिटल लाइफ को अपने अनुशासन में ढाल लेते हैं तो यह न केवल आपके मानसिक बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा रहेगा। डिजिटल डिटॉक्स करने से हमारी कार्यक्षमता में जबरदस्त इजाफा होता है। इस तरह आज की तारीख में स्वस्थ रहने के लिए सिर्फ पारंपरिक बीमारियों से ही नहीं बल्कि अपने टेक्नो लाइफस्टाइल से भी जूझना है।
- Rupinder Kaur, Organic Farming: फार्मिंग में लाखों कमा रही पंजाब की महिला - March 7, 2025
- Umang Shridhar Designs: ग्रामीण महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर, 2500 महिलाओं को दी ट्रेनिंग - March 7, 2025
- Medha Tadpatrikar and Shirish Phadtare : इको फ्रेंडली स्टार्टअप से सालाना 2 करोड़ का बिजनेस - March 6, 2025