Black Monday 1987 – कोई भी वित्तीय क्षेत्र इस गिरावट से अछूता नहीं रहा
Black Monday 1987: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ ने दुनिया में वित्तीय महासंकट के हालात उत्पन्न कर दिए हैं, जिससे विश्व महामंदी की चौखट पर पहुंचता दिख रहा है। सोमवार को पूरी दुनिया के बाजारों में इसका असर देखा गया। अमेरिका से लेकर जापान, चीन, हॉन्गकॉन्ग, कोरिया और यूरोप के बाजार ध्वस्त हो गए। दुनिया के सभी बाजार लाल निशान पर पहुंच गए। इन हालात ने 19 अक्टूबर 1987 के ब्लैक मंडे की यादों को ताजा कर दिया है। विशेषज्ञों ने पिछले माह की गिरावट को 1987 के बाद की सबसे बड़ी वैश्विक गिरावट करार दिया है। पूरी दुनिया के बाजारों में मचे हाहाकार के बाद सवाल उठ रहा है कि ब्लैक मंडे क्या है? क्यों इस वक्त ट्रेंड कर रहा है और कैसे एक ही झटके में करीब 11 हजार बैंक बंद हो गए थे?

सबसे बड़ी तबाही मची थी
डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ की मार ने एक बार फिर से उस त्रासदी को याद दिला दिया है। 19 अक्टूबर 1987 में शेयर बाजार के उस भूचाल को ब्लैक मंडे कहा गया जब अमेरिकी शेयर बाजार में पिछले माह को सबसे बड़ी तबाही मची थी। इसका असर पूरी दुनिया में दिखा था, जिसे आज भी शेयर बाजार नहीं भूल पाया है। अमेरिका के डाउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज में 19 अक्टूबर 1987 को 22.6 फीसदी की गिरावट आई, जो एक दिन में सबसे ज्यादा गिरावट थी। इससे अमेरिकी बाजार में कोहराम के बाद डाउ जोन्स 508 अंक गिरकर 1738.74 पर बंद हुआ था। इस बड़ी घटना के बाद हांगकांग से लेकर ऑस्ट्रेलिया और यूरोप तक वैश्विक बाजारों में रिकॉर्ड बिकवाली हुई थी। निवेशकों में भारी डर पैदा हो गया और उन्होंने अपने स्टॉक बेच दिए। निवेशकों के इस रवैये के चलते बाजार में भारी अस्थिरता बढ़ गई थी।
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ब्लैक मंडे के पीछे कई फैक्टर
1987 को आए ब्लैक मंडे के पीछे एक नहीं कई फैक्टर थे। उस वक्त कम्पयूटर आधारित ट्रेडिंग का चलन बढ़ रहा था। इससे निवेशक पोर्टफोलियो इंश्योरेंस की नीति अपना रहे थे। बाजार गिरने पर ऑटोमेटिक बिकवाली आर्डर दिए जाते थे, जिससे गिरावट तेज हो गई थी। 80 के दशक में उस समय स्टॉक मार्केट में शेयर की कीमत बढ़ने लगी थी। इसकी वजह से निवेशकों को ये महसूस हुआ था कि कीमतें वास्तविक मूल्य से कहीं ज्यादा है। निवेशक मार्जिन पर स्टॉक खरीद रहे थे और जब स्टॉक की कीमतें गिरने लगी तो ब्रोकरेज की तरफ से मार्जिन कॉल की गई। इसके चलते इन्वेस्टर्स को मजबूरी में बिकवाली करनी पड़ी थी।

10 प्रतिशत तक की गिरावट आ चुकी
माना जा रहा है कि कोई भी वित्तीय क्षेत्र इस गिरावट से अछूता नहीं रहा। अगर अमेरिका की ही बात करें तो पिछले माह के कारोबार में फ्यूचर्स अमेरिकी इंडेक्स एस&पी 500 और डाउ जोन्स 5 प्रतिशत तक गिर गए, जिससे संकेत मिल रहे हैं कि वॉल स्ट्रीट के सूचकांकों में और गिरावट आ सकती है। पिछले दो सत्रों में इनमें पहले ही 10 प्रतिशत तक की गिरावट पहले ही आ चुकी हो। जून डिलीवरी के लिए एस&पी 500 फ्यूचर्स 4,874 पर ट्रेड कर रहे थे, जो 236.25 अंकों या 4.62 प्रतिशत की गिरावट दर्शा रहा है। वहीं, डाउ जोन्स फ्यूचर्स 1,564 अंक यानी 4.06 प्रतिशत टूटकर 36,966 के स्तर पर पहुंच गए हैं। अमेरिका के वायदा बाजार में भारी गिरावट के बाद टोपिक्स के वायदा कारोबार को कुछ समय के लिए रोक दिया गया था।
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एशिया व ऑस्ट्रेलिया भी धड़ाम
टोक्यो का निक्की 225 इंडेक्स बाजार खुलने के तुरंत बाद लगभग 8% गिर गया। यह 6% गिरकर 31,758.28 पर आ गया। अक्सर देखा जाता है कि चीनी बाजार वैश्विक रुझानों को फॉलो नहीं करते हैं, लेकिन इस बार वे भी गिर गए। हॉन्गकॉन्ग का हैंगसेंग 13% गिरकर 20,703.30 पर आ गया। यह 2008 के बाद इसमें एक दिन में आई सबसे बड़ी गिरावट है। शंघाई कंपोजिट इंडेक्स 7% गिरकर 3,134.98 पर आ गया। दक्षिण कोरिया का कोस्पी 5% गिरकर 2,363.82 पर आ गया। ऑस्ट्रेलिया का एस&पी/एएसएक्स 200 3।8% गिरकर 7,377.70 पर आ गया। हालांकि पहले यह 6% से ज्यादा गिर गया था, लेकिन बाद में कुछ सुधार हुआ। यूरोप के प्रमुख बाजारों में भी भारी बिकवाली का दबाव रहा और दोपहर के कारोबार में इसमें छह प्रतिशत तक की गिरावट रही। पाकिस्तान के शेयर बाजार (पीएसएक्स) के बेंचमार्क केएसई-100 सूचकांक में 8,000 से अधिक अंक की गिरावट के कारण एक घंटे के लिए कारोबार स्थगित करना पड़ा।

आम भारतीयों के 14 लाख करोड़ डूबे
सोमवार को स्थानीय शेयर बाजार बीएसई सेंसेक्स 2,226.79 अंक का गोता लगा गया, जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 743 अंक लुढ़क गया। दस माह में यह शेयर बाजार में सबसे बड़ी गिरावट है। इस गिरावट से आम भारतीयों के 14 लाख करोड़ रुपये डूब गए हैं। तीस शेयरों पर आधारित बीएसई सेंसेक्स में लगातार तीसरे कारोबारी सत्र में गिरावट रही और यह 2,226.79 अंक यानी 2.95 प्रतिशत के नुकसान के साथ 73,137.90 अंक पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान एक समय यह 3,939.68 अंक यानी 5.22 प्रतिशत तक लुढ़क गया था। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 742.85 अंक यानी 3.24 प्रतिशत टूटकर 22,161.60 अंक पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान एक समय निफ्टी 1,160.8 अंक तक लुढ़क गया था। इससे पहले 23 मार्च, 2020 को लॉकडाउन लगाए जाने के दिन सेंसेक्स और निफ्टी 13 प्रतिशत से अधिक टूटे थे। शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों ने शुक्रवार को 3,483.98 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे।
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क्रूड 63.21 डॉलर प्रति बैरल पर
वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड 3.61 प्रतिशत की गिरावट के साथ 63.21 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 38 पैसे लुढ़ककर 85.82 प्रति डॉलर (अस्थायी) पर बंद हुआ। यह रुपये में पांच सप्ताह में एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट है। कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट और कमजोर डॉलर भी रुपये में नुकसान को रोकने में विफल रहे, क्योंकि विदेशी और घरेलू शेयर बाजार में निवेशकों में धन निकासी की होड़ मची थी। वैश्विक इक्विटी बाजारों के साथ-साथ क्रिप्टो परिसंपत्तियों में भी भारी गिरावट रही। बिटकॉइन से लेकर एथेरियम, डोजकॉइन से लेकर सोलाना तक सभी प्रमुख क्रिप्टो टोकन गहरे लाल निशान में रहे और ट्रंप की टैरिफ घोषणा के बाद आई हलचल के चलते इनकी कीमतों में 22 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई।