CAPF-UPS – ‘पुरानी पेंशन’ बहाली का केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा
CAPF-UPS: केंद्र सरकार ने नई पेंशन व्यवस्था ‘यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) लागू करने की घोषणा कर दी है। वहीं इसे लेकर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई। इन बलों में ‘पुरानी पेंशन’ बहाली का केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। अब यूपीएस के आने से इन बलों में ओपीएस लागू की उम्मीद टूट सी गई है। वजह, केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में यह बात कह सकती है कि ये बल भी अन्य कर्मचारियों की तरह यूपीएस के दायरे में आएंगे। यहां पर एक पेंच फिर भी फंसा रहेगा कि सरकार, सीएपीएफ को ‘संघ के सशस्त्र बल’ मानेगी या नहीं। दिल्ली हाईकोर्ट और खुद इन बलों का एक्ट यह बात मानता है कि सीएपीएफ ‘संघ के सशस्त्र बल’ हैं। अगर सरकार भी सर्वोच्च अदालत में यह बात मान लेगी कि हां ये ‘संघ के सशस्त्र बल’ हैं तो इन्हें ओपीएस देना पड़ेगा।

निर्देश पर अंतरिम रोक लगाने की पुष्टि
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में ‘पुरानी पेंशन’ बहाली का केस सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। केस का आधार केवल एक ही है कि ये बल ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ हैं या नहीं। केंद्र सरकार ने आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को ही ‘संघ के सशस्त्र बल’ माना है। इसी के चलते इन बलों में ओपीएस लागू है। पिछले दिनों सर्वोच्च अदालत ने इस मामले की सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस निर्देश पर अंतरिम रोक लगाने की पुष्टि की है, जिसमें पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस), सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 के अनुसार, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों/केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कर्मियों पर भी लागू होने की बात कही गई थी।
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अदालत के समक्ष ‘समानता’ का यह पक्ष रखा
याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च अदालत के समक्ष ‘समानता’ का यह पक्ष रखा था कि जब ‘संघ के सशस्त्र बल’ आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को ओपीएस मिल रही है तो सीएपीएफ को भी मिले। वजह, ये बल भी ‘संघ के सशस्त्र बल’ हैं। सीएपीएफ के 11 लाख जवानों/अफसरों ने गत वर्ष ‘पुरानी पेंशन’ बहाली के लिए दिल्ली हाईकोर्ट से अपने हक की लड़ाई जीती थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया। इस मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया। जब केंद्र सरकार ने स्टे लिया, तभी यह बात साफ हो गई थी कि सरकार ‘सीएपीएफ’ को पुरानी पेंशन के दायरे में नहीं लाना चाहती। वहीं केंद्र सरकार, कई मामलों में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को सशस्त्र बल मानने को तैयार नहीं होती। सीएपीएफ में पुरानी पेंशन का मुद्दा भी इसी चक्कर में फंसा हुआ है। एक जनवरी 2004 के बाद केंद्र सरकार की नौकरियों में भर्ती हुए सभी कर्मियों को पुरानी पेंशन के दायरे से बाहर कर उन्हें ‘एनपीएस’ में शामिल कर दिया गया। इसी तर्ज पर सीएपीएफ जवानों को सिविल कर्मचारी मानकर उन्हें भी एनपीएस में शामिल कर दिया।

दोहरा मापदंड अपना रही सरकार
केंद्रीय गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 6 अगस्त 2004 को जारी पत्र में घोषित किया गया है कि गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत केंद्रीय बल, ‘संघ के सशस्त्र बल’ हैं। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में फौजी महकमे वाले सभी कानून लागू होते हैं। सरकार खुद मान चुकी है कि ये बल तो भारत संघ के सशस्त्र बल हैं। इन्हें अलाउंस भी सशस्त्र बलों की तर्ज पर मिलते हैं। इन बलों में कोर्ट मार्शल का भी प्रावधान है। इस मामले में सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है।
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आर्मी की तर्ज पर बाकी प्रावधान क्यों
अगर इन्हें सिविलियन मानते हैं तो आर्मी की तर्ज पर बाकी प्रावधान क्यों हैं। फोर्स के नियंत्रण का आधार भी सशस्त्र बल है। जो सर्विस रूल्स हैं, वे भी सैन्य बलों की तर्ज पर बने हैं। अब सरकार इन्हें सिविलियन फोर्स बता रही है। ऐसे में ये बल अपनी सर्विस का निष्पादन कैसे करेंगे। इन बलों को शपथ दिलाई गई थी कि इन्हें जल, थल और वायु में जहां भी भेजा जाएगा, ये वहीं पर काम करेंगे। सिविल महकमे के कर्मी तो ऐसी शपथ नहीं लेते हैं। वहीं केंद्र एवं राज्यों के अनेक कर्मचारी संगठन, इस नई पेंशन व्यवस्था को छल बता रहे हैं। उन्होंने इसके खिलाफ विरोध का बिगुल बजा दिया है।
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