Manufacturers – मार्केट में रिटेलर्स की टीम बनाता है, बिजनेस का बढ़ाता है
Manufacturers: मैन्यूफैक्चरर्स की उद्योग में क्या भूमिका होती है और कितना महत्व होता है? यह तो सभी जानते हैं कि अपनी पूंजी लगाकर फैक्ट्री स्थापित कर मशीनों और कुशल कारीगरों के माध्यम से कच्चे माल से किसी भी कॉमर्शियल प्रोडक्ट को तैयार कराने वाले को निर्माता कहते हैं। ये निर्माता की अधूरी पहचान है। निर्माता अपना बिजनेस शुरू करने से पहले अपनी मार्केट व ग्राहक तलाशता है, उसके बारे में अच्छी तरह से रिसर्च करता है क्योंकि वह सोचता है कि बिजनेस करने के लिए हम बड़ी पूंजी इन्वेस्ट करने जा रहे हैं, उसके सारे जोखिम पहले से जान कर उन्हें दूर कर लिये जायें तो अच्छा बिजनेस स्थापित किया जा सकता है। अपने ग्राहकों और मार्केट को अच्छी तरह से छानने-बीनने के बाद ही वह अपने बिजनेस को शुरू करने का पूरा प्लान बनाता है। फैक्ट्री के लिए जमीन, बिजली, पानी, कुशल व अकुशल श्रमिक, कच्चा माल, मशीन, ट्रांसपोर्टेशन के साधन आदि अन्य तरह की जरूरतों को पूरा करने के बाद ही अपना प्रोडक्ट तैयार करता है।
क्षेत्रवार अनेक डिस्ट्रीब्यूटर्स को तैनात करता
प्रोडक्ट तैयार करने के बाद उसे मार्केट में पहुंचाने से पहले उसकी जमकर मार्केटिंग करता है। अपने ग्राहकों से अपने प्रोडक्ट को परिचित कराता है। कभी कभी तो वह स्वयं डिस्ट्रीव्यूटर का भी काम करता है। मार्केट में रिटेलर्स की टीम बनाता है, उन्हें अपने प्रोडक्ट के बारे में अच्छी तरह से समझाता है, डिस्प्ले आदि के बारे में बताता है। इसके लिए वह रिटेलर्स की पूरी मदद करता है। एक तरह से वह डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम पूरी तरह से बना देता है। उसके बाद ही वह किसी डिस्ट्रीब्यूटर्स की तलाश करता है।
मैन्यूफैक्चरर्स को अपने मनपसंद के डिस्ट्रीब्यूटर मिल जाते हैं और उनसे विचार मिल जाते हैं तो वह क्षेत्रवार अनेक डिस्ट्रीब्यूटर्स को तैनात करता है। यदि डिस्ट्रीब्यूटर्स नहीं मिल पाते हैं तो वह अपने प्रतिनिधियों को ठेकेदार बनाकर उनसे डिस्ट्रीब्यूशन का काम करवाता है। आज के जमाने में उद्योग में काम करने वाले डिस्ट्रीब्यूटर जहां एक्सपर्ट हो गये हैं, उनको देखकर मैन्यूफैक्चरर्स भी एक्सपर्ट हो गये हैं। जहां डिस्ट्रीब्यूटर अपने मनमाने कमीशन के लिए एक उद्योग के साथ कई उद्योगों के प्रोडक्ट को एकसाथ बेचते हैं वहीं निर्माता भी एक प्रोडक्ट को तैयार नहीं करते बल्कि उससे जुड़े सभी सहयोगी प्रोडक्ट को तैयार करवाते हैं ताकि उन्हें भी कई क्षेत्र में व्यापार एवं लाभ कमाने के अवसर मिल सकें।
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प्रोडक्ट की प्राइस
मैन्यूफैक्चरर्स के साथ सारे व्यापारिक जोखिम व लाभ भी जुड़े होते हैं। मैन्यूफैक्चरर्स किसी प्रोडक्ट का पूरा मालिक होता है। यदि वह प्रोडक्ट मार्केट में हिट होता है और अधिक बिकता है और जो लाभ मिलता है उसमें मैन्यूफैक्चरर्स का हिस्सा अधिक होता है। यदि उसी प्रोडक्ट में कोई गड़बड़ी होती है और नुकसान होता है तो उसके सारे परिणाम को भी मैन्यूफैक्चरर्स को ही भुगतना पड़ता है। मैन्यूफैक्चरर्स के साथ एक प्लस प्वाइंट यह होता है कि वह कुल लागत व संभावित प्रॉफिट मार्जिन को फिक्स करने के बाद ही अपने प्रोडक्ट की प्राइस तय करता है। इससे उसको घाटा उठाने की संभावना कम रहती है। मैन्यूफैक्चरर्स चूंकि पहले से ही मार्केट का अध्ययन किये होता है तो उसे होलसेलर्स लेकर रिटेलर्स के रेट व उनकी प्रॉफिट मार्जिन मालूम होती है, वो डिस्ट्रीब्यूटर को अधिक आजादी नहीं देता है और वह उसके हिस्से में निश्चित कमीशन या प्रॉफिट मार्जिन मनी ही छोड़ता है।
प्रोडक्ट के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार
मैन्यूफैक्चरर्स के व्यापारिक दायित्व अनेक तरह के होते हैं। अपने प्रोडक्ट के लिए वह पूरी तरह से जिम्मेदार होता है। प्रोडक्ट की क्वालिटी, एक्सपायरी डेट के माल का नुकसान आदि की पूरी तरह से जिम्मेदारी मैन्यूफैक्चरर्स की होती है। प्रोडक्ट की मार्केटिंग, एडवरटाइजिंग आदि की जिम्मेदारी भी मैन्यूफैक्चरिंग की होती है। समय समय पर प्रोडक्ट के प्रति ग्राहकों में जागरुकता लाने के लिए विशेष अभियान, विचार गोष्ठी अन्य सोशल प्रोग्राम भी कराने होते हैं। मैन्यूफैक्चरर्स को ग्राहक से प्रोडक्ट के बारे मिलने वाली किसी तरह की शिकायत को दूर करना होता है। जरूरत पड़ने पर प्रोडक्ट को वापस मंगाकर उसमें सुधार कर वापस ग्राहक को बिना किसी चार्ज के देना होता है। कहने का मतलब यह है कि मैन्यूफैक्चरर्स को प्रोडक्ट से संबंधी सारे जोखिम उठाने होते हैं।
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स्कीम चलाकर अपना लाभ का हिस्सा मेनटेन करता
प्रोडक्ट के अधिक बिकने से मैन्यूफैक्चरर्स को अधिक प्रॉफिट मार्जिन मिलती है। मार्केट की जबर्दस्त कंपटीशन के चलते कभी कभी मैन्यूफैक्चरर्स की आमदनी सीमित भी हो जाती है। लेकिन मैन्यूफैक्चरर्स इसमें अपने दिमाग का इस्तेमाल करके इन विषम परिस्थितियों में प्रोडक्ट के वजन आदि में कमी या कोई स्कीम चलाकर अपना लाभ का हिस्सा मेनटेन करता है। मैन्यूफैक्चरर्स को बिजनेस शुरू करने में ही एक बार बड़ी पूंजी लगाने के बाद कच्चा माल मंगाकर व श्रमिकों व मशीनों के माध्यम से प्रोडक्ट को तैयार करने का सिलसिला जारी रखना होता है।
एक बार पूरा सिस्टम बनने के बाद निर्माता को फिर अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती है और जैसे जैसे उसके प्रोडक्ट की मार्केट डिमांड बढ़ती जाती है उसको वैसे-वैसे उसका प्रॉफिट मार्जिन भी बढ़ता रहता है। मैन्यूफैक्चरर्स को मिलने वाला लाभ कोई फिक्स नहीं होता है। विभिन्न उद्योगों में लाभ मिलने के अलग-अलग तरीके होते हैं। वैसे लाभ उद्योगों में लाभ मांग-आपूर्ति, अर्थव्यवस्था के हालात, व्यापारिक नियम-कानून एवं अन्य आर्थिक उतार-चढ़ाव में लगातार होने वाले बदलाव पर निर्भर करता हैं। इसके बावजूद भी अनुभवी लोगों का अनुमान है कि मैन्यूफैक्चरर्स को आसानी से 30 से 35 प्रतिशत तक का लाभ मिल जाता है।