Film Making: असफल फिल्मों के पीछे बहुत से लोगों की साझी नाकामी
Film Making: भले कोई फिल्म किसी एक्टर या डायरेक्टर के नाम से जानी जाती हो लेकिन कोई भी फिल्म महज इन लोगों की नहीं होती और न ही कोई फिल्म सिर्फ एक्टर या डायरेक्टर के चलते सफल होती है। फिल्म सचमुच में एक टीम वर्क है और जब कोई फिल्म हिट होती है तो यह बहुत से लोगों की साझी मेहनत, उनके साझे संघर्ष और साझी उत्कृष्टता के कारण यह सफलता हासिल करती है। इसी तरह जब कोई फिल्म असफल होती है तो वह किसी एक्टर या डायरेक्टर भर की नाकामी नहीं होती बल्कि बहुत से लोगों की साझी नाकामी का नतीजा होती है। कोई भी फिल्म तीन चरणों में बनती है। पहला प्री-प्रोडक्शन, दूसरा प्रोडक्शन और तीसरा पोस्ट प्रोडक्शन, स्टेज या चरण होता है। पहले चरण में फिल्म की कहानी, उसकी पटकथा को बेहतर फिल्माने योग्य बनाये जाने पर काम होता है। इसके बाद शूटिंग की योजना तय होती है तथा समूचे कामकाज की एक रूपरेखा बनायी जाती है। दूसरे चरण में शूटिंग शुरू होती है और शूटिंग के दौरान जो-जो काम होते हैं, सब इसी चरण का हिस्सा होते हैं।
प्रोडक्शन टीम बहुत ही महत्वपूर्ण है
एक बार जब शूटिंग पूरी हो जाती है तो फिल्म में उन लोगों की भूमिका शुरू होती है जो किसी शूट की गई फिल्म को आम दर्शकों को देखने लायक बनाते हैं। यह पोस्ट प्रोडक्शन टीम होती है। आजकल पोस्ट प्रोडक्शन टीम इतनी महत्वपूर्ण है कि पहले के दो चरणों में अगर कुछ गलतियां भी हो जाती हैं तो तीसरे चरण की यह टीम उन गलतियों को किसी हद तक सही कर लेती है। फिल्मों को ज्यादा से ज्यादा प्रभावशाली, उन्हें ज्यादा से ज्यादा दर्शनीय बनाने का काम भी यही टीम करती है। अगर किसी फिल्म से जुड़ी बहुत सी महत्वपूर्ण कड़ियों को एक साथ रखकर देखा जाए तो समझ सकते हैं कि कोई सफल फिल्म कितने ही लोगों के साधकर लगाये गए सही निशाने का नतीजा होती है।
सबसे मजबूत बौद्धिक कड़ी डायरेक्टर
डायरेक्टर फिल्म की निश्चित रूप से सबसे मजबूत बौद्धिक कड़ी है। फिल्म को यही नैरेट करता है। दर्शकों को जो फिल्म दृश्य के रूप में, कथ्य के रूप में या संदेश अथवा शिल्प के रूप में नैरेट होती है या उन्हें समझ में आती है, वह दरअसल डायरेक्टर की समझ का नतीजा होता है। डायरेक्टर किसी कहानी को जिस रूप में समझता है, उसी रूप में वह उसे पर्दे में उतारकर दर्शकों को भी समझाना चाहता है। कई बार अच्छी कहानियां भी निर्देशक की अगर समझ में बेहतर ढंग से नहीं आतीं तो जरूरी नहीं कि उन पर अच्छी फिल्म बन जाए और कई बार औसत कहानी को भी कोई डायरेक्टर अपनी चमकदार समझ से स्तरीय बना देता है। फिल्म की दूसरी बड़ी कड़ी होता है लेखक। दरअसल अंतिम रूप से दर्शक जो फिल्म देखता है, वह किसी लेखक की ही कल्पना होती है। भले उस कल्पना को दर्शकों तक पहुंचाने में कई लोगों का हाथ रहता हो।
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पूरे प्रोजेक्ट का हेड होता है प्रोड्यूसर
फिल्म की तीसरी मजबूत कड़ी प्रोड्यूसर है। यह पूरे प्रोजेक्ट का हेड होता है और इस प्रोजेक्ट को यही फाइनेंस भी करता है। फिल्म में डायलॉग राइटर इसकी चौथी महत्वपूर्ण कड़ी है, जो फिल्म को चुनिंदा ध्यानाकर्षित करने वाले संवादों के जरिये दर्शकों के लिए और ज्यादा खोलता है और फिल्म के फलक को एक ऊंचाई तक ले जाता है। किसी फिल्म की अगली महत्वपूर्ण कड़ी स्क्रीन राइटर है जो कहानी को अपनी कल्पनाशीलता से ऐसे ताने-बाने में ढालता है कि सब कुछ स्वाभाविक घटता सा लगे। यह स्क्रीन राइटर ही होता है जो किसी कहानी के विभिन्न सीन किस जगह आएं यह तय करता है और यह भी कि उसे किस तरह शूट किया जाए।
फिल्म का रूप देता है सिनेमेटोग्राफर
लोकेशन मैनेजर, सेट डिजाइनर, आर्ट डायरेक्टर भी किसी फिल्म की वे महत्वपूर्ण कड़ियां हैं जो एक प्रोडक्ट के रूप में इसे बेहतर बनाने में अपनी-अपनी समझ और ज्ञान से योगदान देते हैं। अब जाकर किसी फिल्म में वह कड़ी जुड़ती है जिससे ज्यादातर समय आम लोगों के बीच फिल्म की मुख्य कड़ी या कहें समूची फिल्म ही समझा जाता है। जी हां, हम अभिनेता और अभिनेत्रियों की ही बात कर रहे हैं। भले फिल्म इनके जरिये दर्शकों द्वारा देखी जाती है लेकिन ये बहुत से लोगों के निर्देश को सिर्फ पर्दे पर उतारते हैं और इनके अभिनय को कैच करके जो व्यक्ति फिल्म का रूप देता है उसे सिनेमेटोग्राफर कहते हैं। लाइन प्रोड्यूसर, प्रोडेक्शन मैनेजर, असिस्टेंट डायरेक्टर, कंटिन्यूटी पर्सन, कैमरा ऑपरेटर, साउंड मिक्सर, विजुअल इफेक्ट डायरेक्टर, कास्ट्यूम डिजाइनर, मेकअप आर्टिस्ट, ट्रांसपोर्टेशन कॉर्डिनेटर, यूनिट पब्लिसिस्ट, एडिटर, म्यूजिक डायरेक्टर, म्यूजिक टीम, प्रमोशन एंड मार्केटिंग के साथ लीगल टीम भी किसी फिल्म का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोई भी फिल्म कितने लोगों की कल्पनाओं, उनकी कोशिशों और साझे प्रयासों का सधा नतीजा होती हैं।
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