Economic Survey : 2047 तक विकसित भारत लक्ष्य के लिए 8% वार्षिक दर जरूरी
Economic Survey – आर्थिक समीक्षा में देश की वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष में 6.3 से 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है, जो विकसित राष्ट्र के लक्ष्य को हासिल करने के लिए काफी नहीं है। इसके साथ ही वृद्धि को गति देने के लिए भूमि और श्रम जैसे क्षेत्रों में नियमनों को उदार बनाने और सुधार को आगे बढ़ाने का आह्वान किया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा शुक्रवार को संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में संकेत दिया गया है कि भारत की वृद्धि सुस्त हो रही है और 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए जरूरी लगभग आठ प्रतिशत वार्षिक दर हासिल करने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
2025-26 में 6.3 से 6.8% का अनुमान
इसमें कहा गया है कि वित्त वर्ष 2025-26 में आर्थिक वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है। वहीं राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू वित्त वर्ष में इसके 6.4 प्रतिशत रहने की संभावना जतायी गयी है, जो महामारी के बाद सबसे कम है। वित्त वर्ष 2023-24 में आर्थिक वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही थी। समीक्षा में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि का जो अनुमान लगाया गया है, उसे विकसित देश बनने के लिए जरूरी वृद्धि दर से काफी कम माना जा रहा है।
आर्थिक समीक्षा तैयार करने वाले मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा, ‘‘कृषि उत्पादन में उछाल, खाद्य मुद्रास्फीति में अपेक्षित नरमी और स्थिर वृहद-आर्थिक परिवेश के साथ ग्रामीण मांग निकट अवधि में आर्थिक वृद्धि में तेजी का संकेत देती है।’’ उन्होंने कहा कि अगले साल भारत की आर्थिक संभावनाओं को लेकर जोखिम संतुलित है। नागेश्वरन ने कहा कि वैश्विक स्तर पर तनाव और अनिश्चितताओं के साथ जिंसों के दाम में तेजी की आशंका अर्थव्यवस्था के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां पैदा करती हैं। समीक्षा में कहा गया है कि 2047 तक विकसित राष्ट्र के दीर्घकालिक लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत को अगले एक या दो दशक में लगभग आठ प्रतिशत वृद्धि की जरूरत है। साथ ही निवेश दर को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 35 प्रतिशत करने की आवश्यकता है जो वर्तमान में 31 प्रतिशत है।
देश के SME क्षेत्र को व्यावहारिक बनाने की जरूरत
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) का अनुमान है कि भारत बाजार मूल्य पर 10.2 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि के साथ वित्त वर्ष 2027-28 तक 5,000 अरब डॉलर और वित्त वर्ष 2029-30 तक 6,300 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। समीक्षा में नियमनों को कम कर आर्थिक सुधारों को बढ़ाकर वृद्धि के इंजन को फिर से मजबूत करने का आह्वान किया गया है। साथ ही राज्यों से मानकों और कंपनियों पर नियंत्रण को उदार बनाने के साथ-साथ शुल्क दरों में कटौती कर अनुपालन की लागत को कम करने की बात कही गयी है। इसमें कहा गया है कि व्यवस्थित रूप से नियमन को कम करना उतना ही महत्वपूर्ण है,
जितना नवाचार को प्रोत्साहित करने और देश के एसएमई क्षेत्र को व्यावहारिक बनाने के लिए बुनियादी ढांचे और प्रोत्साहन में निवेश है। जर्मनी, स्विट्जरलैंड, जापान और सिंगापुर जैसे देशों की आर्थिक सफलता में छोटे उद्यमों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसमें कहा गया है, ‘‘अत्यधिक नियमन नवाचार और आर्थिक गतिशीलता को प्रभावित करता है।’’ समीक्षा कहती है, ‘‘ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां नियमन का उद्देश्य उपभोक्ताओं, श्रमिकों और पर्यावरण की रक्षा करना है, लेकिन अनजाने में यह प्रवेश को लेकर बाधाएं पैदा कर सकता है, प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करने के साथ नवोन्मेष की गति को धीमी कर सकता है। इसमें कहा गया है कि भूमि, श्रम और भवन के उपयोग को प्रभावित करने वाले कानूनों में सुधार के साथ इस दिशा में पहल की जा सकती है क्योंकि ये नियमन सभी उद्यमों में निर्णय लेने को प्रभावित करते हैं।
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खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी की संभावना
समीक्षा में अनुमान जताया गया है कि जनवरी से मार्च तिमाही में खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी आने की संभावना है क्योंकि नई फसलों की आवक के साथ-साथ कुछ सब्जियों की कीमतें मौसमी रूप से कम होंगी। खुदरा मुद्रास्फीति धीरे-धीरे भारतीय रिजर्व बैंक के चार प्रतिशत के लक्ष्य के स्तर तक आ जाएगी। हालांकि, खराब मौसम की कोई भी घटना और वैश्विक बाजार में जिंसों की कीमतों में वृद्धि से यह पटरी से उतर भी सकती है। खुदरा मुद्रास्फीति दिसंबर, 2024 में घटकर चार महीने के निचले स्तर 5.2 प्रतिशत पर आ गई। लेकिन सब्जियों की कीमतों में 26.56 प्रतिशत की वृद्धि के साथ खाद्य मुद्रास्फीति 8.39 प्रतिशत के उच्च स्तर पर बनी हुई है। समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक वृद्धि दर कुछ कम रहने की संभावना है। सेवा क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन कर रहा है जबकि कुछ क्षेत्रों में विनिर्माण की स्थिति अच्छी नहीं है।
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भू-राजनीतिक जोखिम चिंता का विषय
वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति का दबाव कम हो रहा है, लेकिन भू-राजनीतिक जोखिम चिंता का विषय बने हुए हैं। वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत का वित्तीय क्षेत्र मजबूत बना हुआ है। ऋण और जमा वृद्धि के बीच अंतर कम होने से बैंकों के लाभ में सुधार हुआ है। इसमें कहा गया है कि पूंजी बाजार ने पूंजी निर्माण, बचत के वित्तीय उत्पादों में लगाने और धन सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वित्त वर्ष 2012-13 से 2023-24 के बीच आईपीओ (आरंभिक सार्वजनिक निर्गम) सूचीबद्धता में छह गुना वृद्धि हुई है। युवा निवेशकों ने इक्विटी बाजार में भागीदारी बढ़ाई है। इसमें कहा गया है विदेशों में मांग में नरमी के बीच वस्तु निर्यात में मामूली वृद्धि हुई है, जबकि घरेलू मांग के कारण आयात मजबूत रहा है। बढ़ते संरक्षणवाद के कारण बदलती वैश्विक व्यापार गतिशीलता से निपटने के लिए भारत के लिए एक रणनीतिक व्यापार खाका आवश्यक है।